जब जोश चढ़ा लसोढ़ा का, खदेड़ दिया वकीलों को

: अपनी ही महिला अधिवक्‍ता साथी को न्‍याय-परिसर में द्रौपदी की तरह बेइज्‍जत करने पर आमादा थे वकील : जिला जज ने जो महिला शौचालय बनाया, वकील व पुलिसकर्मियों ने विशाल मूत्र-कुण्‍ड बनाया : युवा महिला अधिवक्‍ता को छेड़खानी पर निष्‍कासित, फिर माफी मांग कर वापस आये : कुमार सौवीर लखनऊ : लसोढ़ा वाकई कमाल […]

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हुसैनगंज का जिल्‍दसाज और पंसारी छंगा ही है लखनऊ का लसोढ़ा-पन

: उस सामाजिक ताना-बाना में पूरा मोहल्‍ला अभिभावक था : अभी भी वक्‍त है म्‍यां। रिश्‍तों को जोड़ने के लिए लसोढ़ा उगाइये : जन्‍मजात होती है बच्‍चों में झूठ और चोरी की आदत, उन्‍हें सहजता से निपटाना जरूरी : पतंग लूटने या उसे दुरुस्‍त कराने की औकात होती, तो नयी कनकउव्‍वा न खरीद लेते : […]

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अमीनाबाद के रानीगंज में थी लसोढ़ा वाली गली

: पतंग के चलते हर घर में झंझट, भाईचारा जैसा माहौल कहीं था ही नहीं : न्‍यू क्रियेटिविटी, आवश्‍यकता ही नूतनता का जननी : गोंदनुमा लसलसा और चिपचिपापन लसोढ़ा ही हम मुफलिस पतंग-भिखारियों का आखिरी सहारा था, जैसे अजमेर-शरीफ की मजार : कुमार सौवीर लखनऊ : हुसैनगंज में हमारा एक दोस्‍त हुआ करता था पप्‍पू, […]

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लसोढ़ा चखे पतंगबाजी क्‍या खाक समझोगे ?

: रामपुर और बरेली में भी होती है पतंगबाजी, लेकिन जमघट सिर्फ लखनऊ में : मुझे तमीज की लीक पर लाने के लिए पापा ने लगाया था लसोढ़ा : झगड़े में भी सम्‍मान से बात करना भी लखनवी लसोढ़ा-पन ही तो है : लखनवी तमीज में जो लोग बचे हैं, लसोढ़ा का ही असल कमाल […]

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तोड़ लसोढ़ा, गोंद निकाल। मूंछ बना ले तुर्रेदार

: मूंछ में ऐंठनदार अंदाज मर्दानगी का प्रमाण बना रहा : लाखों बरसों तक प्रकृति व मानव-जीवन ऋणी रहा गूलर, उसी की कृपा से हैं कुएं : लाखों बरस तक रसोई में सब्‍जी के बर्तनों में कमाल करता रहा गूलर का गुच्‍छा : मूंछ को मरोड़ कर बिच्‍छू की पूंछ की तरह आक्रामक और विषैला […]

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लसोढ़ा के बिना भी कोई जिन्‍दगी है ?

: परमानेंट तो हमारी-आपकी सांसें भी नहीं हैं हुजूरेआली : पीढि़यों तक संस्‍कार के लिए जीवन में लसोढ़ा-पन खोजिए : प्रेमचंद की बूढ़ी काकी या फिर मंत्र के उस ओझा की तरह डॉ चड्ढा का मासूम बच्‍चा बचाने वाला लसोढ़ा कहीं और न मिलेगा : अशक्‍त, असहाय, मजलूम, महकूम लोगों को जिन्‍दगी से कोई खास […]

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पिता दिव्‍य अनुभूति है। अहसास बाप के बाद होता है

: सतर्क रहिये, ताकि चाइल्‍ड-एब्‍यूज न हो : सच जान मैं फ्रैंज काफ्का से विपरीत ध्रुव पहुंचा : वसीली अलांग्‍जांद्रोविच सुखोम्लिस्‍की की किताब है, बाल हृदय की गहराइयां : कुलपति डॉ एसपी नागेंद्र बोले कि आप कढ़े हैं : छठी इंद्री होते ही मैं भागता जैसे माफिया धनंजय सिंह, आईपीएस पाटीदार, अनंत तिवारी या दिनेश […]

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ठरकी मर्द नहीं, हुमा अंसारी का शिकार है ठरकी समाज

: तरबियत को महसूस कर फैसला करती है कि किस पर इत्र फेंके, या किसे लहूलुहान : मुलाकात एक प्यारी-सी दिलचस्‍प कटारी से : मकसद बेहूदगियों से धर्मयुद्ध यानी जेहाद करना ही है न, है कि नहीं : सचिवालय का विशेष सचिव रामविजय सिंह तो एक ही थप्‍पड़ में बेदम चूहे कि तरह पसर गया […]

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त्‍याग बनाम जाति: एक को पद्मश्री, दूसरे को ठेंगा

: सरयू में सामंजस्‍य, गोमती में उठापटक : फैजाबाद ने शरीफ को आंखों में बिठाया, जौनपुर ने कैलाशनाथ को पहचाना तक नहीं : कहीं जन-समर्थन के सामने साष्‍टांग किया प्रशासन ने, तो कहीं परस्‍पर झंझट का लाभ उठाया अफसरों ने : फैजाबाद अर्श तक पहुंच रहा, मिला पद्मश्री। जौनपुर फर्श से भी नीचे गहरे, मिला […]

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जातीय उन्‍माद नहीं, निष्‍ठा पर जिंदा है पत्रकारिता: कमर वहीद नकवी

: आनंद स्‍वरूप वर्मा के अनुसार हिन्‍दी पत्रकारिता ब्राह्मणों नहीं, योद्धाओं के बल पर जिन्‍दा : अयोध्‍या ही नहीं, फैजाबाद के कमरे में एक-एक गुम्‍बद पर तीन-तीन पत्रकार चढ़े थे : संपादक से महाप्रबंधक तक का सफर राघवेंद्र चढ्ढा ने : एक राष्‍ट्रीय अंग्रेजी के कट्टर हिंदूवादी ब्‍यूरो चीफ अपने दामाद के भाई को एक […]

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मृणाल पाण्‍डेय न होतीं तो ढह जाती पत्रकारिता

: दायित्‍व-पत्रकारिता की इमारत में लसोढा हैं मृणाल पाण्‍डेय : ललई यादव ने पूरी गुंडई के साथ दो पत्रकारों का कैमरा पैरों से तोड़ा : निजी नहीं, पत्रकारिता के कुनबे को जोड़ने की अद्भुत शैली बनायी तडि़त कुमार और आनंदस्‍वरूप वर्मा ने : कुमार सौवीर लखनऊ : पत्रकारिता में अगर मैंने सबसे बेमिसाल अट्टालिका की […]

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उंगलियों में नचाते पेंसिल को तोड़ दिग्‍गज वकील बोला, लखनऊ हाईकोर्ट क्‍या है

: आसमान से जमीन तक टपकने का किस्‍सा हैं प्रिंस लेनिन : ख्‍वाहिशों के आसमान से जमीनी हकीकत का सफरनामा हैं प्रिंस लेनिन : बाप ने जातिवादी जहर धोने के लिए बेटे का नाम लेनिन कर दिया : एनआरएचएम महा-लूट के बड़े मगरमच्‍छ अभी तक अज्ञात, धेला नहीं मिला : जज नहीं बन पाये तो […]

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इस खब्‍ती आदमी का नाम है आरडी शाही

: यह तीनों उल्टे चलैं, शायर, सिंह, सपूत : बेंच से हाथ जोड़ कर पैरवी की, वकीलों का दामन बच गया : बाबा जी का घंटा बजाना हो तो सरकारी वकील बन जाओ : लोगों को खिलाने की हैसियत मुझमें थी ही नहीं, और मतदाता भी तो लोकाचार के हिसाब से ही चलते हैं : […]

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कानून-ची दुनिया: किसी में चुल्‍ल है, किसी का दायित्‍व, तो किसी का धर्म

: जिन्‍दगी को आम आदमी से जोड़ने में बेमिसाल हैं हाईकोर्ट के तीन वकील : कानून-चीं धंधे से अलग भी एक अनोखा जीवन जीने के लिए जरूरी है लसोढ़ा : व्‍यवसाय के साथ लेखन से डंका बजा रहे हैं वकालत-सेनानी : बातचीत रविशंकर पांडेय, चंद्रभूषण पांडेय और आईबी सिंह पर : कुमार सौवीर लखनऊ : […]

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हमसे ही बेगारी और मजूरी भी ? : भाड़ में जाए तुम्‍हारा लेफ्टिज्‍म

: लेफ्टिज्‍म से राइटिज्‍म तक उछले आईबी सिंह की उछालें दुश्‍मनों की छाती फाड़ देती हैं : देवरिया में बसा है युद्ध-मजदूर बघेलों का इलाका, अब लखनऊ में एकाकी जीवन : ठाकुरपन और सफलता ने एटीट्यूड को परमानेंट बनाया, अब क्‍या खाक मुसलमां होंगे : लाखैरों ने पैसा भी वसूला और टाइम भी : कुमार […]

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