कांवड़-यात्रा: यही तो है दंगा और बलवाइयों का मूल चेहरा

दोलत्ती मेरा कोना सैड सांग

: वसीम बरेलवी की सलाह थी कि बच्चे को मजहबी शिक्षा हरगिज रोकें :आप शिवलिंग पर जल चढ़ाने जा रहे हैं तो फिर यह क्‍या हो रहा है : महादेव भोलेनाथ के भक्‍त इतने अंधभक्‍त मवाली कैसे बने : दंगा और दंगाइयों को पहचानिये। निदान भी खोजिए : लखनऊ में लाख से ज्‍यादा मुसलमानों ने जमकर उत्‍पात किया था, अब हरिद्वार में कांवडि़यों ने अग्नि में लघुशंका की :

कुमार सौवीर

लखनऊ : बरेली में सन-10 में जबरदस्त दंगा हुआ था। महुआ न्यूज चैनल के लिए अपनी टीम को लेकर मैं मौके पर गया। शहर के बड़े डॉक्टर और लखनऊ के पढ़े मित्र एजाज हसन खान के घर मिलने गया। वे दंगाग्रस्त पीड़ितों के लिए राहत शिविर संचालित करते थे। एजाज से मेरी मुलाकात लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल कालेज में सन-85 में हुई, जहां वे जूनियर डॉक्टर थे।
एजाज अपने साथ नामचीन शायर वसीम बरेलवी के घर ले गए। हालात से वसीम भाई विह्वल थे। रास्ता क्या निकाला जाए, इस सवाल पर वसीम जी ने कहा कि इस हालात से निजात निकालने का कोई भी शार्ट-कट नहीं हो सकता।
बातचीत के दौरान मुझे उन्होंने बताया कि, अगर आप स्थाई समाधान चाहते हैं, तो इसका केवल एक ही रास्ता है और उसमें दो शर्तें अनिवार्य होनी चाहिए। और इसने दोनों ही शर्तों को बेहद कड़ाई के साथ लागू करने का माद्दा सरकार और सभी समुदायों में होना चाहिए। एक भी कड़ी टूटी, तो समाधान नामुमकिन होगा।
पहली शर्त तो यह कि किसी भी धर्म-समुदाय के किसी भी बच्चे को उसके या किसी भी मजहब को लेकर कोई शिक्षा न दिया जाए और न ही उसका कोई इशारा भी नहीं। और दूसरी शर्त यह कि किसी भी बच्चे की परवरिश सिर्फ उसकी मां पर ही हो। घर के किसी भी मर्द पर कोई भी दखलंदाजी न तो बच्चे पर हो, और न ही बच्चे की मां पर।बिलकुल दुरुस्‍त कह रहे थे वसीम बरेलवी।
मैंने सन-09 में कानपुर समेत कई धर्म-स्‍थलों पर जुटी अपार भीड़ को बहुत करीबी से देखा है। मुझे याद है कि कोई नौ बरस एक शुक्रवार को पहले लखनऊ के इमामबाड़े पर बनी टीले वाली मस्जिद से निकली करीब एक लाख मुसलमानों की भीड़ ने पूरे लखनऊ में बेहिसाब उत्‍पात किया था, वह किसी दंगा से कम नहीं था। इस्‍लाम से इतर महिलाओं और लड़कियों को पहचान कर उनके कपड़े फाड़े थे, तलवार और डंडे लेकर निकले इन लोगों ने हजरतगंज तक बवाल किया।

बुद्धा पार्क में लगी बुद्ध की प्रतिमा को बामियान की तरह चकनाचूर कर दिया था। उसी दिन इलाहाबाद, कानपुर और मुम्‍बई तक में इन मुसलमानों ने अपना मूल चरित्र दिखा दिया था। उसी दौरान कानपुर में रामदेवी से कैंट की ओर सड़क पर बने मस्जिद से निकले हजारों नमाजी-बवालियों ने मेरी कार पर तोड़फोड़ की थी। और अब हरिद्वार में हजारों कांवडि़यों ने यह एक मुस्लिम परिवार के साथ यह हिंसक सुलू‍क किया है। वह कांवडि़या जो खुद को भोलेनाथ के भक्‍त कहलाने का दम भरते हैं। क्‍या यह सच नहीं है कि शिवरात्रि के दौरान पूरे देश के सभी राज्‍यों में और खास कर हिन्‍दीभाषा क्षेत्र के इलाकों में पूरा प्रशासन और पुलिस सहम जाती है। हर जगह बवाल, तोड़फोड़, हिंसा।
सच बात यही है कि हमें अपने नागरिकों को देश और मानवता के प्रति सजग और जिम्‍मेदार बनाना चाहिए, उन्‍हें बलवाई या दंगाई नहीं। और अगर हम अपने लोगों को जिम्‍मेदार नागरिक बनाना चाहते हैं तो बचपन से ही हमें इसके लिए माहौल भी बनाया जाना चाहिए। यह नहीं कि जिसका जहां मन करे, धर्म-स्थल स्थापित कर दे। धर्म को धंधा में तब्दील करने वाली कोशिशों का सिर ही झुका दिया जाए। हमें संकल्‍प लेना ही होगा कि हमारे देश का बच्चा जब सड़क पर कहीं गुजरे, तो उसे उत्साहित और प्रेरणा-परक माहौल मिले, न कि पगलाई उत्तेजना और हिंसा।

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