तमाशबीन ! जो खुद फंसने पर पिल्लों सा किकियाते हैं

बिटिया खबर

: तमाम क्रांतिकारी पत्रकार बहुत मिलेंगे जो सिम्पल पत्रकार में देशद्रोही ढूंढ खुश हों : कुत्तों को खाना खिलाने जा रहे थे, फालिज हुआ,  लोहिया अस्पताल से आकर जमानत ली :

सत्येंद्र पीएस

नई दिल्ली : सिद्दीक कप्पन को जानते ही होंगे। न जानते हों तो गूगल और यू ट्यूब पर सर्च करें। उनके नाम पर भयानक क्रांति मची हुई पाएंगे।
तमाम क्रांतिकारी पत्रकार टीवी पर भाषण देते मिलेंगे। सरकार को कोसते मिलेंगे। हाय हाय करते मिलेंगे। वहीं तमाम ऐसे भी मिलेंगे जो एक सिम्पल पत्रकार में देशद्रोही ढूंढ लेंगे। खुश होंगे कि जैसे भारत ने उस पत्रकार को जेल में डालकर चीन से कोई बड़ी जंग जीत ली हो।
और इन संघर्षों में होता क्या है? कप्पन लखनऊ जेल में बन्द रहे। उनकी मिडिल क्लास फेमिली केरल से लखनऊ और दिल्ली तक दौड़ते तबाह रही। पता नहीं जेल में क्या सुलूक हुआ। प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा इस ढलती उम्र में थोड़ी लड़ती रहीं, जितना कर पाई।
और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दिया। जमानत भी किसने लिया? कुमार सौवीर ने। वह कुमार सौवीर जो कुत्तों को खाना खिलाने जा रहे थे और लड़कों ने बाइक से ठोकर मारी, तबसे खुद सीधे होकर चल नहीं पाते और जब जमानत लेने की बात आई तो वह फालिज के शिकार होकर लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में पड़े थे। अस्पताल से आकर जमानत ली।
सिद्दीक कप्पन के फेमिली के लोगों ने रुंधे गले और आंखों में खुशी के आंसू लिए कुमार सौवीर के प्रति कृतज्ञता जताई। सोशल मीडिया पर थैंक्स बोला।
लेकिन यह हकीकत कचोटती है कि कोई बन्दा सरकार के चंगुल में फंस जाए तो उसका नाम लेकर चेहरा चमकाने वाले बहुत होते हैं लेकिन उसके लिए जेल में एकाध टाइम अच्छा खाना पहुंचा देने या जमानत लेने के लिए तैयार हो जाने वाले दुर्लभ होते हैं। बाकी तमाशबीन, सरकार के समर्थक, पुलिस के समर्थक तो बहुतेरे हैं, जो खुद फंसते हैं तो पिल्लों की तरह किकियाते हैं।
शायद यही जग की रीत है।
फोटो में कप्पन और सौवीर। यूँ ही पता नहीं क्यों आधी रात को वह कहानी दिमाग मे घूम गई और लिख डाला।भवतु_सब्ब_मंगलम

सत्येंद्र पीएस दिल्ली में मंझोले पत्रकारों की श्रेणी में बड़े पत्रकार हैं।

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