: डॉ अखिलेश दास आज नहीं हैं, लेकिन उनका इंटरव्यू ताजा है : शराब मैं भी पीता हूं और आप भी, लेकिन मर्यादाशील आपसे ज्यादा हूं। इसीलिए मैं सच बोलता हूं, जबकि आप अफवाह और सिर्फ झूठ : जैसे किसी ने मेरे तन-मन में आग लगा दी हो। मैंने भी “तुर्की ब तुर्की” प्रहार दिया : जवाब इतना करारा था कि अखिलेश दास चारोंखाने चित्त हो गये : चिडि़या बदनाम हुई डॉ अखिलेश दास तेरे लिये: दास्तान-ए-बैडमिंटन :
कुमार सौवीर
लखनऊ : लखनऊ में एक बड़ा दिमागी धंधेबाज शख्स हुआ करता था। नाम था डॉ अखिलेश दास। सत्ता की बिसात में बादशाह और वजीर और घोड़ा, फीला, ऊंट ही नहीं,अपने प्यादों को भी पसंद की जगह पर चिपकाने की महारत थी अखिलेश में। तब मैं महुआ न्यूज चैनल का उप्र ब्यूरो-चीफ था, जबकि अखिलेश दास सांसदी का चुनाव लड़ने की तैयारी में थे।
सन-09 के चुनाव में मैं पूरे प्रदेश में घूम-घूम कर खबरें खोजा करता था, खबरों के लिए जरूरी लोगों का इंटरव्यू लिया करता था। उसी दौर में जब मैंने अखिलेश जी का इंटरव्यू लेने के लिए कई बार इनको फोन किया, तो उनकी आवाज के बीच ही उनकी सेक्रेटरी शान बख्शी ने बताया कि हर बार यही बताया कि साहब घर में हैं नहीं, और जब भी आयेंगे उनको खबर कर दूंगी। ठीक यही जवाब देते हुए उनके पीए आनंद ने भी मुझे हर बार टरकाया।
सच बात तो यही है कि किसी भी नेता की इच्छा हो सकती है कि वे मेरे प्रश्नों का जवाब दे, अथवा नहीं। लेकिन मेरा धर्म कहता है कि मैं आम आदमी से जुड़े सवाल किसी भी तत्सम्बन्धी नेता या अधिकारी से हर कीमत पर पूछूं। मेरा अधिकारी है सवाल पूछना, जबकि संबंधित शख्स का पूरा अधिकार है कि वह जवाब दे या न दे।
तो, तय हो गया। अगली सुबह-सुबह मैं अपनी ओबी वैन समेत आउटडोर रिकार्डिंग स्टाफ के साथ पुराना किला इलाके में अखिलेश दास के घर आ गया। दरवाजा बंद था। मेरा भेजा हुआ विजिटिंग कार्ड भी बेअसर रहा। मैं ड्राइंगरूम के बाहर खड़ा था, जबकि कई लोग अन्दर आते-जाते रहे। सिवाय कुमार सौवीर और मेरी टीम के अलावा। मेरी टीम के लोग बोर और उपेक्षित होते जा रहे थे, जबकि मैं हल्का उद्विग्न भाव में भी संयत होने की कोशिश में ही बना रहा।
एक घण्टे की प्रतीक्षा के बाद जब कई लोगों के साथ अखिलेश दास अपने ड्राइंगरूम से बाहर निकले तो मैंने तेज आवाज में कह दिया कि, ” अखिलेश जी ! बड़ा आदमी होने का मतलब यह नहीं होता है कि आप अपने पुराने परिचितों से मिलने से भी मुंह चुरा ले।”
अखिलेश दास हड़बड़ा गए, और फिर अचकचा कर मुझे मेरी पीठ से मुझे थामा। मेरा गुस्सा खत्म होकर सहज और सामान्य हो गया। मेरा स्टाफ भी उत्साहित हुआ। माहौल सहज बनाने के लिए मैंने कहा,” आपका वक्त बहुत कीमती है, आप बेफिक्र रहिये, मेरे सवालों में आधा घंटा से भी कम लगेगा।”
अखिलेश दास फिर वापस ड्राइंगरूम में वापस लौटने लगे। पीछे-पीछे करीब 25 लोग भी घुस आए। शोर बढ़ा, तो मैंने ऐतराज किया। भीड़ को दास जी ने चुप कराया, फिर बोले,” कोई बात नहीं।आप शुरू कीजिए।”
मैंने उनसे अपने सवाल किये। कुछ सरल, कुछ जिज्ञासा और कुछ बेहद तीखे भी। मुझे खुशी हुई कि अखिलेश दास जी ने मेरे हर सवाल का जवाब पूरे तसल्ली-बख़्श अंदाज में दिया। कोई आधे घंटे तक इंटरव्यू चला। पिन-ड्राप, कोई शोर नहीं। कोई खांस-पाद भी नहीं। बातचीत के खत्म होने के बाद मैंने अपनी आदत के मुताबिक औपचारिकता जताते हुए विनीत भाव में कहा, ” आपका समय बहुत लिया, उनके लिए आपको दिल से धन्यवाद। ”
यह सुनते ही और अखिलेश दास ने मेरी दाहिना बांह को बाया हाथ से मुझे पकड़ा और वापस सोफे पर बिठा लिया मुझे। और फिर अपने थुलथुल शरीर उचका-उचका कर हो-हो करते हुए मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा कि, “आपने यह जो इंटरव्यू लिया है। वाह लाजवाब था। वाकई दिल खुश हो गया। इसके पहले तो आपके बारे में मेरी सोच बिलकुल अलग ही थी। मुझे तो लोग यह बताते थे कि आप दिन-रात भर दारू पीकर लुण्ड-पुण्ड पड़े रहते हैं। लेकिन आज आपके बारे में मेरी सारी गलत-फहमियां साफ हो गई!”
जैसे किसी ने मेरे तन-मन में आग लगा दी हो। मैंने भी “तुर्की ब तुर्की” जवाब दिया, ” शुक्रिया अखिलेश जी ! वैसे आपके बारे में भी मुझे कई बड़े अफसरों, पत्रकारों और नेताओं से कई बार पता चल चुका है कि यह आप देर शाम नौ बजे के बाद से शराब पीना शुरू करते हैं और उसके बाद पूरे शहर में अपने दोस्तों के साथ ड्राइव पर सड़कें नापने को निकल जाते हैं। और रात ग्यारह से बारह बजे के आसपास से ही आपके घर आपके दोस्तों के साथ जुए की फड़ जमनी शुरू हो जाती है। जिसमें आपके कई नेता, बड़े अफसर और व्यापारी भी होते हैं। चर्चा तो यह भी है कि आप जिसको कुछ लाभान्वित करना चाहते हैं, उसको उस दिन जुआ के दौरान इतनी जीत दिला देते हैं कि उनकी जेबें नोटों से भर जाता हैं। कई बार तो वह जुआड़ी अपने जबरिया जीतने के बाद नोटों की गड्डियां लादकर अपनी गाड़ी से घर जाता है। कई लोगों ने मुझे बताया है कि जुआ की फड़ और बैठकी के पूरे दौरान आप राजनीति, नौकरशाही और व्यवसाय को लेकर आप बहुत बड़े-बड़े फैसले लिया करते हैं। मैंने सुना है सबेरे फिर सात बजे तक यह कार्यक्रम शराब और जुए के साथ चलता रहता है, लोग किसी मोहरे की तरह लगातार बदलते ही रहते हैं। डील होती रही हैं। मोहरों की जीत और होती रहती देखते ही रहते हैं आप। फिर सो जाते हैं और दोपहर करीब एक बजे के आसपास आपकी यही दिनचर्या फिर शुरू हो जाती है। हालांकि जिन लोगों ने आपके बारे में यह सब जो बताया है, उस पर मैं तनिक भी विश्वास नहीं कर सकता। क्योंकि मैंने ऐसा कुछ भी आपके बारे में कभी भी नहीं देखा है। लेकिन क्या आपने किसी भी वक्त मुझे शराब पीते हुए कभी देखा हो तो बताइये। हां, इतना जरूर है कि शराब आप भी पीते हैं, और मैं भी पीता हूं। लेकिन जिस तरह आप पूरी मर्यादा के साथ शराब पीते हैं, आपसे ज्यादा मर्यादा का पालन मैं खुद भी करता हूं। लेकिन आज बता रहे हैं कि आपने कुमार सौवीर को शराब पीकर टल्ली होते देख लिया है। कमाल की बात है न ?”
खैर, अखिलेश दास को लेकर कई स्टोरीज हम लगातार छापते ही रहेंगे। लेकिन फिलहाल आइये हम आपको दिखाते हैं वह इंटरव्यू, जिसमें मैंने अखिलेश दास से विस्तार से बातचीत की थी।
बीबीडी के संस्थापक डॉ अखिलेश दास गुप्ता के साथ हुआ मेरा इंटरव्यू अगर आप देखना चाहें तो इस लिंक पर क्लिक कीजिए।
मुरलीधर होता तो अतीक-अशरफ की पुंगी बहुत पहले बज जाती