कब्र में भी सेक्‍स का जोश: यह है मुसलमानों की असली समस्या !

बिटिया खबर

: 72 हूरों की कल्‍पना से गदगद हो पड़ते हैं कट्टर मुसलमान : जिसने जन्‍म दिया, जिसने जीवन भर साथ दिया, जिसने औलाद अता की, उसको बदबूदार और मैली-कुचैली बता रहे हैं मुसलमान : क्‍या वाकई यही हालत है इस्‍लाम में औरत की : ऐसे में इस दुनिया की औरतें अपने बेईमान, बेगैरत और बेशर्म शौहर से ईमानदारी, निष्ठा और सहज जीवन की उम्मीद कैसे कर पाती होंगी ? : और अगर मौत के बाद न जन्‍नत मिला और न ही हूरें, तो ?

कुमार सौवीर

लखनऊ : कट्टरता और जाहिलियत एक-दूसरे के लिए खाद-पानी होते हैं। और ऐसे में जिस तरह का झाड़-झंखाड़ पैदा होता है, उसमें धर्म का लोप ही हो जाता है। अर्थ की जगह अनर्थ ले जाता है और फिर पूरी जमात ही किसी घटिया और घिनौनी कीचड़ के साथ लिथड़ा दिखायी पड़ता है। इसका खामियाजा भुगतती है पूरी संस्‍कृति, वहां की महिलाएं और बच्‍चे भी।
आप में अगर तनिक भी दिमाग या जिगरा है, तो इस वीडियो को देखिये। फिर यथार्थ में अपनी औकात परखिये। नजीर है इस वीडियो में गदगद होते दिख रहे और खुद को असली मुसलमान साबित करने और इसलिए जन्‍नत में 72 हूरों की पहलू में जाने को उतावली में बैठे सज्‍जन।
यह जानते हुए भी कि अल्लाह ने ही यह दुनिया बनाई है, और जन्नत भी। इस दुनिया में मर्द भी बनाये हैं, और औरतें भी। और जन्नत की हूरें भी, अगरचे अगर वे हैं भी तो।
लेकिन इन्हें अल्लाह की बनाई इस दुनिया की औरतें गंदी, छिछोरी, मैली-कुचैली और बदबूदार लगती हैं, लेकिन उसी अल्लाह की बनायी गयी जन्नत की हूरें यहां की औरतों से सत्तर गुना ज्यादा हसीन, गदरायी, खुशबूदार और मजेदार लगती हैं।
जरा इस जनाब को देखिए न, कि हूरों का जिक्र होते ही उनके चेहरे कितने खिल पड़ते हैं। वह भी एकाध नहीं, पूरी 72 हूरों की वासनायुक्त ख्वाहिश ! एक को संभाल नहीं पाते, लेकिन जन्नत में मिलने वाले आश्वासन के तहत 72 हूरों की लालसा में गदगद। जिनके साथ चालीस-पचास बरस से भी ज्यादा वक्त बिताने और बच्चे पैदा करने के बाद भी वे यहां की औरतों को बेदर्दी से खारिज कर देते हैं, उनके प्रति घिनौना और बेशर्म नजरिया। सिर्फ सेक्स, और सिर्फ सेक्स ???
या अल्लाह !!!
ऐसे में इस दुनिया की औरतें अपने शौहर से ईमानदारी, निष्ठा और सहज जीवन की उम्मीद कैसे कर पाती होंगी?
खुदा न ख़्वास्ता, अगर जन्नत में उनको धोखा मिल गया, तो फिर वे मर्द कहां जाएंगे?
मुझे नहीं पता कि इस्‍लाम या किसी भी धर्म में ऐसा कोई तस्करा है या नहीं। लेकिन क्या अपने को धर्मगुरु कहलाने वाले मौलाना लोग इस बारे में थोड़ा प्रकाश डालेंगे?

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