: अपना खुद का एक रुतबा है जनाब ! आप हमारा कोई फ़र्क नहीं रखते हैं: यूपी के कई इंसान अधिकारी रहते हैं, लेकिन इनमें से कुछ झक्की भी: टूट गए सुराही का श्रेष्ठ उपयोग का नायाब नमूना हैं राजेन्द्र : फालतू खर्च करने के पहले उनके ऋण वापस कर लें, जिन्होंने आपको अच्छा समझ के ऋण दिया :
कुमार सौवीर
लखनऊ : सुराही तो कभी भी टूट सकता है। यह भी उसका मोहरा ही टूट गया। फिर अचानक पता चला कि सुराही का निचला आधार टूट गया। लेकिन इसके बावजूद उसका कई इस्तेमाल हो सकता है। उसे घड़े की तरह भी लगाया जा सकता है। परिंदों के पन्नों से भागने वाले पात्रों का इस्तेमाल किया जा सकता है। आप उसे गमले की तरह भी बदल सकते हैं। और कुछ न मिले, तो उसे तोड़कर बच्चे उसे गिट्टी या गेंद-ताड़ी की तरह खेल सकते हैं। प्रेग्नेंट महिलाएं चुपके-चुपके उसके टुकड़ों को खा कर अपना कैल्शियम लेबल में भी टेन करने का लेकिन स्वाद का इस्तेमाल कर सकती हैं।
किसी भी सुराही की शुरुआत से लेकर उसके अंत तक यह सब तो सामान्य शुरुआत है। लेकिन ठीक-ठीक किसी चकनाचूर सुराही का श्रेष्ठ उपयोग का नायाब नमूना हैं राजेन्द्र।
कार्यशील व्यक्तित्व हैं राजेन्द्र सिंह। मध्य प्रदेश में बने राजेन्द्र वर्तमान बहराइच नगर पंचायत परिषद कार्यालय में कार्यकर्ता हैं। लावा कद, सिंगल सिंगल, खोपड़ी पर अधपके बाल, छोटी खूंटी सी दाढ़ी, फेयर टी शर्ट और पैंट (स्पष्ट है कि अंदर चढी भी है, अन्यथा किसी व्यक्ति का इतना चुस्त-दुरुस्त रहना मुमकिन नहीं होता।), सफेद वर्क और जूती, आत्मीयता का मुखौटा, मुस्कान और हंसी का मिश्रण, पढ़ाई की बेहिसाब भूख, किताबों का कीड़ा, सवालों के जवाब देने में तत्परता और किसी भी विषय पर फ्रैंक बातचीत करने में बे-तकल्लुफ़।
मैंने अपने जीवन में कई कम अधिकारियों के सामने किसी व्यक्ति के साथ सहज व्यवहार करते देखा और पाया है। पुस्तकें गणना करने वाले मंगवाने, गंभीर अध्ययन करने, विचार-विमर्श करने का गुडदाधारण, लोगों से शाइस्तगी के साथ बटियाने, बौद्धिक चर्चा करने वाले मिले हैं।
इनमें सबसे प्रमुख थे लघु देवव्रत दीक्षित और केके उपाध्याय। जातिद आईएएस डीके मित्तल, प्रभास झा, डीएन दुबे, आरपी शुक्ल, राजीव कुमार सिंह और सीपी मिश्र, हरिकांत त्रिपाठी, एसएन श्रीवास्तव, राकेश कुमार मिश्र। पुलिस में शैलेन्द्र सिंह, परेश पाण्डेय, इंस्पेक्टर कण्डव कुमार मिश्र। मौजूदा प्रमुख सचिव आरके सिंह और आरके पांडेय जैसे कई अधिकारी भी इसी श्रेणी में हैं। वो तो प्रत्यक्ष हैं, लेकिन ये कुछ झक्की भी हैं।
और ये हैं राजेन्द्र सिंह। उनकी ज़िंदगी-सुराही पूरी तरह से टुकड़े-टुकड़ा हो गई है, लेकिन उन्होंने सुराही के सारे मोहरे को न केवल बटोर लिया, बल्कि उन बंधनों को अलग-अलग और आकार में कुछ ऐसा जोड़ा, जिन्हें देखते ही लोग विस्मित हो जाते हैं। वे अपने परिवार के जीवन को मिट्टी के समान आकर्षण, सरल, शीतल और सुंदर सुराही के आकार में तो नहीं पाए, लेकिन उनके मोह से जो भी नए आकार की राय लोगों की आंखों में ही चुंधिया ले गए। हालांकि इस दौरान उन्होंने वायसन बेशुमार पाला, लेकिन एक-एक उन्हें भी त्यागना शुरू कर दिया। अब हालत यह है कि राजेंद्र पूरी तरह से निष्किय हो चुके हैं। मेरी तबियत देखने के लिए राजेंद्र आज लोहिया अस्पताल पहुंचे। देखते ही राजेन्द्र ने पहले पैर छुए, फिर गले लग गए। गाड़ी से गिरने में मुझे तकलीफ तो बहुत हो रहा था, लेकिन मैं राजेन्द्र को गन्ने के ठेला तक ले ही गया।
राजेन्द्र सिंह घमंटू हैं। घमण्ड ही प्रकृति की गोद में घुस जाते हैं, जहाँ उनमें से अजस्र विचार उमड़ते हैं, जीवन के लिए जंगल। किताबें जीना शुरू कर दें। संगीत भी उनके जीवन का एक अहम स्थान रखता है। एक सरल, इंजीनियरिंग, चिंतक और मनुष्य दृष्टि प्राप्त करता है। हालांकि वे दुनिया के प्रसिद्ध लेखकों और चिंटकों को खूब पढ़ते हैं, लेकिन उनके सर्वोच्च प्रशंसक जे कृष्णमूर्ति हैं। “फालतू में खर्च करने के पहले उन लोगों का ऋण दें, जिन्होंने आपको अच्छा इंसान समझ के ऋण दिया था।”
राजेन्द्र कहते हैं कि कृष्णमूर्ति से खुशी मिलती है कि जीवन और बेइंतहां खूबसूरत है। कोई पारलौकिक जीवन या स्वर्ग-नर्क नहीं हैं। जो है वही जन्म में, वही जीवन में है। ये हमारे ऊपर है कि इसे हम कितना खूबसूरत बना सकते हैं? जिसके लिए आपको अपने अंदर हर सोच से खुद को मुक्त करना होगा, हर जन्म से वो चाहे परिवार से आया हो, समाज से आया हो, परंपरा से या धर्म से उसे स्पष्ट करना होगा।
घटना और भविष्य की कल्पना से परे उन्हीं क्षणों को जीना होगा। जो कुछ भी है उसी पल में है। अगर हम समय को रोकने में सफल हो गए तो आपकी मृत्यु भी बनी रहेगी। और जीवन में, समाज और प्रकृति में सभी जगहों पर आपको सुंदरता ही सुंदरता दिखाई देगी।
उनका कहना है कि अगर “दोस्ती” आपका सबसे गिरफ्तार बिंदु है, तो आप दुनिया के सबसे ज्यादा पीड़ित हैं….। लोगों को मूर्ख बनाना आसान है, लेकिन उन्हें समझाना कठिन है कि उन्हें मूर्ख बना दिया गया है।
मित्रता के संबंध पर उनकी राय देखें:-
दोस्ती मजबूत बनाए रखें
जमाना जड़ें काट भी दें, तो दोस्त गिराएं नहीं दें…
नौकरी से तंग आने जो निठल्ले “बाबा” बने हैं
युवा उसी के पास रोजगार के लिए,
“ताबीज” पाने पहुंचें हो जाते हैं।
…हमारा खुद
का एक रुतबा है जनाब !
आप कोई भी होम हमें फर्क नहीं पड़ता।