आपका नहीं, हताश का जीवन व्यर्थ हो जाएगा। उसे बचाइए

बिटिया खबर

: एक सचेत प्रयास भी एक जीवन को जीवंत, या फिर उसकी ढिबरी बुता सकता है: आत्महत्या पर आमादा व्यक्ति को मैंने अपने पास बुला लिया: परिवार तंतुओं का उल्लंघन तो अवसाद का बड़ा कारण :

कुमार सौवीर

लखनऊ : फेसबुक ने स्वार्थी, मूर्ख, समझदार और भावुक के साथ ही ऐसे लोगों के साथ भी जोड़ा है, जो विभिन्न रुचियों वाले होते हैं। इसलिए ही नहीं, उनमें से बहुत से लोग ऐसे होते हैं, इसलिए बस यूं ही इंसान के साथ भी जुड़ाव होता है। दूर और अनजाने में होने के बावजूद वे आत्मीय और प्रजा महसूस करते हैं।
ऐसे ही एक शख्स हैं अजय कुमार सिंह। मध्य प्रदेश के सीधे और जबलपुर में रहने वाले। सरकारी नौकरी छोड़कर उच्च न्यायालय में दावा में भी हाथ डाला। सीधा जुड़कर उनका कोई व्यवसाय भी है। आर्थिक संकट नहीं, बल्कि उनका पारिवारिक जीवन खराब तरह का है। इतना, क्या, कैसे और क्यों ? मैंने इसे जानने की नहीं तो कोई स्पष्ट प्रश्न-कोशिश की, और न ही जानने का प्रयास। हां, यह जरूर पता चला है कि वे प्रेम-पाश में हैं।
लेकिन अभी उनका एक पोस्ट दिखा। शैली नैराश्य, हताशा और अवसाद से लिथड़ी हुई थी। साफ लग रहा था कि वह अब आत्महत्या कर रहे हैं। अभी चंद दिनों पहले ही अजय सिंह ने मेरी रीइन चिटकने और ऑपरेशन की खबर सुन कर मुझे मेजेंजर पर मदद की पेशकश की थी। लेकिन चूंकि ऑपरेशन की तारीख स्पष्ट रूप से तय नहीं हो पाई थी, इसलिए मैंने उनकी सहायता लेने से समझदारी से इनकार कर दिया था।
लेकिन यह पोस्ट पढ़कर मैं एकदम से घबरा गया। लपक कर फोन। कई बार की कोशिश के बाद उन्होंने मोबाइल उठाया। वे व्यथित थे, हताशा और अवसाद के साथ। मद्यपान की अधिकता से भीगा था उनका स्वर। मैं कुछ कहने के लिए जैसे ही कोई भूमिका बांधना चाहता था, वह मेरी बात ही तोड़ देते थे। वे बोले कि, “अब जीवन है, कोई भी मेरा नहीं है और अब मैं जान देकर मुक्त होना चाहता हूं। इस वक्त नदी के पुल पर हूं।”
नंबर ही मेरा तो दिल-दिमाग होने सल्ब और दिल दहल गया। सीने में शोर करने लगीं।
बहुत कुछ करने और लगभग डपट कर मैंने उन्हें मेरा भाषण सुनने पर तैयार किया। फिर कई मोहरों में मैंने अपने निजी जीवन का आनंद लिया और परास्त घटनाओं को सुनकर उन्हें शांत कर दिया।
साफ किया कि लखनऊ में मेरा घर है। आमंत्रित किया कि वे फौरन लखनऊ आ जाएं। यहां कोई परेशानी नहीं। बीमारी के कारण कभी-कभी मेरी बेटी के पास चला गया हूँ। लेकिन बाकी समय मैं लगभग अकेला ही हूं, ओशो के स्वामी संकल्प के साथ भारत जरूर हूं। घर बड़ा है, इसलिए परेशानी हरगिज नहीं होगी।
अभी ताजा खबर यह है कि वे जबलपुर से सीधे लखनऊ की ओर निकल पड़े हैं। उन्होंने ही मुझे यह सूचना दी है। मेरे द्वारा तय किया गया है कि, “वे फोरन लखनऊ की ओर निकल गए हैं। बस परेशानी है कि वे अपनी कार चला रहे हैं।”
मैं ईश्वर पर नहीं, लेकिन एक बुद्धिमान व्यक्ति होने के कारण उन पर विश्वास रखता हूं। और अंधा कि आदमी से ही तो ईश्वर जन्म लेता है, जिससे आसगो उगता है।
आखिरी बस बात यह है कि भविष्य में अपने आसपास के लोगों पर लगातार नजर रखेंगे, जो असामान्य व्यवहार कर रहे हों, परेशान या होश दिखा रहे हों और अवसाद, नैराश्य या पराजित महसूस कर रहे हों हों।
हमारी एक कोशिश भी एक जीवन को खिलखिला सकती है, या जीवन की ढिबरी बुता भी हो सकती है।

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