: गोंडा-बहराइच के सीमान्त कर्नेलगंज के तरबगंज की सड़क के किनारे पर है मकान : दुर्धष-यात्री की तरह यात्रा कभी थमी नहीं। राजसत्ता से लेकर बिस्तर तक, और फिर बिस्तर से जेल तक : 04 में चिन्मयानन्द ने अपने सांसदी चुनाव में प्रचार के लिए मुझे उत्कोच यानी घूस-प्रलोभन दिया : बाघमंरी मठ से याद आया चिन्मयानन्द का यह गांव :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अनायास नहीं, बाकायदा सायास आज अचानक चिन्मयानन्द के घर पहुंच गया। लखनऊ से गोंडा से 10 कोस पहले कर्नेलगंज बाजार से 5 कोस बाद तरबगंज बाजार के पास एक गांव के रहने वाले थे चिन्मयानन्द। सड़क के ठीक सामने। सुंदर, सजा और आकर्षक मकान है, जिसमें उनके भाई और उनकी बूढी भाभी भी रहती हैं। दरअसल, बाघमंरी मठ के मुखिया नरेंद्र गिरी की आत्महत्या से जुड़े सेक्स और सम्पत्ति के सवालों को खंगालने के लिए मैं यहां आया। मेरे साथ है कर्नेलगंज के पत्रकार अशोक शुक्ला और उनके सहृदय सहयोगी पत्रकार।
लेकिन बचपन से ही चिन्मयानन्द का मन पढ़ाई में नहीं लगता था। इसी चक्कर में उन्होंने गांव छोड़ा, लेकिन आत्मीयता नहीं। आज जो यह घर है न, चिन्मयानन्द की देन ही है। बहरहाल, अपना धंधा, दुकान और दीगर जरूरतों के लिए चिन्मयानन्द ने खुद को स्वामी की गद्दी हासिल की और मुमताज के नाम पर बने शाहजहांपुर जिले में अपना खूंटा गाड़ लिया। उसके बाद उनकी यात्रा बहुत दूर-दूर तक हुई, ऋषिकेश, बद्रीनाथ, लखनऊ, दिल्ली। फिर जौनपुर से होते हुए पूर्वोत्तर राज्यों तक काफी गये। एकाउंट शाहजहांपुर में था, लेकिन बैटिंग देश-विदेश तक करते रहे। उनकी यात्रा कभी थमी नहीं। राजसत्ता से लेकर बिस्तर तक, और फिर बिस्तर से जेल तक। खासे रंग-बिरंगे रहे स्वामी जी। जो भी मिला, उसका अपना स्वामी बना लिया। वीडियो भी बनवा लिया।
उसके पहले ही उनकी एक शिष्या चिदर्पिता ने भी ऐसे कारनामे दिखाये कि चिन्मयानन्द बिलकुल नंगधड़ंग हो गये। चिदर्पिता ने चिन्मयानन्द के बारे में ऐसे-ऐसे खुलासे किये, कि पूरी भाजपा ही नहीं, बल्कि पूरा समाज ही स्तब्ध रह गया। चिदर्पिता के बयान और प्रमाण किसी अडिग-अकाट्य आधार की तरह थे। कहने की जरत नहीं कि तब उस वक्त चिदर्पिता एक साहसी महिला की तरह पूरे समाज में एक योद्धा की तरह पूजी जाने लगी थी, लेकिन बाद की घटनाओं ने चिदर्पिता के कुछ फैसलों ने उसे अंधरों में धकेल दिया। हमेशा-हमेशा के लिए।
चिन्मयानन्द केवल कर्मकांडी धर्म ही नहीं, बल्कि व्यावहारी जगत के लेनदेन के भी माहिर थे। बाकी के बारे में तो पूरी दुनिया जान चुकी है, लेकिन सन-04 में चिन्मयानन्द ने अपने सांसदी चुनाव में प्रचार के लिए मुझे उत्कोच यानी घूस अथवा प्रलोभन भी दिया था। कहने की जरूरत नहीं कि वह चुनाव चिन्मयानन्द हार गये थे। उसके बाद से उनका ग्राफ लगातार इतना ज्यादा उठता रहा कि वे कारागार-वासी हो गये।
वह तो योगी आदित्यनाथ की कृपा चिन्मयानन्द पर जबर्दस्त थी, जो उन्होंने पूरा मामला खुद देखना शुरू किया, और बाकायदा सुलटा ही दिया। जिन नाबालिग लड़कियों ने चिन्मयानन्द पर दुराचार का आरोप लगाया था, उन किशोरियों ने अपने बयान से पल्ला झाड़ दिया। नतीजा यह हुआ कि चिन्मयानन्द बाकायदा सफेद साफ बरी हो गये। लेकिन अब चर्चाओं का क्या किया जाए, जो आज तक चिन्मयानन्द के प्रभा-मंडल वाले आसमान में सेंध लगाया करती हैं। शायद जीवन भर वे उससे वे बरी नहीं हो पायेंगे। उनके समर्थक इस बात को मानें या नहीं मानें, लेकिन समाज में लोक-चर्चाएं बेहद असरकारी और प्रभावकारी होती हैं।