जातीय उन्‍माद नहीं, निष्‍ठा पर जिंदा है पत्रकारिता: कमर वहीद नकवी

बिटिया खबर

: आनंद स्‍वरूप वर्मा के अनुसार हिन्‍दी पत्रकारिता ब्राह्मणों नहीं, योद्धाओं के बल पर जिन्‍दा : अयोध्‍या ही नहीं, फैजाबाद के कमरे में एक-एक गुम्‍बद पर तीन-तीन पत्रकार चढ़े थे : संपादक से महाप्रबंधक तक का सफर राघवेंद्र चढ्ढा ने : एक राष्‍ट्रीय अंग्रेजी के कट्टर हिंदूवादी ब्‍यूरो चीफ अपने दामाद के भाई को एक रात तिरलोक-यात्रा का षडयंत्र में जुट गया : चढ्ढी को बाकायदा एक बड़े “विशाल चढ्ढा” : 

कुमार सौवीर

लखनऊ : दिल्‍ली में प्रख्‍यात पत्रकार आनंद स्‍वरूप वर्मा इस बात को सिरे से नकारते हैं कि हिन्‍दी पत्रकारिता केवल ब्राह्मणों के बल पर जीती रही है। उनका आरोप है कि पत्रकारिता में किसी जाति के चलते ही वर्चस्‍व है। वे कहते हैं कि पत्रकारिता में जो भी लोग सामने आये हैं, वे केवल अपनी निष्‍ठा और मेहनत के साथ ही जमे हुए हैं। जिन्‍हें दूसरी दिशा में जाना था, उनकी बात दीगर है। लेकिन वे कभी भी पत्रकारिता की मेन-स्‍ट्रीम के लिए अपना चेहरा साफ कर सके। उनका कहना है कि हिन्‍दी पत्रकारिता का मूल तत्‍व जातीय उन्‍माद नहीं है, बल्कि वह तो निष्‍ठा की धुरी पर जिंदा है।

यही बात विख्‍यात पत्रकार कमर वहीद नकवी बात भी कहते हैं। नकवी का कहना है कि राजाश्रयीय और परम्‍परागत गुण के बल पर अपने पारिवारिक दायित्‍वों को निभाने के लिए सामने आ जाना एक सामान्‍य प्रक्रिया है। आज समाज के बाकी व्‍यवसायों को देख लीजिए। लोहार से लेकर सुनार और बनिया से लेकर ब्राह्मण तक सब में पारम्‍पारिक गुण होते हैं। ऐसी हालत में अगर कोई ब्राह्मण अपने परम्‍परागत पेशे को अपनाना चाहता है, तो उसमें हर्ज क्‍या है। इसी आधार पर पत्रकारिता में ब्राह्मणों की बहुतायत है। लेकिन इसका मूल्‍यांकन तो ब्राह्म्‍ण जाति के सदस्‍य नहीं, बल्कि पत्रकारिता में सम्‍बद्ध पत्रकार ही अपने मेधा, अपनी क्षमता और अपनी मेहनत के आधार पर ही निर्णय करेंगे। जबकि लखनऊ के वरिष्‍ठ पत्रकार रजनीकांत वशिष्‍ठ का कहना है कि पत्रकारिता में ब्राह्मणों के बहुतायत होने का मूल कारण इस समाज का अपने न्‍यूनतम संसाधनों के बावजूद अपने मेधा का प्रयोग लेखन में लगाने ही रहा।
करीब पचीस बरस पहले वाराणसी से पत्रकारिता की दिशा में एक नया सितारा उगने लगा। नाम था राघवेंद्र चढ्ढा। उस जाति का कोई दूसरा व्‍यक्ति ही नहीं था उस समय की वाराणसीय पत्रकारिता में। लेकिन राघवेंद्र का औरा ही था कि उसने अपनी चढ्ढी को बाकायदा एक बड़े “विशाल चढ्ढा” के तौर स्‍थापित किया, अपने कार्य-दायित्‍वों के बीच चलते। सायास या फिर अनायास ही सही। और उसमें वाराणसी क्षेत्र के अधिकांश पत्रकारिता का एक बड़ा टेंट बन गया। बहुत जल्‍दी ही राघवेंद्र को बनारस दैनिक जागरण में स्‍थानीय संपादक बना दिया गया। लेकिन उसके कुछ ही समय बात राघवेंद्र और जागरण के प्रबंधन ने पाया कि राघवेंद्र को संपादक के बजाय सीधे महाप्रबंधक बना दिया जाना चाहिए। नतीजा, राघवेंद्र चढ्ढा हल्‍द्वानी के जागरण की यूनिट में जीएम हुए, लेकिन उसके चंद दिनों बाद ही आसपास के कई यूनिटों में भी राघवेंद्र को प्रबंधन ने एकसाथ जोड़ कर उसे बड़ा दायित्‍वपूर्ण जीएम बना दिया। अब राघवेंद्र चढ्ढा ही तय करते हैं उनकी यूनिटों में संपादक कौन बनेगा। हालांकि उत्‍तर प्रदेश के पूर्वांचल में राघवेंद्र चढ्ढा गैर-ब्राह्मण संपादक रहे हैं। इसके पहले आज नामक दैनिक अखबार के दूधनाथ सिंह का डंका बज चुका था।

लेकिन राघवेंद्र चढ्ढा के आसपास ही विश्‍वेश्‍वर कुमार नामक एक गैर-ब्राह्मण स्‍थानीय संपादक के तौर हिन्‍दुस्‍तान दैनिक अखबार में आया। लेकिन आते ही उसने जितनी भी नंगई हो सकती थी, शुरू कर दी। वह तो उस दौरान मैं खुद ही हिन्‍दुस्‍तान वाराणसी में था और सीधे विश्‍वेश्‍वर मुझ से भिड़ गया, तो मैंने उसका जीना हराम कर दिया हिन्‍दुस्‍तान में। जब घर का मुखिया ही जाति और शक्‍ल के आधार पर काम करेगा, तो पत्रकार आहत हो ही जाएगा। फिर बेकार और अवसाद में चला जाएगा। लेकिन मैंने सीधे जूता निकाल लिया। मणिकर्णिका और हरीशचंद्र घाट में अपने आत्‍मीय अघोरियों की बाहें मेरे स्‍वागत में हमेशा तैयार रही हैं। भोजन-पानी और देसी दारू में रातें बीतने लगीं। वीरेश्‍वर कुमार के छक्‍के छूट गये। वह कड़ी सुरक्षा में दफ्तर आने और जाने लगा। बाद में पता चला कि अघोर-स्‍थल क्रींकुण्‍ड के निकट एक मॉल में विश्‍वेश्‍वर कुमार की बेटी एक मोबाइल चोरी करते पकड़ी गयी।
बहरहाल, विनोद शुक्‍ला ने अपनी ब्राह्मण छवि को सुधारने के लिए कई प्रयोग भी किये। मसलन संतोष बाल्मीकि और जय प्रकाश शाही को अपने साथ जोड़ना। लेकिन यह जुड़ाव केवल चंद महीनों तक ही चला। जय प्रकाश शाही ने दैनिक जागरण के ही सरे-दफ्तर में घुस कर ठीक विनोद शुक्‍ला की छवि के अनुरूप विनोद शुक्‍ला की मां-बहन कर डाली, और विनोद शुक्‍ला कुछ भी नहीं कर पाये। इतना साहस भी नहीं था विनोद शुक्‍ला में। संतोष ने भी अपना डेरा जल्‍दी ही हिन्‍दुस्‍तान में डाला, और वही रिटायर हुआ। वैसे भी जुझारू लोगों को विनोद शुक्‍ला ने पहचाना और उसे यथोचित स्‍थान दिया, लेकिन जरूरत पर उसको बेचा भी खूब।
लेकिन एक बात तो जरूर है कि ब्राह्म्‍ण पत्रकारों ने दुराचार की सारी सीमाएं तोड़ने की सारी कोशिश जरूर कीं। एक राष्‍ट्रीय अंग्रेजी के ब्‍यूरो चीफ तो अपने दामाद के छोटे भाई को भी रात में तिरलोक की यात्रा कराने पर आमादा थे। वह तो गनीमत थी कि उस दामाद-भाई ने अपने भाई के श्‍वसुर की नीचता पर जमकर विरोध किया और उसके बाद से वह रिश्‍ता हमेशा-हमेशा के लिए खत्‍म हो गया। बताने की जरूरत नहीं कि उस ब्‍यूरो चीफ का पहचान हमेशा कट्टर हिन्‍दुत्‍व के प्रबल समर्थक के तौर पर ही रहा है। लेकिन किसी भी ठाकुर पत्रकार ने ऐसी कोई छिछोरी हरकत नहीं की। बल्कि जय प्रकाश शाही ने तो दिसम्‍बर सन-92 में अयोध्‍या काण्‍ड पर कवरेज करने गये लोगों के होटल में एक होटल के कमरे का जिक्र कुछ यूं किया कि:- अयोध्‍या के तीन गुम्‍बदों पर तो कारसेवकों की भीड़ चढ़ी हुई थी, लेकिन फैजाबाद के होटल के कमरे में एक-एक गुम्‍बद पर तीन-तीन पत्रकार चढ़े हुए थे।
उस दौर के किसी भी तनिक भी झस-दार पत्रकार से पूछ लीजिए कि वह एक-एक गुम्‍बद और तीन-तीन कारसेवक कौन थे।

( यह श्रंखला-बद्ध रिपोर्ताज है। लगातार उपेक्षा के चलते प्रकृति के लुप्‍त-प्राय पहरुआ के तौर पर। बिम्‍ब के तौर पर चुना गया है वृक्ष का वह पहलू, जिसका लसलसा गोंद ही नहीं, बल्कि पूरा पेड़ ही प्रकृति के लिए समर्पित है। लेकिन इसमें जोड़ने की जो अद्भुत क्षमता और दैवीय गुण है, उसके बहुआयामी आधार पर जोड़ने की कोशिश की गयी है। समाज में ऐसे गुणों को पहचान, उसके प्रयोग और समाज के विभिन्‍न क्षेत्रों में ऐसे गुणों की उपयोगिता और उपादेयता को केवल समझने-समझाने के लिए प्रयोग किया गया है। कोशिश की गयी है कि क्षेत्र के विभिन्‍न समूहों के प्रतिनिधि-व्‍यक्तियों को इसमें शामिल किया जाए। शायद आप उससे कुछ सीखने की कोशिश करना चाहें।
यह खबर www.dolatti.com पर है। लगातार सारे अंक एक के बाद एक उसी पर लगा रहा हूं, आपकी सुविधा के लिए। फिलहाल तो यह श्रंखला चलेगी। शायद पचीस या पचास कडि़यों में। रोजाना कम से कम एक। उन रिपोर्ताज की कडि़यों को सिलसिलेवार हमेशा-हमेशा तक समेटने और उसे खोजने का तरीका हम जल्‍दी ही आपको बता देंगे।
संवेदनाओं का लसोढ़ा– सत्रह )

1 thought on “जातीय उन्‍माद नहीं, निष्‍ठा पर जिंदा है पत्रकारिता: कमर वहीद नकवी

  1. आदरणीय भईया जी
    सादर चरणस्पर्श!🙏🙏🙏🌹🎉🎉
    एक ओर जहां आपने जबर्दस्त खूबसूरती के साथ अच्छे-अच्छों की खोलकर रख दी तो वहीं दूसरी ओर आपके द्वारा शुरू की जा रही इस श्रृंखला से आज की पीढ़ी के कलमकारों को सीख देने की दिशा में कारगर कदम सिद्ध होगा।
    कोटि-कोटि प्रणाम आदरणीय भईया 🙏🙏🙏🌹🎉🎉🌺🌺🌺🌹🌹🎉

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