इस खब्‍ती आदमी का नाम है आरडी शाही

बिटिया खबर

: यह तीनों उल्टे चलैं, शायर, सिंह, सपूत : बेंच से हाथ जोड़ कर पैरवी की, वकीलों का दामन बच गया : बाबा जी का घंटा बजाना हो तो सरकारी वकील बन जाओ : लोगों को खिलाने की हैसियत मुझमें थी ही नहीं, और मतदाता भी तो लोकाचार के हिसाब से ही चलते हैं : सरलता का मतलब यह नहीं कि जो जहां चाहे, झांड़ा फिर ले :

कुमार सौवीर

लखनऊ : कई लोगों के व्‍यवहार में गुस्‍सा, चिढ़चिढ़ापन, अवसाद, हताशा, मरकहा अंदाज, काइयांपन, कपट, छिछोरापन, चिरकुटई, चोरी, लैमारी, ठगी, ईर्ष्‍शा जैसे भाव आपने अक्‍सर देखा होगा। कई लोग ऐसी प्रवृत्ति वाले लोगों से बहुत दुखी, कष्‍ट और गुस्‍से में रहते हैं। माना जाता है कि वे अपनी तो जिन्‍दगी खराब कर ही रहे हैं, दूसरों का भी जीना हराम किये हैं। लेकिन बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं, जिन्‍होंने यह देखने की कोशिश की होगी कि उनमें यह व्‍यवहार क्‍यों है, उसका कारण क्‍या है। सामान्‍य तौर पर इसका जवाब दिया जाता है डीएनए का डिसबैलेंस होना। इनमें कुछ भाव तो जैविक होते हैं, परम्‍परागत रूप से मौजूद होते हैं, कुछ बीमारी को लेकर उपजते हैं, तो कुछ लोग हताशा या पराजय को लेकर भड़कने लगते लोग उसे सामान्‍य घटना के तौर पर झटकने, देखते या समझने की कोशिश करते हैं। वे तो अपने-आप से संतुष्‍ट होते हैं, लेकिन उनकी जिन्‍दगी हमेशा हमेशा कष्‍ट-कारी होती है।
लेकिन कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जिनके डीएनए में डिसबैंलेस में जिन्‍दगी नरकुल में गन्‍ना, कटहल में बड़हर और आलू में कंद-सूरन सी अमृत बन जाती है। आरडी शाही, यानी रिपुदमन शाही का नाम ऐसे ही डिसबैंलेंसिंग एटीच्‍यूट का नतीजा है। शाही जी की माता जी अपने पिता की इकलौती संतान थीं। नाना सम्‍पन्‍न, जबकि उनका दामाद एक मामूली पोस्‍टमास्‍टर। शाही जी के माता-पिता हमेशा घटिया रबर की चप्‍पल या पुश्‍तों पुराना सस्‍ता चमरौधा पहनते थे, लेकिन अपने बच्‍चों को बाटा का जूता-चप्‍पल। वैसे थे तो बहुत प्रेमी और सहज, लेकिन ताव खा जाएं तो तुर्की-ब-तुर्की। सरलता का मतलब यह तो है नहीं कि जो चाहे, जितना भी चाहे, जहां भी चाहे, झांड़ा फिर ले।
बहरहाल, लखनऊ हाईकोर्ट के अवध बार एसोसियेशन में महासचिव रहे आरडी शाही जी का किस्‍सा तो उनके जन्‍म से ही शुरू हो गया। एक तो पैदा ही गोरखपुर वाले बड़़हल-स्‍तुति क्षेत्र बड़हलगंज हुए, उस पर तुर्रा यह कि नाना से मिला तोहफा ही डिफाल्‍टर हुआ। अपने प्रत्‍येक नवासे के जन्‍म पर नाना अपना सारा कामधाम छोड़ कर करीब दस कोस दूर सेवईं बाजार से लडि़हा-बैलगाड़ी भर अनाज, तेल, पुआ और मेवा लेकर दमाद के घर आते थे। लडि़हा के पीछे एक दुधारू गाय भी ठुकुम-ठुमुक करती चलती थी। मकसद यह कि बेटी और दमाद-नवासे को कोई दिक्‍कत न हो। बेटी को मिल रहा है, तो दामाद की क्‍या मजाल कि वह चूं भी बोल सके। मामला चकाचक।
चौथी संतान थे आरडी शाही। फिर वही टिटम्‍बर किया नाना ने। लेकिन नाना के वापस जाने के बाद लोगों को पता चला कि उस गाय में दो प्रॉब्‍लम है। जैसे शाही जी, जिनकी कद बहुत ज्‍यादा है और प्रत्‍यक्ष व्‍यवहार में काफी अक्‍खड़़। ठीक वैसे ही वह गाय, एक धंचक कर चलती थी, और दूध भी बमुक्लिन डेढ़ सेर। अब कौन किसने शिकायत करे। बाप को मतलब ही नहीं था, लेकिन मां ने मन ही मन सोचा कि, “जा बेटा ! इतने में ही काम चला ले।“ बस, इसी के साथ ही जिन्‍दगी एक्‍सप्रेस-वे के बजाय खड़ंजा में हउंचक-धउंचक करने लगी। बिलकुल पैसेंजर रेल की तरह। जिधर भी सोचा, मुंह उठाया, पहुंच गये। बड़हलगंज से गोरखपुर, गोंडा, अयोध्‍या, इलाहाबाद और अब लखनऊ। इतने स्‍टेशन तो बुलेट-ट्रेन में भी नहीं होंगे।
आर्थिक हालत भले ही ठनठन-गोपाल से तनिक थोड़ी ज्‍यादा ही रही, लेकिन जिन्‍दगी शान के साथ बीती। अनजान शहर में रोजी खोजना, दिग्‍गज वकीलों के बीच जल-महल बनाना और एक अलग छवि बनाना कोई आसान काम नहीं होता। इलाहाबाद में एलएलबी के बाद सन-91 में शुरू की वकालत ने शुरुआत में दिक्‍कतें दिखायीं, लेकिन उसके बाद नियमित भोजन मिलने लगा। सरकारी वकील बने, तो जिन्‍दगी आसान होने लगी। लेकिन जल्‍दी ही अहसास हो गया कि सरकारी वकील होना भी कोई वकालत है। वैसे भी इस निवृत्ति के लिए श्रेय था सरकार बदल जाने वाला राजनीतिक कारण, जिसके लिए शाही जी को सरकारी धंधा छोड़ना पड़ा। परिश्रम धेला भर नहीं, रंगबाजी झौव्‍वा भर। अगर केवल मेहनताना ही सब कुछ होता, तो अलग बात है। लेकिन फिर मेधा क्‍या घंटा बजाने के लिए हासिल किया है ?
छोड़ दिया यह धंधा, तो संतुष्टि आने लगी। खुद्दारी आयी तो झाड़ छोड़ सीधे ताड़ जैसे अवध बार एसोसियेशन के महासचिव बन गये। लेकिन एक कहावत है कि, “रांड़ रडापा तब रखै, जब रंड़वे रहने दैं।” आरडी शाही को धूल-धूसरित करने के लिए केकड़ों की चतुरंगी सेना सक्रिय हो गयी। डायरेक्‍ट नहीं, स्‍वास्‍थ्‍य भवन से। लगी धमाचक। पूरा इलाका युद्ध-क्षेत्र में तब्‍दील हो गया। वकील बनाम पुलिस। तब की डीएम के कपड़े तक फाड़े गये। चमकने लगीं लाठियां, तो भाग कर घुस गये वकील अदालत में। पूरा हाईकोर्ट दहकने लगा। हंगामा देख हाईकोर्ट प्रशासन ने भी सीसीटीवी कैमरे तक आनन-फानन बदल डाले। गुस्‍साये चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूण ने मामला इलाहाबाद मंगवा लिया। सात जजों की बेंच ने बार के महासचिव यानी आरडी शाही को तबल किया।

यह पहला मौका था जब हाईकोर्ट ने बार महासचिव को बुलाया। अदालत गुस्‍से में थी, और आशंका थी कि वकीलों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो। बहुत कम ही होता है कि चीफ जस्टिस कहा रहा हो कि, “मैं तुमसे कोई सफाई नहीं चाहता।”, और बाकी जज बोल रहे हों कि, “नहीं शाही जी ! आप बोलिये। हम आपकी बात सुन रहे हैं।“ मामला संगीन था। जानकार बताते हैं कि आरडी शाही चाहते तो मामले में अपना हाथ झाड़ कर तोहमत वकीलों पर थोप देते। लेकिन खचाखच कोर्ट में शाही जी ने बेंच के सामने हाथ जोड़ कर वकीलों की पैरवी की। जबर्दस्‍त पैरवी थी वह, वकीलों का दामन बच गया। लेकिन बाद के बरसों में….
खैर, लेकिन आप हाथी हैं, तो इसका मतलब यह कैसे हो सकता है कि आप झूमते चलें ? किसी ने पैलगी की, तो उसको जवाब तक न दें ? यह तो अहंकार ही है। है कि नहीं ? लेकिन उनका कहना है कि मैं इतना लम्‍बा हूं कि अक्‍सर देख ही नहीं सकता। वैसे भी शाही चरण-स्‍पर्श न तो करते हैं, और न ही पसंद करते हैं। हां, किसी को रोकते भी नहीं। शाही को खब्‍ती भी कहा जा सकता है। बार के महासचिव और अध्‍यक्ष पद के लिए वे जितनी बार मैदान में आये, किसी को एक चाय या समोसा तक नहीं खिलाया। जवाब है कि, ”कोई भी शख्‍स अपनी हैसियत के हिसाब से काम करता है। मेरी हैसियत नहीं है कि मैं किसी को चाय-समोसा खिला सकूं। मुझे अपने मतदाताओं से भी कोई गुरेज नहीं है। आखिर वे भी तो लोकाचार के हिसाब से ही तो मतदान करते हैं।“ वैसे चर्चाओं के अनुसार हाईकोर्ट अवध बार एसोसियेशन के चुनाव में प्रत्‍याशी का खर्चा करोड़ से ऊपर हो चुका है।

अधिकांश वकीलों का यही मानना है कि बार के अध्‍यक्ष पद के लिए आरडी शाही सर्वोत्‍तम हैं। फिर वह क्‍यों हार गये ? जवाब देते हैं एक वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता। उनका कहना है कि जब तक इस बार भी शामिल सीओपी को कड़ाई से लागू नहीं जाएगा, जिससे हाईकोर्ट में अनावश्‍यक भीड़ जुटी है, आरडी शाही का जीतना असम्‍भव है। उन्‍हें कौन हटायेगा, अदालत? आखिर अदालत इस मामले में स्‍यूमोटो हस्‍तक्षेप क्‍यों करेगी? वकील करेंगे न। कौन वकील करेंगे, क्‍या बार करेगी ? नहीं। फिर, जीएल यादव जैसे झक्‍की लोग भी तो मौजूद हैं हाईकोर्ट में।
अब समझ में नहीं आता है कि जीएल-पंथी लोग अखिलेश यादव की सरकार बनवाने की पैरवी करें, या फिर आरडी शाही का हरहर बमबम।
लीक-लीक गाड़ी चलै, लीकहि चले कपूत।
यह तीनों उल्टे चलैं, शायर, सिंह, सपूत।

( यह श्रंखला-बद्ध रिपोर्ताज है। लगातार उपेक्षा के चलते प्रकृति के लुप्‍त-प्राय पहरुआ के तौर पर। बिम्‍ब के तौर पर चुना गया है वृक्ष का वह पहलू, जिसका लसलसा गोंद ही नहीं, बल्कि पूरा पेड़ ही प्रकृति के लिए समर्पित है। लेकिन इसमें जोड़ने की जो अद्भुत क्षमता और दैवीय गुण है, उसके बहुआयामी आधार पर जोड़ने की कोशिश की गयी है। समाज में ऐसे गुणों को पहचान, उसके प्रयोग और समाज के विभिन्‍न क्षेत्रों में ऐसे गुणों की उपयोगिता और उपादेयता को केवल समझने-समझाने के लिए प्रयोग किया गया है। कोशिश की गयी है कि क्षेत्र के विभिन्‍न समूहों के प्रतिनिधि-व्‍यक्तियों को इसमें शामिल किया जाए। शायद आप उससे कुछ सीखने की कोशिश करना चाहें।
यह खबर www.dolatti.com पर है। लगातार सारे अंक एक के बाद एक उसी पर लगा रहा हूं, आपकी सुविधा के लिए। फिलहाल तो यह श्रंखला चलेगी। शायद पचीस या पचास कडि़यों में। रोजाना कम से कम एक। उन रिपोर्ताज की कडि़यों को सिलसिलेवार हमेशा-हमेशा तक समेटने और उसे खोजने का तरीका हम जल्‍दी ही आपको बता देंगे।
संवेदनाओं का लसोढ़ा– चौदह )

2 thoughts on “इस खब्‍ती आदमी का नाम है आरडी शाही

  1. R D Shahi Sir is a man of ethics and morality , he always give us courage to move in right direction and always happy to help every Advocate
    So i am stand with him with my 100% efforts

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