आइये कौवा-गिरी, काइयांपन व चतुरता को समझिये

दोलत्ती

: मूर्ख एक सरल प्रवृत्ति होती है। लेकिन हमें मूर्ख और चतुर व्‍यक्ति का सम्‍मान करना चाहिए : विभिन्‍न शब्‍दों में पर्यायवाची अर्थ, प्रक्रिया और पद्यति को समझना होगा : सबसे ज्‍यादा दुर्गंधमयी विनाशकारी व्‍यक्ति होता है काइयां : वह अपने घनिष्‍ठ मित्र तक की खिल्‍ली उड़ाने में भी अपनी शेखी समझता है : 

कुमार सौवीर

लखनऊ : कौवा-गिरी, काइयां-पना और चतुरता। यह तीनों ही शब्‍द अपनी पीठ पर लगभग एक-समान अर्थ लादे रहते हैं। जन्‍म से भी और बाद व्‍यवहार के चलते भी। लेकिन उनका भाव, उसकी रणनीति, क्रियाविधि और उसका अंजाम अलग-अलग शब्दों के अनुरूप अलग-अलग ही होता है। इसे समझने के लिए हमें इन्‍हें पर्यायवाची प्रक्रिया और पद्यति को समझना होगा। पर्यायवाची होने के चलते समानार्थी शब्‍द होने के बावजूद ऐसे शब्‍द अपना एक अनोखा अंदाज, भाव और उसकी प्रवृत्तियों को भी समेटे रहेते हैं।

पहला शब्‍द कौवा। कौवा खुद को पूरी सृष्टि का सबसे ज्यादा समझदार प्राणी मानता है। एक पत्ता भी खड़का नहीं, कि कौवा सतर्कता की स्पीड बढ़ा लेता है। लेकिन नतीजा ! विष्ठा तक खाने से परहेज नहीं करता। ग्रामीण परिवेश को जानने, समझने और व्‍यक्‍त करने वाले आप किसी भी व्‍यक्ति से बात कीजिए। कौवे की ऐसी प्रवृत्ति को वे फौरन इन शब्‍दों में जाहिर करेंगे कि:- बड़ा चतुर कव्‍वा हमेशा गू ही खाता है। लब्‍बोलुआब यह कि कौवे का यह व्‍यवहार उसकी चालाकी नहीं, बल्कि उसकी परले दर्जे की मूर्खता का प्रतीक और परिणाम होता है।

अब आइये, तनिक काइयां और उसके काइयांपन के बारे में थोड़ी बातचीत कर ली जाए। मेरा मानना है कि काइयांपन इंसान का समग्र, निचोड़ या मौलिक गुण नहीं होता है, बल्कि एक छोटे सी मानसिकता रखने वालों लोगों की इकाई भर ही होता है। एक झुंड। ऐसे लोग कौवे से इतर व्‍यवहार करते हैं। कौवा जहां बात-बात पर उचक-उचक कर पंख और चोंच के साथ अपनी गर्दन उचकाता रहता है, वहीं काइयां व्‍यक्ति हमेशा एक खास अंदाज में अपनी आंखें चमकाता है, फैलाता है, सिकोड़ता है। इतना ही नहीं, वह अपने आसपास मौजूद लोगों के सामने एक खास तरीके से मुस्‍कुराने और दूसरों को मूर्ख बनाने की कोशिश करता रहता है। इसके अलावा उसका हाव-भाव भी एक खास तरीके से होता रहता है। वार्तालाप के दौरान वह लगातार यह प्रदर्शन करने में जुटा रहता है कि मानो उसे उस बातचीत में कोई रुचि नहीं। लेकिन उसका यह प्रदर्शन एक नाटक से ज्‍यादा नहीं होता है।

सच यही होता है कि वह पूरे दौरान दूसरों को मूर्ख बनाने में जुटा रहता है। लेकिन उस पूरे दौरान सामने वाले को अपना करीबी मित्र भी साबित करता है, मगर उसका इस्‍तेमाल करने की जुगत में रहता है। ऐसा व्‍यक्ति लाख कोशिश कर ले, लेकिन कभी भी अपने क्षेत्र में किसी भी प्रमुख ओहदे तक नहीं पहुंच पाता है। वह मूर्खों को तो मूर्ख बना सकता है, लेकिन समझदारों को नहीं। वजह यह कि वह अपने घनिष्‍ठ मित्र तक की खिल्‍ली उड़ाने में भी अपनी शेखी समझता है। इतना ही नहीं, उसके चरित्र का सार्वजनिकीकरण बहुत जल्‍दी हो जाता है। मुझे लगता है कि आमिर खान वाली 3-ईडियट्स फिल्‍म में जिस चतुर नामक व्‍यक्‍त का रेखांकन किया गया है, उसकी तुलना आप सीधे-सीधे काइयां व्‍यक्ति से बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।

अब समझा जाए चतुरता को। दरअसल, चतुर व्‍यक्ति एक संतुलित व्‍यक्ति होने के बावजूद अपने क्षेत्र में महारत हासिल करने का विशिष्‍ट-गुण रखता है। उसके लक्ष्‍य बड़े होते हैं, जिनमें आदर्श-वाद प्रगाढ़ होता है। मित्रता के प्रति विश्‍वास और उनके बारे में गहरी आस्‍था रखता है चतुर व्‍यक्ति। वह केवल अपने ही स्‍वार्थ नहीं देखता, बल्कि दूसरों के प्रति समर्पित लाभों को भी खूब परखता है और उसके हिसाब से ही सार्वंगीण व्‍यवहार और रणनीति बनाना है।

लेकिन आपको बता दें कि इन तीनों से बिलकुल अलहदा होता मूर्ख। मूर्ख एक सरल प्रवृत्ति होती है। लेकिन हमें मूर्ख और चतुर व्‍यक्ति का सम्‍मान करना चाहिए, क्‍योंकि इन दोनों के चरित्र में बाकी लोगों को लेकर कोई प्रतिकूल या साजिश नहीं होती है। लेकिन सबसे ज्‍यादा दुर्गंधमयी विनाशकारी व्‍यक्ति होता है काइयां।

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