ठरकी मर्द नहीं, हुमा अंसारी का शिकार है ठरकी समाज

: तरबियत को महसूस कर फैसला करती है कि किस पर इत्र फेंके, या किसे लहूलुहान : मुलाकात एक प्यारी-सी दिलचस्‍प कटारी से : मकसद बेहूदगियों से धर्मयुद्ध यानी जेहाद करना ही है न, है कि नहीं : सचिवालय का विशेष सचिव रामविजय सिंह तो एक ही थप्‍पड़ में बेदम चूहे कि तरह पसर गया […]

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मृणाल पाण्‍डेय न होतीं तो ढह जाती पत्रकारिता

: दायित्‍व-पत्रकारिता की इमारत में लसोढा हैं मृणाल पाण्‍डेय : ललई यादव ने पूरी गुंडई के साथ दो पत्रकारों का कैमरा पैरों से तोड़ा : निजी नहीं, पत्रकारिता के कुनबे को जोड़ने की अद्भुत शैली बनायी तडि़त कुमार और आनंदस्‍वरूप वर्मा ने : कुमार सौवीर लखनऊ : पत्रकारिता में अगर मैंने सबसे बेमिसाल अट्टालिका की […]

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कानून-ची दुनिया: किसी में चुल्‍ल है, किसी का दायित्‍व, तो किसी का धर्म

: जिन्‍दगी को आम आदमी से जोड़ने में बेमिसाल हैं हाईकोर्ट के तीन वकील : कानून-चीं धंधे से अलग भी एक अनोखा जीवन जीने के लिए जरूरी है लसोढ़ा : व्‍यवसाय के साथ लेखन से डंका बजा रहे हैं वकालत-सेनानी : बातचीत रविशंकर पांडेय, चंद्रभूषण पांडेय और आईबी सिंह पर : कुमार सौवीर लखनऊ : […]

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व्‍यक्तित्‍व में शीर्षता से बनता है एलपी मिश्रा

: लसोढ़ा का प्रयोग निजी नहीं, बल्कि अपनों के प्रति उपयोग-समर्पण से होता है सार्थक : मजाल कि किसी जूनियर का दमड़ी तक रमेश पाण्‍डेय पर आज भी बकाया हो : राम जेठमलानी के जिन्‍दा प्रतिमूर्ति और लसोढ़ा-पन की अद्भुत मिसाल हैं डॉक्‍टर मिश्रा : एक ऐसा पर्वत हैं डॉ एलपी मिश्रा, जिसको छू तक […]

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तुम्‍हें न वकालत आती है, न मुंशीगिरी। जजी क्‍या करोगे: बोले वीरेंद्र भाटिया

: वकालत की दुनिया में अद्भुत शख्सियत थे वीरेंद्र भाटिया, लेकिन आखिरी वक्‍त में सब साथ छोड़ गये : दूसरों को जोड़ने और उनकी जरूरतों के चक्‍कर अपने ही लसोढ़ापन का शिकार बन गये वीरेंद्र भाटिया : बड़ा जिगर था रमेश पांडेय का। वे अपनी जरूरतों को भी बौना बना सकते थे : रमेश की […]

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हाईकोर्ट के जज हो ! कभी दमड़ी भी खर्च की, कि आज ही करोगे ?

: संकट में बेहाल युवक की रंगत से ही पहचान जाते थे शचींद्र : राघवेंद्र सिंह जब गुस्‍सा आता, तो वे अपने साथी के सारे कपड़े धोकर सुखा डालते : जौनपुर के पिलकिछा के रहने वाले शचींद्र नाथ उपाध्‍याय ने इलाहाबाद में पूरा जीवन एकाकी बिताया : कुछ की हरकतें, जरूरतें, लापरवाहियां, तो भूल-चूक से […]

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हुसैनगंज का जिल्‍दसाज और पंसारी छंगा ही है लखनऊ का लसोढ़ा-पन

: उस सामाजिक ताना-बाना में पूरा मोहल्‍ला अभिभावक था : अभी भी वक्‍त है म्‍यां। रिश्‍तों को जोड़ने के लिए लसोढ़ा उगाइये : जन्‍मजात होती है बच्‍चों में झूठ और चोरी की आदत, उन्‍हें सहजता से निपटाना जरूरी : पतंग लूटने या उसे दुरुस्‍त कराने की औकात होती, तो नयी कनकउव्‍वा न खरीद लेते : […]

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अमीनाबाद के रानीगंज में थी लसोढ़ा वाली गली

: पतंग के चलते हर घर में झंझट, भाईचारा जैसा माहौल कहीं था ही नहीं : न्‍यू क्रियेटिविटी, आवश्‍यकता ही नूतनता का जननी : गोंदनुमा लसलसा और चिपचिपापन लसोढ़ा ही हम मुफलिस पतंग-भिखारियों का आखिरी सहारा था, जैसे अजमेर-शरीफ की मजार : कुमार सौवीर लखनऊ : हुसैनगंज में हमारा एक दोस्‍त हुआ करता था पप्‍पू, […]

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लसोढ़ा चखे पतंगबाजी क्‍या खाक समझोगे ?

: रामपुर और बरेली में भी होती है पतंगबाजी, लेकिन जमघट सिर्फ लखनऊ में : मुझे तमीज की लीक पर लाने के लिए पापा ने लगाया था लसोढ़ा : झगड़े में भी सम्‍मान से बात करना भी लखनवी लसोढ़ा-पन ही तो है : लखनवी तमीज में जो लोग बचे हैं, लसोढ़ा का ही असल कमाल […]

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तोड़ लसोढ़ा, गोंद निकाल। मूंछ बना ले तुर्रेदार

: मूंछ में ऐंठनदार अंदाज मर्दानगी का प्रमाण बना रहा : लाखों बरसों तक प्रकृति व मानव-जीवन ऋणी रहा गूलर, उसी की कृपा से हैं कुएं : लाखों बरस तक रसोई में सब्‍जी के बर्तनों में कमाल करता रहा गूलर का गुच्‍छा : मूंछ को मरोड़ कर बिच्‍छू की पूंछ की तरह आक्रामक और विषैला […]

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लसोढ़ा के बिना भी कोई जिन्‍दगी है ?

: परमानेंट तो हमारी-आपकी सांसें भी नहीं हैं हुजूरेआली : पीढि़यों तक संस्‍कार के लिए जीवन में लसोढ़ा-पन खोजिए : प्रेमचंद की बूढ़ी काकी या फिर मंत्र के उस ओझा की तरह डॉ चड्ढा का मासूम बच्‍चा बचाने वाला लसोढ़ा कहीं और न मिलेगा : अशक्‍त, असहाय, मजलूम, महकूम लोगों को जिन्‍दगी से कोई खास […]

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