व्‍यक्तित्‍व में शीर्षता से बनता है एलपी मिश्रा

बिटिया खबर

: लसोढ़ा का प्रयोग निजी नहीं, बल्कि अपनों के प्रति उपयोग-समर्पण से होता है सार्थक : मजाल कि किसी जूनियर का दमड़ी तक रमेश पाण्‍डेय पर आज भी बकाया हो : राम जेठमलानी के जिन्‍दा प्रतिमूर्ति और लसोढ़ा-पन की अद्भुत मिसाल हैं डॉक्‍टर मिश्रा : एक ऐसा पर्वत हैं डॉ एलपी मिश्रा, जिसको छू तक पाना असंभव :

कुमार सौवीर

लखनऊ : जीवन में सफलता किसको कहेंगे ? जाहिर है कि जिन्‍दगी भर की कमाई के आधार पर ही अमुक व्‍यक्ति के जीवन का मूल्‍यांकन जा सकता है। मतलब यह कि अगर आपके सारे के सारे शिष्‍य यह बात खुलेआम कहते हों कि आप एक बेमिसाल व्‍यक्ति हैं, समाज में आपसे जुड़े सारे लोग संतुष्‍ट हों कि आपका व्‍यवहार हमेशा सहयोगी रहा है, आपके ग्राहक मानते हों कि आपकी डील पर कभी भी कोई दाग नहीं लगा, तो फिर तय मानिये कि आप आत्‍म-मूल्‍यांकन के मामले में दूसरों से कई मील आगे हैं। अब ऐसा भी नहीं है कि दुनिया के सारे गुण आप में ही भरे पड़े होते हैं। किसी में भी ऐसा नहीं हो सकता है कि वह बेहद निष्‍पाप, निर्दोष और प्रत्‍येक दिशा में बेहद सरल, सहज और बेदाग ही हो। लेकिन जिस समाज में आप हैं, वहां के लोग अगर आपके बारे में श्रेष्‍ठ भाव रखते हैं तो आपका जीवन धन्‍य है। खास तौर पर, आपके मरने के बाद। ध्‍यान जरूर रखिये कि दुनिया में हर शख्‍स राम या कृष्‍ण नहीं बन सकता है और अगर बन भी जाए, तो उसमें भी पचासों नुक्‍स निकालने वालों की भीड़ एक कोने में जरूर आसन जमाये बैठी रहती है।
ताजा इतिहास में लखनऊ हाईकोर्ट में रमेश पाण्‍डेय का मामला बेमिसाल है। दोलत्‍ती डॉट कॉम ने हाईकोर्ट के कई वकीलों से बातचीत की। ऐसे वकीलों से नहीं, जो अवध बार एसोसियेशन के पिछले चुनाव में कुल-कलंक साबित होते हुए बार संघ से निकाल बाहर कर दिये गये हैं। ऐसों से भी नहीं, जो वरिष्‍ठतम पायदान तक पहुंच चुके हैं, क्‍योंकि वरिष्‍ठता के मामले में उनके कई आग्रह-दुराग्रह भी होते हैं। बल्कि ऐसे वकीलों से बातचीत हमने की, जो हाईकोर्ट में सक्रिय हैं और सम्‍मानित भी हैं। ऐसे सभी वकीलों का एकमत में यही मानना था कि हाल के बरसों में केवल तीन लोग ही वकील रहे हैं, जिनके व्‍यवहार को लेकर कसम तक उठायी जा सकती है। इनमें दो तो काल-कलवित हो गये, यानी वीरेंद्र भाटिया और रमेश पांडेय।

लेकिन अब एक मजबूत पहरुआ की तरह वकालत की दुनिया में दमक रहे हैं डॉक्‍टर लालताप्रसाद मिश्र, यानी एलपी मिश्र। दूसरों की दिक्‍कतों को वे अपना खुद का समझना इन लोगों में देखना चाहिए। अगर किसी दिक्‍कत को निपटाने में उनकी आर्थिक पूरी तरह नहीं हो पाती थी, तो दूसरों से भी खुद मदद मांगने में झिझक नहीं करते थे रमेश पांडेय। इतना ही नहीं, रमेश पाण्‍डेय के अधीनस्‍थ यानी जूनियर वकीलों में तो रमेश पाण्‍डेय में एक अजब भाव है। मौत के तीन बरस बाद भी उनके सारे जूनियर वकील खुलेआम स्‍वीकार करते हैं कि उन्‍होंने अपने किसी भी अधीनस्‍थ वकील की फीस को कभी नहीं लटकाया, बल्कि समय से ही उसका भुगतान करते रहे। मजाल है कि किसी भी जूनियर की कोई भी दमड़ी तक रमेश पाण्‍डेय पर आज भी बकाया हो। यही बात वीरेंद्र भाटिया को लेकर भी थी।
जाहिर है कि रमेश पाण्‍डेय ने अपनी यह छवि खुद बनायी है। दूसरों के कष्‍ट, समस्‍या, दुख, आवश्‍यकता और बेहाली के मौके पर अगर वे हमेशा सामने खड़े रहे। यही तो लसोढ़ा-पन है। आप केवल अपने ही नहीं, बल्कि अपने साथियों, मित्रों और परिचितों के लिए भी जीते हैं, उनकी दिक्‍कतों और उनकी खुशियों में लगातार साझा करते रहते हैं। दूसरों को अपने आप के साथ जोड़ने का जो गुण होता है, वही तो जीवन भर किसी ठोस कमाई की तरह सामने दिखायी जाती है। वरना आप खुद सोचिये कि अगर रमेश पाण्‍डेय ऐसे नहीं होते, तो उनके मरने के बाद भी उनके बारे में कोई उनकी तारीफ के पुल नहीं बांधते।
ऐसे ही लसोढ़ा-पन की अद्भुत जिन्‍दा मिसाल हैं डॉक्‍टर लालता प्रसाद मिश्र, यानी डॉ एलपी मिश्रा। उन पर केंद्रित अपनी एक रिपोर्ट को तैयार करते समय मैंने पाया कि वे राम जेठमलानी के जिन्‍दा प्रतिमूर्ति हैं। ऐसा नहीं है कि उनको जीवन में कोई ठेस नहीं लगी। बहराइच के बौंड़ी इलाके वाले एलपी मिश्रा का गांव घाघरा नदी के किनारे था। नदी का प्रवाह कभी एक पाट के इलाकों को काट देता था, तो कभी दूसरे पाट को अपने आप में आत्‍मसात कर उसे समाप्‍त कर देती थी। जाहिर है कि ऐसे में जमीन और फसल का विवाद खड़ा होने लगता था। टिटरी-के-टूं यानी निहायत इकलौते चेसिस जैसे बदनवाले एलपी मिश्रा अचानक एक दिन बंदूक लेकर नदी के दूसरे हिस्‍से तक पहुंच गये और अपनी फसल का हिस्‍सा काट ले आये। कोई चूं तक नहीं कर पाया।
अब यह दीगर बात है कि उनकी न तो प्रकृत्ति में चली, और न ही राजनीति में। बचपन में ही उनका गांव घाघरा नदी में समा गया, और भाजपा के टिकट से कैसरगंज की सीट भी वे नहीं नहीं निकाल पाये। उसके बाद में बहराइच के कालेज में भी उनका नेतृत्‍व-गुण चहुं-ओर विकसित हुआ, जो तीन दशक के पहले लखनऊ हाईकोर्ट में अचानक एक दिन दिख पड़ा। लेकिन लखनऊ में कानून की पढ़ाई से लेकर आज तक वकालत के दिशा में डॉक्‍टर लालताप्रसाद मिश्रा ने जो कमाल किया, वह अधिकांश मामलों में बेमिसाल है। लालता प्रसाद मिश्रा को आप कई मसलों में खारिज कर सकते हैं, या उनका खंडन अथवा निंदा भी कर सकते हैं। लेकिन वकालत की दुनिया में जहां एक पक्ष में अपने पूरे दमखम के साथ अदालत के सामने पेश किया जाना होता है, उसके हुनर को कोई किसी भी कीमत पर खारिज नहीं कर सकता।
वकालत में सफलता का सबसे बड़े प्रमाणिक जीवन्‍त चिन्‍ह हैं डॉ एलपी मिश्रा। अपने व्‍यवहार के चलते एलपी मिश्रा ने भले ही हाईकोर्ट में जज अथवा सीनियर एडवोकेट का ओहदा छोड़ दिया, लेकिन हाईकोर्ट अवध बार एसोसियेशन के अध्‍यक्ष के अलावा वकालत के हर आयाम में एलपी मिश्रा बेमिसाल हैं। हर वक्‍त मुस्‍कुराहट, अपनापन, अपनों के प्रति त्‍वरा-भाव और समर्पण, और अपने दायित्‍वों के प्रति जुड़ाव एकसाथ किसी एक व्‍यक्ति में देखना हो तो ऐसे शख्‍स का नाम है एलपी मिश्र। उनको अपने वकील के तौर पर साइन कराने का मतलब ही होता है कि मामले को जीत लेना। एलपी मिश्रा के आसपास किसी चमकदार प्रभामंडल की तरह वकीलों की भीड़ होती है।
साफ बात तो यह है कि दिल के मामले में साफ और बेदाग शख्सियत हैं डॉ एलपी मिश्रा। सबसे बड़ी बात तो अपने जूनियरों के साथ उनका व्‍यवहार। एलपी मिश्रा का आज तक कोई भी ऐसा जूनियर नहीं मिला, जो एलपी मिश्रा का तनिक भी नुक्‍स निकालते दिखा हो। वकालत में दिग्‍गज माने जाने वाले उनके विरोधी वकील भी एलपी मिश्र की खासियत को सरेआम बखानते हैं। अपने जीवन में वकालत में एलपी मिश्रा ने बड़ी संख्‍या में जूनियरों को सिखाया है और उनकी मदद ली है, उनमें से ज्‍यादातर लोग आज खुद अपने चैम्‍बर के मालिक हैं और सफल एडवोकेसी में संलिप्‍त हैं। लेकिन दोलत्‍ती डॉट कॉम ने डॉ एलपी मिश्रा के जिस भी पूर्व जूनियर से बातचीत की, उसका दो-टूक कहना था कि डॉ एलपी मिश्र एक ऐसा पर्वत हैं, जिनको छू तक लेना असंभव है। सभी को एलपी मिश्रा से कोई शिकायत नहीं। उनको साफ कहना है कि जूनियरों की फीस का भुगतान वे न केवल समय से, बल्कि कुछ न कुछ ज्‍यादा ही देते रहे हैं। बेहिसाब मेहनती एलपी मिश्रा को उनके किसी भी परिचित के किसी भी समारोह में आप बाकायदा मिल जाएंगे।
केवल जूनियर ही नहीं, बल्कि अपने परिचितों, मित्रों और साथी-संगियों के साथ भी एलपी मिश्रा का व्‍यवहार दूसरों के मुकाबले काफी सहयोगी, मददगार और आत्‍मीय है। अपनों की तनिक भी दिक्‍कत का अहसास होते ही, वे एलपी मिश्रा किसी प्रकाश-पुंज की तरह मौके पर पहुंच जाते हैं। किसी और में ऐसा कोई दमखम, आत्‍मीयता, निर्दोष भाव और बेदाग सहयोग-भाव मौजूद हो, मैं नहीं समझता। अपनों को एकसाथ जोड़ने वाले लसोढ़ा-पन का सार्थक-भाव अगर किसी में फिलहाल मौजूद हैं, तो उनका नाम है डॉक्‍टर लालताप्रसाद मिश्र उर्फ डॉ एलपी मिश्रा।

( यह श्रंखला-बद्ध रिपोर्ताज है। लगातार उपेक्षा के चलते प्रकृति के लुप्‍त-प्राय पहरुआ के तौर पर। बिम्‍ब के तौर पर चुना गया है वृक्ष का वह पहलू, जिसका लसलसा गोंद ही नहीं, बल्कि पूरा पेड़ ही प्रकृति के लिए समर्पित है। लेकिन इसमें जोड़ने की जो अद्भुत क्षमता और दैवीय गुण है, उसके बहुआयामी आधार पर जोड़ने की कोशिश की गयी है। समाज में ऐसे गुणों को पहचान, उसके प्रयोग और समाज के विभिन्‍न क्षेत्रों में ऐसे गुणों की उपयोगिता और उपादेयता को केवल समझने-समझाने के लिए प्रयोग किया गया है। कोशिश की गयी है कि क्षेत्र के विभिन्‍न समूहों के प्रतिनिधि-व्‍यक्तियों को इसमें शामिल किया जाए। शायद आप उससे कुछ सीखने की कोशिश करना चाहें।
यह खबर www.dolatti.com पर है। लगातार सारे अंक एक के बाद एक उसी पर लगा रहा हूं, आपकी सुविधा के लिए। फिलहाल तो यह श्रंखला चलेगी। शायद पचीस या पचास कडि़यों में। रोजाना कम से कम एक। उन रिपोर्ताज की कडि़यों को सिलसिलेवार हमेशा-हमेशा तक समेटने और उसे खोजने का तरीका हम जल्‍दी ही आपको बता देंगे।
संवेदनाओं का लसोढ़ा– ग्‍यारह )

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