दहलीज पर सदाशिव, स्वागत में काशी, महादेव भये गदगद

बिटिया खबर

: वाराणसी साहित्य महोत्सव के लिए काशी पर आलेख : काशिरित्ते-काशिरित्ते। एक बार आओ, दिल में हमेशा के लिए बस जाओ : यैर्दृष्टा यैः श्रुता काशो यैः स्मृता कोर्तिता तथा। त एव वन्द्याः पूज्याश्च कृतार्था मुक्तिभागिनः

विश्वनाथ गोकर्ण

काशिरित्ते : निसंदेह काशी इस धरा की सबसे प्राचीन नगरी है। काशी और इसके देव बाबा श्री विश्वनाथ एक दूसरे के पर्याय हैं। इस पर भी किसी को कोई शक नहीं है। इस पर भी कोई विवाद नहीं है कि सृष्टि का सबसे प्राचीनतम ग्रंथ ऋगवेद है। उसमें काशी का उल्लेख मिलना यह बताता है काशी की जड़ें कितनी गहरी हैं। ऋगवेद के तीसरे अध्याय में काशी के लिए ‘काशिरित्ते‘ कहा गया। ‘काशिरित्ते‘ शब्द का व्यापक अर्थ है। ‘काशिरित्ते‘ माने काशी विश्व से परे है। वो सर्वोत्कृष्ट है। आज जब काशी और बाबा श्री विश्वनाथ की चर्चा हो रही हो तो काशी महिम्न को समझना अनिवार्य हो जाता है। स्कंदपुराण के काशी खंड में परात्पर शिव के काशी आगमन का अद्भुत वर्णन है। साम्ब सदाशिव के परिवार के स्वागत में खड़ी काशी को अपनी दहलीज पर देख अजातारी महादेव भाव विभोर हैं। वो कहते हैं कि…
यैर्दृष्टा यैः श्रुता काशो यैः स्मृता कोर्तिता तथा।
त एव वन्द्याः पूज्याश्च कृतार्था मुक्तिभागिनः ।।
इस श्लोक का अर्थ कुछ इस तरह से है। काशी को जिन्होंने देखा… सुना… स्मरण किया या काशी का संकीर्तन (हर हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ गंगे) किया हो वे वस्तुतः वंदनीय और पूज्य हैं। इतना ही नहीं, ऐसे व्यक्ति ही जन्म चक्र से मुक्ति के भागी भी हैं। स्वयं महादेव का काशी के बारे में अपने श्रीमुख से यह सब कहना इस नगरी की पवित्रता का द्योतक है।
ऐसी पवित्र नगरी काशी में बसते हैं बाबा विश्वनाथ। ये तो एक बात है लेकिन दूसरी अहम बात ये है कि काशी का हर रहिवासी बाबा को अपने दिल में बसाये हुए है। उसका कोई भी काम श्री विश्वनाथ को स्मरण किये बिना होता ही नहीं। वो एक दूसरे का अभिवादन भी महादेव करके करता है। जवाब भी हर हर महादेव से देता है। काशी के समाज को, उसकी सभ्यता को सिवाय अपने विश्वनाथ को भजने के कुछ सूझता नहीं है। तैंतीस करोड़ देवताओं को पूजने वाली इस नगरी के लिए कहा भी जाता है कि यहां कंकर कंकर में शंकर विराजते हैं। यहां की जितनी आबादी है उससे ज्यादा तो यहां के घरों और देवालयों में पिनाकधारी शिव के लिंग विराजते हैं। देखने और सुनने में ’भज विश्वनाथम्’ महज दो शब्द समझ में आते हैं लेकिन हर काशीवासी के लिए ये दो शब्द ही उसकी मनोकामना पूर्ति का सिध्द मंत्र है। उसकी साधना का मार्ग है। अपने इष्ट को पाने का तंत्र है। शायद यही कारण है कि अनादिकाल से बाबा विश्वनाथ काशी के समाज, उसके साहित्य और कला में प्रतिम्बिबित होते हैं। काशी के हर रस में वो रचे बसे हैं। ’हर हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ गंगे’ के नाद में बाबा की गूंज अनहद तक है।
कहते हैं कि नाद ही ब्रह्म है। अब यहां समझना होगा कि आखिर ये नाद है क्या…? ॐ ही नाद है। ॐ ही ब्रह्म है। ॐ ही शिव है। तो जब ॐ के साथ शिव एकाकार हैं तो उसके शरणागत रहना ही जीवन है। यह काशी का अपना जीवन दर्शन है। यही वजह है कि काशी आने वाला हर शख्स हमेशा के लिए काशी का होकर रह जाता है। वैसे तो काशी का शख्स बाबा विश्वनाथ और गंगा मैया का दामन कभी नहीं छोड़ता। वह इस नगरी से अलग होने का खयाल भी मन में आने नहीं देता लेकिन काशी आकर मात्र एक बार बाबा का दर्शन पाने वाला भी काशी का होकर रह जाता है भले ही उसका देह पिण्ड कहीं अन्यत्र बस गया हो।
सात वार और नौ त्यौहार वाली इस नगरी का हर दिन उत्सव है। जिस शहर के बारे में मरणम् यत्र मंगलम् कहा गया हो उसकी उत्सव धर्मिता के बारे में कुछ कहना शायद छोटापन होगा पर यहां उसकी चर्चा जरुरी होनी चाहिए। मास शिवरात्रि से लेकर महाशिवरात्रि तक, शिव बारात से लेकर रंगभरी एकादशी पर माता पार्वती के गौना पर उठने वाले डोला तक, सावन के हर सोमवार से लेकर प्रदोष तक, अन्नकूट से लेकर देव दीपावली तक, शिवार्चन से लेकर बाबा श्री काशी विश्वनाथ को हर साल सुनाये जाने वाले रामचरित मानस के नवान्ह पाठ से लेकर राम कथा तक के जो भी आयोजन बाबा के परिसर में होते हैं उनमें काशी की संस्कृति का वैविध्य दिखायी देता है। बाबा की हर रोज होने वाली आरतियों से लेकर उनके श्रृंगार तक और श्री काशी विश्वनाथ को लगने वाले भोग तक में काशी स्वयं जैसे विराजित होती है। बाबा के श्रृंगार में धतूरा और भोग में भांग का रखा जाना या जलाभिषेक के बाद बाबा और उनके अरघे को अंगौछे से पोछा जाना काशिका ही तो है।
फाल्गुन मास में पड़ने वाली महाशिवरात्रि काशी और बाबा विश्वनाथ का सबसे बड़ा पर्व है। इस तिथि को पूरा शहर उत्सव के रूप में मनाता है। यह शहर पूरे दिन व्रत रखता है। पूरी रात भजन कीर्तन कर जागरण करता है। कहते हैं कि इक्वीनोक्स (दिन तथा रात के समय बराबर का होना) के कारण सृष्टि की दैविक ऊर्जा इस रात्रि के इस प्रहर में जागृत रहती है। अगर हम रात भर जाग कर भक्ति भावना से पूजन करें तो इस दैवीय ऊर्जा को प्राप्त कर सकते हैं। इस तिथि पर उमापति महादेव की बारात शहर के तमाम इलाकों से निकल कर बाबा श्री काशी विश्वनाथ के धाम तक आती है। इस बारात में सिर्फ उरगभूषण के गण ही नहीं होते, उसमें पूरी काशी शामिल हो जाती है। सबके सब बाराती बन जाते हैं।
अब शिव विवाह तो गया लेकिन माता पार्वती का गौना नहीं हुआ। तो रंगभरी एकदशी को माता का गौना होता है। वस्तुतः यह पर्व काशी ही नहीं सनातन संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। यह एक सामाजिक और लोक परम्परा का निर्वहन है। इसके तहत इंदुशेखर भगवान शिव और मां पार्वती की सचल प्रतिमाओं का श्रृंगार कर उनकी शोभायात्रा निकाली जाती है। रास्ते भर उनके साथ अबीर, गुलाल से होली खेली जाती है।
कार्तिक पूर्णिमा पर देव दीपावली देखने के लिए प्रतिवर्ष लाखों लोग काशी आते हैं। घाटों पर होने वाली दीप सज्जा बहुत खूबसूरत होती है पर काशी विश्वनाथ के दरबार में होने वाली अलौकिक देव दीपावली का कोई सानी नहीं है। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में देव दीपावली पर मिट्टी के दीयों से विशेष सजावट की जाती है। इस दौरान बाबा दरबार में बिजली की सारी लाइटों को बंद कर सिर्फ तेल से जलते हुए दीयों के बीच श्री काशी विश्वनाथ की अलौकिक आरती की जाती है।
श्री काशी विश्वनाथ के प्रांगण में कला और संस्कृति से जुड़ा एक और आयोजन भव्य तरीके से होता है। वह है शिवार्चन। इसके तहत राग रागिनियों के जरिए बाबा का अर्चन किया जाता है। अपने देव के पूजन अर्चन का यह काशी का अपना अलौकिक तरीका है। हर वर्ष नये कलाकार, नयी प्रस्तुति, नया राग, नया अनुराग। इस आयोजन की खासियत ये है कि इसे सुनने वाले ही नहीं प्रस्तुति दे रहे कलाकार भी इस कदर डूब जाते हैं कि उनकी आंखों से अश्रुधार खुद-ब-खुद बहने लगते हैं। अपने ईष्ट की या अपने देव से प्रार्थना का इससे बेहतर तरीका और क्या हो सकता है ?
काशी में रचे गये तमाम साहित्य का भी बाबा श्री काशी विश्वनाथ से एक अंतरंग सम्बन्ध रहा है। सब जानते हैं कि सृष्टि की रचना ही इस काशी के पंचक्रोश क्षेत्र में हुई। उस काल में इस ब्रह्मांड का अपना कोई अस्तित्व नहीं था। चारों तरफ सिर्फ जलराशि ही थी। सबसे पहले ब्रह्मा जी का यहां आना और उसके बाद शिव पार्वती और विष्णु का प्राकट्य सब अनादि काल में लिखे गये पुराणों में वर्णित है। चार वेद और सोलह पुराण वस्तुतः उस काल का रचित साहित्य ही तो है और काशी उस काल का एकमात्र साक्षी है। शिव पुराण, देवी पुराण, विष्णु पुराण और स्कन्द पुराण में काशी और उसके देव देवाधिदेव बाबा विश्वनाथ का सांगोपांग वर्णन किया गया है।
चारों वेद की ऋचाओं से लेकर आदि शंकराचार्य रचित मंत्रों और श्लोकों तक में काशी और विश्वनाथ का उल्लेख यह बताने के लिए काफी है कि हमारे बाबा सिर्फ काशी ही नहीं सनातन के हर अनुयायी के मानस पटल पर अंकित हैं। ये तो हुई देवकाल की बात।
आज के दौर में भी काशी को लेकर लिखी जा रही कहानियों, कविताओं से लेकर भजनों तक में बाबा विश्वनाथ शीर्ष पर हैं। मनोरंजन के सबसे बड़े साधन फिल्म में भी काशी और बाबा विश्वनाथ को प्रसंगवश लाया जाना इस बात का प्रमाण है कि भारत वर्ष का समाज, साहित्य और संस्कृति काशी और उसके बाबा श्री काशी विश्वनाथ को तज कर जी नहीं सकती। हर हर महादेव… हर महादेव… हर महादेव।
विश्वनाथ गोकर्ण से सम्पर्क आप इस नम्बर पर कर सकते हैं 9918200501

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