पत्रकार नहीं, दुर्दांत अपराधी है मनीष कश्‍यप। लगा रासुका

बिटिया खबर

: गोदी-मीडिया के पत्रकारों ने बिहार व तमिलनाड़ में ब्राह्मण विभेदीकरण ही देख ली : बड़े ब्राह्मण-पत्रकार तो आशंकाएं देख रहे हैं, जबकि भाजपा के ब्राह्मण नेता पी-पी कर गालियां फेंक रहे हैं स्‍टालिन को : आखिर दिक्‍कत क्‍या है नृशंस अपराधी मनीष पर एनएसए लगाने पर : पदनी का नाच बनने से रोकने के लिए अब सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर अरदास :

कुमार सौवीर

लखनऊ : बिहार के विभिन्‍न थानों के अलावा तमिलनाडु पुलिस द्वारा मनीष कश्यप पर राष्‍ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) लागू करने से एक विवाद खड़ा हो गया है। कानून का सम्‍मान करने वाले लोग इस फैसले का स्‍वागत कर रहे हैं, जबकि राजनीतिक दलों के साथ ही जातीय आधार पर भी ब्राह्मण खेमा के कुछ लोग तिलमिला गये हैं। असर कुछ सवर्णों पर ही भी है। गोदी-मीडिया को मौका मिल गया है और वह स्‍टालिन और नितीश कुमार पर अपने ब्रह्मास्‍त्र फेंकने लगा है। बड़ी संख्‍या में ऐसे पत्रकार मनीष कश्‍यप को पत्रकार के तौर पर पेश करने लगे हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि यह काम केवल गोदी ब्राह्मण खेमे के लोग ही कर रहे हैं, कुछ गम्‍भीर और चिंतक पत्रकार भी मनीष कश्‍यप पर एनएसए लगाने के विरोध में आ गये है। मगर उनके तर्क बिलकुल अलग-अलग जमीन पर हैं।
मसलन विनोद कापड़ी और अजीत अंजुम जैसे पत्रकारों की चिंता यह है कि राज-सत्‍ता को नागरिकों पर अधिकतम कड़े कानून लागू नहीं करना चाहिए और ऐसी राज-सत्‍ता की हरकतों पर मीडिया को कड़ा विरोध दर्ज करना चाहिए। उनका तर्क है कि अधिकतम दमनकारी कानूनों का इस्‍तेमाल करने से सत्‍ता निरंकुश हो जाएगी। उधर भाजपा के ब्राह्मण इसमें अपने जातीय-हितों का संरक्षण करने में जुटे हैं। डर यह है उन्‍हें कि कहीं ऐसा न हो कि उनका बचा-खुचा आधार ही चकनाचूर होने लगे।
पहले समझ लिया जाए कि मनीष कौन है और उसका अपराध क्‍या है। दरअसल, मनीष का मूल नाम त्रिपुरारी कुमार तिवारी है और वह स्‍वयं को सन ऑफ बिहार के तौर पर पेश करता है। मनीष का पूरा इतिहास ध्‍वंस और षडयंत्रों से सना हुआ है। वह बिहार में सवर्ण और खास कर ब्राह्मणों को एकजुट करने की राजनीति करता है। साल 2019 में पश्चिम चंपारण में महारानी जानकी कुंवर अस्पताल परिसर में स्थित किंग एडवर्ड-Vll की मूर्ति को क्षतिग्रस्त किया था। इस मामले को लेकर मनीष कश्यप पकड़ा गया था। बिहार की चनपटिया विधानसभा सीट से हुए पिछले चुनाव में त्रिपुरारी उर्फ मनीष ने निर्दलीय चुनाव पराजय थामी थी। पिछले एक हफ्ते के दौरान उसके विभिन्‍न खातों में करीब 41 लाख रुपये मिले हैं।
सच बात यही है कि मनीष कश्यप ने नृशंस अपराध किया है। लेकिन उसकी छवि मजबूत करने के लिए उसके समर्थकों ने उसे पत्रकार के तौर पर प्रचारित करना शुरू कर दिया है, जो यू-ट्यूब के मार्फत से पत्रकारिता करता है। लेकिन सच यह है कि मनीष की हरकतें शुरू से ही दहशत फैलाने वाली ही रही है। ताजा मामला है तमिलनाडु का, जहां मार्च के पहले सप्ताह में तमिलनाडु में बिहार के प्रवासियों पर हमले और उन्हें प्रताड़ित करने के फर्जी वीडियो प्रसारित करने का आरोप लगाया गया । उनके वीडियो वायरल हो गए, जो उत्तर भारत के प्रवासियों के बीच दहशत पैदा कर रहे थे। हालत यह हुआ कि तमिलनाडु के विभिन्‍न क्षेत्रों में काम कर रहे बिहार के लोगों में भारी असुरक्षा और दहशत फैल गयी। इससे तमिलनाडु ही बेहाल हो गयी। वैसे भी यह मामला देश में अराजकता फैलाने का ही था।
तमिलनाडु ने इस पर तत्‍काल कार्रवाई की, जांच में पाया गया कि इस फेक न्यूज और फेक वीडियो बिहार और तमिलनाडु में प्रसारित करने का षडयंत्र किया है मनीष कश्यप और उसके कुछ अन्य मित्रों ने। अब इन सभी लोगों के खिलाफ तमिलनाडु और बिहार के विभिन्‍न क्षेत्रों में आपराधिक मामले दर्ज किये गये। इसके बाद मनीष कश्यप ने मार्च के अंतिम सप्ताह में बिहार पुलिस के सामने मनीष कश्‍यप उर्फ त्रिपुरारी कुमार तिवारी ने आत्मसमर्पण कर लिया। तमिलनाडु पुलिस मनीष को खोज ही रही थी, लेकिन बिहार में उसकी मौजूदगी मिलते ही तमिलनाडु पुलिस बिहार गयी और उसे लेकर सीधे मदुरै ले आयी। अब इस पर एनएसए यानी राष्‍ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में ले लिया गया है।
राजनीतिक विरोधियों और कतिपय सवर्ण के अलावा कुछ ब्राह्मणों ने इस मामले को आपराधिक हरकत के बजाय उसे राजनीतिक मुद्दे के तौर पर देखना शुरु कर दिया। उधर तमिलनाडु में स्‍टालिन नेतत्‍व वाले द्रमुक यानी द्रविड़ मुन्‍नेत्र कड़गम की सरकार ने इस मामले में आनन-फानन फैसला ले लिया। ऐसा क्‍यों कर लिया इसको द्रुमक की ब्राह्मण विरोधी छवि के तौर देखा और खोजा जा रहा है। लगे हाथों बिहार में इस प्रकरण पर तेजी दिखाने में नितीश कुमार का भूमिहार होना भी मजबूत कारण रहा। कुछ भी हो, ब्राह्मण, सवर्ण और राजनीतिक विरोध होने के बावजूद बिहार में मनीष उर्फ त्रिपुरारी त्रिपाठी की करतूत पर मिट्टी नहीं डाली जा रही है।
कोई दो-राय नहीं है कि मनीष कश्यप की करतूत एक नृशंस अपराधी की है। वह ब्राह्मण जाति का है, इस तर्क के सहारे उसे रियायत नहीं दी जा सकती है। और अगर इसी तर्क पर ही सोचें, फिर तो नाथूराम गोडसे को भी देश को माफ कर देना चाहिए। लेकिन यह भी सच है कि वरिष्‍ठ पत्रकार अजीत अंजुम और विनोद कापड़ी की राय खासी मजबूत और जन-प्रतिबद्ध सोच के तहत है। यह पत्रकार मानते हैं कि किसी भी राज-सत्‍ता को अपने किसी या किन्‍हीं नागरिकों पर अधिकतम कड़े कानून लागू नहीं करना चाहिए। सम्‍भवत: वे मानते हैं कि ऐसी निरंकुश राज-सत्‍ता की हरकतों पर मीडिया को कड़ा विरोध दर्ज करना ही चाहिए। उनका तर्क है कि अधिकतम दमनकारी कानूनों का इस्‍तेमाल करने से सत्‍ता निरंकुश हो जाएगी। उधर भाजपा के ब्राह्मण इसमें अपने जातीय-हितों का संरक्षण करने में जुटे हैं। डर यह है उन्‍हें कि कहीं ऐसा न हो कि उनका बचा-खुचा आधार ही चकनाचूर होने लगे। खास कर यूपी के ब्राह्मण विधायक तो मनीष पर लगे एनएसए का सख्‍त विरोध कर रहे हैं, लेकिन उनके पास अपने इस दावे का कोई आधार या तर्क नहीं है। वे यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि जो बात वे कह रहे हैं, उसके पीछे उनका आधार क्‍या है। जाहिर है कि वे केवल ब्राह्मण-कार्ड ही खेल रहे हैं।

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