अवध बार एसोसिएशन: दरख़्त से मुकाबिल झोंका

दोलत्ती

: बडा फर्क है इस झगडे में शामिल शख्सियतों के बीच : मुअक्किल के लिए नहीं, अब खुद के लिए झगड पडे हैं वकील : वकीलों का झगडा की किश्त एक :
कुमार सौवीर
लखनऊ : लखनऊ हाईकोर्ट स्थित अवध बार एसोसिएशन में झगड़ा बहुत तगड़ा चल रहा है। खुदा जाने इस इस लफडे में कौन जीतेगा और कौन हारेगा। लेकिन इतना तय है कि इस हारजीत को तय करने का जिम्मा सौंप दे दिया गया है हाई कोर्ट पर। कहने की जरूरत नहीं, बल्कि शर्मनाक हालत यह है कि वकीलों की एसोसिएशन का झगड़ा इतिहास में पहली बार एसोसिएशन के बजाय सीधे हाईकोर्ट तक पहुंच गया। अपने मुअक्किलों के लिए जूझने-लडने वाले वकील अब अपने हक-हकूक के लिए सिर-फुटव्वल कर रहे हैं। और उससे भी घटिया हकीकत तो यह है कि इस झगडे में कानून की धज्जियों उधेडने के साथ ही साथ वकीलों के खजाने की लूट के आरोप भी शामिल हैं।
मतलब यह कि हाईकोर्ट के इस झगडे में फिलहाल दो धुरी साफ तौर पर दिख रही हैं। पहला तो है विशाल दरख़्त जबकि दूसरी ओर है हवा का एक झोंका। इसे भी न समझ पाये हों आप, तो इस समीकरण को कुछ इस तरह देखने की कोशिश कीजिए। यानी, एक तरफ है बड़ी हैसियत रखने वालों का डीएनए तो दूसरी तरफ एक नया उपजा तेवर। एक तरफ है सत्य की के लिए जंग का माद़दा, तो दूसरी तरफ घटिया और बेशर्म बेईमानी के आरोप। एक तरफ है तर्क और कानून, दूसरी तरफ है कानून और परंपराओं को दिखाता ठेंगा। एक तरफ है अकड़पन और स्वार्थी लहजा, तो दूसरी तरफ से है बदमाशी से सराबोर कोंपल-नुमा व्यवहारकुशल कुनबा। एक तरफ जातिवाद, तो दूसरी तरफ कानून पर आस्था। एक तरफ है तीतर-बटेर भूनती शाइस्तगी, तो दूसरी तरफ से वेजे​टेरियन भक्ति-भाव। एक तरफ है पैसा, तो दूसरी तरफ मेहनत। एक ओर बार एसोसिएशन के मूल्यों की चिंता को लेकर सवाल उठ रहे है तो दूसरी ओर लूट, बेईमानी, अनैतिकता और दलाली जैसे आरोप परस्पर विवाद की काई में फिसलते जा रहे हैं। जाहिर सी बात है कि एक तरफ है बेईमानी के खिलाफ सत्य की जंग, तो दूसरी तरफ धोखा-फरेब, विश्वासघात और झूठ।
लेकिन इस समीकरण को केवल बार एसोसिएशन के ताजा झगड़े से ही नहीं देखा जा सकत। इसकी शुरुआत तो बाबू हरगोविंद दयाल जैसे अजीमुश्शान शहंशाह से होती है जिसकी विशालकाय फोटो हाईकोर्ट में लगी है। एक दौर हुआ करता था बाबू हरगोविंद दयाल श्रीवास्तव कानून के सबसे बड़े प्रतीक हुआ करते थे। बहुत पैसा कमाया लेकिन उससे भी ज्यादा कमाया नाम और व्यवहार। बताते हैं कि केवल वकालत ही नहीं, बल्कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में ही बाबू हरगोविंद दयाल का नाम बेमिसाल है।
बाबू हरगोविंद दयाल ने केवल वकालत को ही नहीं बल्कि समाज और शिक्षा के क्षेत्र में भी अपनी जबरदस्त जिम्मेदारी निभाई थी। महिला डिग्री कॉलेज और मशहूर बाबू हरगोविंद दयाल ट्रस्ट की संपत्ति बाबू हरगोविंद की सामाजिक जिम्मेदारियों का प्रमाण है।
बाबू हरगोविंद दयाल दिमाग और तर्क पर बात जीतने की कोशिश करते थे और इसी आधार पर कानून को मजबूत किया करते थे। जानकार लोग बताते हैं कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में नसीरुद्दीन नामक एक मामला निहायत तकनीकी और ऐतिहासिक तरीके से बाबू हरगोविंद दयाल ने सुप्रीम कोर्ट में जीता। यह मामला था इलाहाबाद हाईकोर्ट से क्षेत्राधिकार को लेकर लखनऊ लखनऊ से अलग होने वाली खंडपीठ। इसी मामले के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ हाई कोर्ट बेंच मजबूत हुई।
ऐसा नहीं है कि इस मामले में केवल बाबू हरगोविंद दयाल अकेले थे बल्कि उनके साथ थे मोतीलाल तिलहरी जी उन्होंने इस पूरे मामले को भी बाबू के साथ पूरी जी-दारी से जीता। आपको बता दें कि मोतीलाल तिलहरी के बेटे हरीनाथ तिलहरी इलाहाबाद के जज रह चुके हैं। और हरीनाथ तिलहरी के पुत्र रवि नाथ इस समय हाईकोर्ट के जज हैं।
जबकि बाबू हरगोविंद दयाल के पुत्र उमेश चंद्रा बार एसोसियेशन के अध्यक्ष, और प्रदेश के महाधिवक्ता होने के साथ ही साथ प्रदेश के मंत्रिमंडल में मंत्री भी रह चुके हैं।
आपको बता दें कि उमेश चंद्रा की मृत्यु न्यायपरिसर अर्थात हाईकोर्ट परिसर में ही हुई, जब वे चीफ जस्टिस से मिलने गलियारे से गुजर रहे थे। उस वक्त उनकी उम्र 84 वर्ष थी। यह बात अभी 4 साल पहले यानी सन 2016 की अगस्त की है। इसके पहले दो हार्ट-स्ट्रोक झेल चुके थे उमेश चंद्र।
दोलत्ती को मिली खबरों के मुताबिक बाबू हरगोविंद दयाल के पौत्र प्रशांत चंद्रा से उमेश चंद्रा से पारिवारिक विवाद चलता रहा। लेकिन यह विवाद संपत्ति का झगड़ा ही है।
उमेश चंद्र जी हमेशा से ही बार एसोसिएशन में लगातार सक्रिय और बार एसोसिएशन के मूल्यों पर संघर्षरत रहे। आज उनके भतीजे यानी प्रशांत चंद्र बार एसोसिएशन के ही मसले पर सीधे हाईकोर्ट में मूल्यों के सवाल पर याचिका दायर कर चुके हैं। अब तक दो तारीखें पर सुनवाई हो चुकी हैं। जिनमें से पहली तारीख पर अच्छा खासा विवाद वर्ग खड़ा हो चुका है। इतना ही नहीं, हालत तो यहां तक बिगड़ी कि बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आनंद मणि त्रिपाठी ने भरी अदालत में प्रशांत चंद्र को बेईमान तक करार दे दिया।

अवध बार एसोसियेशन का झगडृा अब सतह पर ही नहीं, बल्कि हाईकोर्ट की दीवारों से बाहर निकल कर दहशत फैला रहा है। इस पूरे मामले पर दोलत्ती लगातार सतर्क है और आपको पल-पल की खबर देने को संकल्पित है।
देखते रहिये www.dolatti.com ( क्रमश: )

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