: तरबियत को महसूस कर फैसला करती है कि किस पर इत्र फेंके, या किसे लहूलुहान : मुलाकात एक प्यारी-सी दिलचस्प कटारी से : मकसद बेहूदगियों से धर्मयुद्ध यानी जेहाद करना ही है न, है कि नहीं : सचिवालय का विशेष सचिव रामविजय सिंह तो एक ही थप्पड़ में बेदम चूहे कि तरह पसर गया :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आज एक प्यारी-सी कटारी से मुलाकात हो गयी।
बिल्कुल निर्दोष फूल की तरह। मगर दो-धार वाली। लोगों की तरबियत को महसूस कर वह फैसला करती है कि किस पर इत्र फेंके, या फिर किस को लहूलुहान कर डालें।
खिलखिलाता अंदाज़, बातूनी लहजा, उचक-उचक कर अपनी बात कहने का हौसला, सच बोल पाने की जिजीविषा, दूसरे के तर्कों को सुनने की हिम्मत, बेहूदगियों को खारिज करने का उन्माद भी। लखनऊ की हैं, खासी पढ़ीलिखी हैं। इकहरी काया है। ड्रेस में लखनवी सलवार-कुर्ता। वगैरह-वगैरह जैसे ढेर सारे झंझटों का समुंदर। मिल गयी आपसे, तो समझिये कि गोते लगाते-लगाते झूम पड़ेंगे आप।
मुस्लिम परिवार की हैं जरूर, इसीलिए पर्दा बहुत जरूरी है। बस थोड़ा सा फर्क कर दिया है ऐसी पाबन्दी को लेकर। वह यह, कि वे चेहरे पर पर्दा नहीं रखतीं, मगर फेसबुक पर अपने नाम और चेहरे को बदल दिया है। बेवजह की बकलोलियों से बचने के लिए। वह भी सिर्फ इसलिए कि सांप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूट पाये। मकसद तो बेहूदगियों से धर्मयुद्ध यानी जेहाद करना ही है न, है कि नहीं। बात भी फिजां तक पहुंच जाए, और किसी को कानोकान पता भी नहीं चल पाये कि यह तीन किधर से आया।
सच बात तो यही है कि ऐसी हरकतें हमेशा फर्जी आईडी से ही शुरू होती है। बताने की जरूरत नहीं है कि ऐसे सारे धंधों में मर्दों की तादात 99 फीसदी से ज्यादा है। यही लोग जहां-तहां ढीले-गीले लोगों के लिए कटिया लगाये रहते हैं। उसमें भी खूबसूरत और आमतौर पर ठरकी मर्दों को फंसाने के लिए महिलाओं की वाल से साजिशें बुनी जाती हैं। अंत पैसा उगाही से होता है, और अंजाम कई बार लुट जाने तक पहुंच जाता है। सचिवालय का एक विशेष सचिव राम विजय सिंह तो ऐसे ही एक धंधे में अपनी नाक कटवा कर सूर्पनखा बन गया। बड़ी तादात में कई लोग ऐसे जाल में फंस चुके है, और ऐसे शिकारों की तादात लगातार बढ़ती ही जा रही है।
ऐसा नहीं है कि मैं इस मामले में बड़ा बहद्दर हूं। मैं तो खुद भी एक बार ऐसी विषकन्याओं के लफड़े की मंझधार तक जा चुका हूं, लेकिन सामने वाले ने जैसे ही ब्लैकमेलिंग वाले धंधे की बात तक मसला पहुंचाने की कोशिश की, ने खुद ही दोलत्ती डॉट कॉम पर इसका खुलासा कर ऐसे धंधे का भंडाफोड़ ही कर दिया। फिर क्या था, झोला लेकर भाग निकले वह धंधेबाज। लेकिन सचिवालय में हरामखोर और सिर्फ रिश्वत वसूलने वाले रामविजय सिंह में मेरी जैसी ताकत ही नहीं थी। वह तो एक ही थप्पड़ में बेदम चूहे कि तरह चारों पैर उठा कर पीठ के बल पसर गया था।
लेकिन यह फूल जैसी कटारी ऐसी कत्तई नहीं है। बातचीत शुरू होने के कुछ ही देर बाद उसने बेहद साफ दिल की तरह कुबूल लिया कि वह सोशल मीडिया पर काम करती हूं और हुमा अंसारी के मारक तीर और पसलियां तोड़ देने की क्षमता वाले हथौड़ों की तरह पहचानी जाती हूं। हुमा अंसारी का शिकार ठरकी पुरुष नहीं, बल्कि ठरकी समाज है। वे व्यक्तिगत चरित्र के बजाय सामूहिक, जातीय और सामुदायिक चरित्र, व्यवहार, और मूल्यों में बढ़ते दोगलेपन को नँगा करती है। खासकर मुस्लिम समुदाय में।
फेसबुक पर हुमा अंसारी की ढेर सारी तस्वीरें हैं। एक से बढ़ कर एक नायाब, आकर्षक। कभी दुल्हन के जोड़े में तो कभी साक्षात मोनालिसा तक की सीरत वाली। लेकिन ऐसी हर फोटो का हुमा अंसारी की हकीकत से कोई लेनादेना नहीं है। जिसे इससे ऐतराज हो, तो होता रहे। हुमा का मकसद तो अपनी बात कह देने से ही है, जो वह उसे माध्यम बना कर करती रहती हैं। वे सोशल साइट की किसी भी फोटो को अपनी वाल पर लगा देती हैं, तो हुर्र-हुर्र हंगामा शुरू हो जाता है। सारी की सारी सिरे से ही झूठी, और सत्यता से परे। मगर हर फोटो पर कमेंट्स और लाइक्स की बारिश होती है।
लसोढ़ा का यह भी एक नायाब अंदाज है।
खुशामदीद मोहतरमा, खुशामदीद हुमा अंसारी।
( यह श्रंखला-बद्ध रिपोर्ताज है। लगातार उपेक्षा के चलते प्रकृति के लुप्त-प्राय पहरुआ के तौर पर। बिम्ब के तौर पर चुना गया है वृक्ष का वह पहलू, जिसका लसलसा गोंद ही नहीं, बल्कि पूरा पेड़ ही प्रकृति के लिए समर्पित है। लेकिन इसमें जोड़ने की जो अद्भुत क्षमता और दैवीय गुण है, उसके बहुआयामी आधार पर जोड़ने की कोशिश की गयी है। समाज में ऐसे गुणों को पहचान, उसके प्रयोग और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे गुणों की उपयोगिता और उपादेयता को केवल समझने-समझाने के लिए प्रयोग किया गया है। कोशिश की गयी है कि क्षेत्र के विभिन्न समूहों के प्रतिनिधि-व्यक्तियों को इसमें शामिल किया जाए। शायद आप उससे कुछ सीखने की कोशिश करना चाहें।
यह खबर www.dolatti.com पर है। लगातार सारे अंक एक के बाद एक उसी पर लगा रहा हूं, आपकी सुविधा के लिए। फिलहाल तो यह श्रंखला चलेगी। शायद पचीस या पचास कडि़यों में। रोजाना कम से कम एक। उन रिपोर्ताज की कडि़यों को सिलसिलेवार हमेशा-हमेशा तक समेटने और उसे खोजने का तरीका हम जल्दी ही आपको बता देंगे।
संवेदनाओं का लसोढ़ा–बीस )