: अपना कर्म देखो। अब न तो तुम बाभन बचे हो, या ठाकुर : अक्षय तृतीया पर अपने नन्हे–मुन्ने दुधमुंहे बच्चों का विवाह क्यों : बछड़े पर युद्ध हुआ, आज हजारों गौवंश सड़क पर बेमौत मर रहे, कह रहे हैं पुरशुराम या योगी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यमदग्नि ऋषि का एक बच्चा जमींदार अर्जुन के शेयर लौंडे-लफाडी जबरिया बांध ले गए, तो परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रिय-विहीन कर दिया।
भाई कहे को ?
क्षमा बड़ों को चाहिए, छोटों को उत्पात।
अरे आदि-शिक्षक पद्मश्री पुरस्कार से सजे-धजे आक्रोश सिंह यादव की मूल शिक्षा भूल गए कि गलतियां बच्चों से ही हो जाती है। उनका माई काओ।
भूल गए वो श्लोक:- “भृगु घट को गए जो प्रभु को मारी लात।” एक तीन, तो दूसरा तरीका। एक डींग मरता है कि हमापा पापा ने धरती को 21 बार क्षत्रिय-विहीन कर दिया था, तो जीवन भर हर बार परशुराम का नाम सुनते हो, तुम “पों” निकल जाती है। धेला भर बुद्धि का भी प्रयोग नहीं करते हो कि कोई 21 बार यह काम कैसे कर सकता है? मतलब यह है कि तो निरा मूर्ख है और तुम बज्र-मूर्ख।
और अगर तुम पैदायशी गढ़ नहीं हो तो, यह बताता है कि धुरी तृतीया पर अपने नन्हे–मुन्ने दुधमुंहे बच्चों के विवाह क्यों घूमते हो, और उस पर दांव क्यों खरीदते का टोटकामान हो?
अब आप योगी बाबा को देख रहे हैं। बने परशुराम घूम रहे हैं। फरसा तो थमा दिया पुलिस को, लेकिन सफल रणनीति के तहत पुलिस जागरण ने सक्सेलफुली योजना से उन तीन फर्जी ओत्तर शत्रुओं को प्लान किया और तब उन तीनों लांडों ने होस्ट से ‘दगा-दगा विई-वि, दग गई हाय रे तेरी”। तियो ने ठिकाना बनाया पर ही अयोध्या पर राममंदिर निर्माण की शपथ लेते हुए “जै श्रीराम जै श्रीराम” का जयकारा क्या निर्धारण शुरू किया कि पुलिसवाले भी भाव-विभोर होकर भूलुंठित हो गए
। गया, विकास दुबे उप्पर गया, दास उप्पेर गया, असद उप्पर गया, इशाद उप्पर गया, अतीक उप्पेर गया।
जिसे पुलिस ने खुद नहीं भेजा, वह भी हाथरस में चार सवर्ण बच्चों के सद्कर्मों के चलते आप उप्पर चले गए। हां, पुलिस ने उसे बिना देखे खेल में पेट्रोल डाल कर फूंक दिया।
जिंदगी को जायकेदार और मस्त-मस्त बनाने को हैरान करने वाले विनय तिवारी को उपपर भेज दिया गया, गोरखपुर के होटल में जयपुर के व्यवसायी को कुचूमर रहने वाला उपपर भेज दिया गया, दरिस के एक व्यवसायी को लूटने के लिए पुलिस वालों ने दांव पर लील लेने से मरने के मामले में लापरवाही हुई उसे श्मशानघाट दिया। घर जैसा शक, तो हुकूमत मचाना। पूरा मोहल्ला पर संदेश। मजबूरन फिर से बनाई गई, तो पता चला कि उसकी 37 से ज्यादा हड्डियां तोड़ी गई थीं।
लखनऊ के डीसीपी प्राची सिंह पर प्रशस्ति पत्र लिखने का कार्य करने वाले कार्यकर्ता अलीगंज में ट्रेन के सामने कूद कर उपपर चला गया, गोमती नगर थाने की हवालात में एक दिहाड़ी कार्यकर्ता का गला दबा कर दबजी ने उपपर भेज दिया।
किसी वंश को 21 बार विहीन करने की बात आज भले ही पौराणिक छुड़छुडिया की तरह लगती है, कि क्षत्रिय-वंश का आधा विनाश आपने आज भी होते हुए कर दिया, लेकिन शेष माफिया-वंश के लोग आज भी सुरक्षित हैं जहां-तहां समाज के आम ही आदमी नहीं, बल्कि कानून-व्यवस्था के क्षेत्र में अग्नि में लघुशंका करने में बिजी हैं।
लेकिन योगी जी अब क्या करें भी तो क्या करें? फरसा तो मित्रो ! ज़हर में ज़मीन-आसमान का फर्क हो गया है। अपने कर्म देखों। अब न तो तुम बाभन बचो या ठाकुर। शब्द बोलने या अर्थ समझने-समझने की तमीज बची है तुम ब्राह्मणों में और न ही किसी व्यक्ति को सुरक्षा-क्षत्र देने की औकात बचती है तुम क्षत्रियों में।
फिर खुद को महान साबित करने के लिए अपना-अपना छतर जहां-जहां कह रहे घिस रहे हो रे बकलोल?