कुमार सौवीर इक जिद्दी आशिक, उसे ठुकराती है माशूका

: मेरे बारे में दूसरों की राय 75 फीसदी सच : पोएट्री के मामले में एक इल्‍लीट्रेट यानी निरक्षर-अनपढ़-जाहिल : मेरी कविता अभिजात्य भद्र-समाज के कवित्त-सभागारों में मुंह के बल धड़ाम : पोएटिकल एटीट्यूड है, लेकिन पोएट्री में पोलिटिकल एटीट्यूट नदारत : बेहतर समीक्षा तो करते हैं धनंजय शुक्‍ल, मैं उत्‍तीर्ण : कुमार सौवीर लखनऊ […]

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इक नारा उठा है जयपुर से, मैं भी रंडी हूं

: राजस्‍थान की अनुपमा तिवारी ने एक अनोखा आंदोलन छेड़ दिया : महिलाओं पर बढ़ते हमलों और उन पर फेंकी जा रही गालियों के खिलाफ जंग : रण-डी यानी रंडी, जो रण को जीत ले : कुमार सौवीर  जयपुर : भगवा-ब्रिगेड की करतूतों और उनकी ओर से महिलाओं पर उलीची जा रही गालियों के खिलाफ […]

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“आओ, रिश्‍तों की खाद बनाया जाए”

“आओ, रिश्‍तों की खाद बनाया जाए” रिश्‍ते चाहे वह जैविक हों, या फिर भावनाएं औपचारिक हों, अथवा आत्‍मीय या घनिष्‍ठ थोपे हुए हों, या फिर जबरन चिपकाये गये हों। उन्‍हें तोड़ कर फेंकना अक्‍लमंदी नहीं। बेहतर होगा कि उनको बटोर कर अपने से दूर कर दें। किसी गड्ढे में उन्‍हें दफ्न कर दिया जाए। सिलसिलेवार […]

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सोचता हूं कि अब इन्‍हें गोमती में प्रवाहित कर दूं

: मुझ में भी एक शरीर है, उसमें कुछ शरारतें हैं : किसी भी विषय पर उमड़ने को आतुर भाव हैं : कुछ वायदें हैं, कुछ रसीली बातें हैं, कुछ आग्रही चिट्ठियां हैं : खुद से बार-बार परास्‍त होती विजय की जद्दोजहद है : कुमार सौवीर लखनऊ : मैं कुमार सौवीर हूं। लेखक और पत्रकार हूं, और यदाकदा […]

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विश्‍वास का दंभ और टल्‍ली संपादक: पिटने से बचे कुमार विश्‍वास

: एक बड़े पत्रकार की दो पुस्‍तकों के लोकार्पण-समारोह की सफलता पर हुई थी एक झमाझम पार्टी : दिल्‍ली के बीएसएफ मेस में हुआ हादसा, जान बचा कर पतली गली से निकले कुमार विश्‍वास : दंभी विश्‍वास को धूल चटा डाला एक टल्‍ली हो चुके बड़े संपादक ने : कुमार सौवीर आप पार्टी के स्‍टेडियम […]

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मेरी ख्‍वाहिशों का भी इक जिस्‍म बना दे मौला

कुमार सौवीर चलो माना कि हम आफताब न बन पाये, ये भी माना, दहकते अंगार भी न हो पाये। मगर उनकी तपिश को क्‍या कहिये, उस साज-ओ-सोज को क्‍या कहिये। उनका क्‍या होगा जो माहताब में जिगर तपाये बैठे हैं, चीर कर सीने में उगाये बेमिसाल ख्‍वाब सुखाये बैठे हैं। ऐसे तलबगारों के गमों में […]

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सुभाष राय का कविता संग्रह ‘सलीब पर सच’ का लोकार्पण 26 को

: ‘सलीब पर सच’ का लोकार्पण रविवार 26 अगस्त 18 को कैफी एकेडमी में अपराह्न 4 बजे से : अध्यक्षता करेंगे वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना  मुख्य वक्ता होंगे वरिष्ठ कवि राजेश जोशी, विशिष्ट वक्ता होंगे वरिष्ठ आलोचक प्रो राजकुमार : सुभाष राय लखनऊ : मेरे कविता संग्रह ‘सलीब पर सच’ का लोकार्पण इसी माह 26 अगस्त, […]

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मेरी शिष्‍य ने जब बताया कि मैं क्‍या हूं, तो मैं फफक कर रो पड़ा

: दीपिका वर्मा ने शिक्षक-दिवस पर जो सम्‍मान दिया है, वह मेरे लिए अतुलनीय है : पहले तो यकीन ही नहीं आया कि यह मैं ही हूं, फिर टप्‍प-टप्‍प बरसने लगीं आंखें : गुरू तो तुम ही हो मेरी, चाहे वह दीपिका हो या फिर कविता : काश हर शख्‍स को ऐसी शिष्‍य मिलें, आमीन […]

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अवसादों से निकलने का इकलौता रास्‍ता है, जो भी मन में आये, लिख डालो

:  प्रतिबंधों की सांकलों को लांघकर आती आवाज़ें बनती हैं क्रांति : आस को ठौर बहुतेरे की अलख जगाती हैं शुभ्र शुभा की रचनाएं : मुजफ्फरनगर की रहने वाली हैं शुभ्र शुभा : विनय समीर सम्‍भल : “प्रतिबंधों की सांकलों को लांघकर आती आवाज़े अक्सर क्रांति का सबब बनती हैं” ..अब वो प्रतिबंध घर का […]

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रद्दी अखबार में लिपटे-छिपे सेनिटरी नेपकिन

: अब तक छिपी रही बातों को बहस के लिए आमंत्रित करती हैं शुभम श्री की कविताएं : मुस्करा उठते हैं लड़के, झेंप जाती हैं लड़कियाँ : गूँज रहे हैं कानों में वीर्य की स्तुति में लिखे श्लोक… : जेएनयू में एमए दर्जे में पढ़ती हैं गया की शुभम श्री : कोशिश – तीन मेरे […]

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जब कोई लड़की जमीन खुरच कर मिट्टी पर टपका देती है कुछ नमकीन बूंदें

: जब आवारगी पर आमादा लड़के इशारों में बेशर्मी से हंसते हैं : आशु चौधरी अर्शी की इस कविता को पढ कर दहल जाएंगे आप, शर्तिया : क्‍यों भेजा गया उसे पूरक नामक वस्‍तुओं में शामिल करने : ::: अर्शी ::: कुछ लड़कों की बातें सुनती उन बातों में धँसती हुई लड़की। सोचती है … […]

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प्रेम-वियोग ही नहीं, पिटाई भी होती है कविता की जननी

मैं तीन गुंडों से निपट सकता हूं, तेरी आंखों से नहीं कुमार सौवीर लखनऊ : लेकिन तुम मेरी यह शर्त मान लो कि तुम मुझे छक्‍का नहीं मानोगे, तब ही बताऊंगा। हां नहीं तो… तो दोस्‍तों, यह करीब पचीस साल पहले की बात रही होगी। एक रात करीब डेढ़ बजे मैं अपने एक मित्र के […]

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जननी के आंसूं ना आयें!

क्यों दुनिया का दस्तूर यही है कि बेटी विदा होती हैक्यों बेटे ही बनते हैं बुढापे की लाठीक्यों ना बेटों को मिले नया घर,जहां पूरा करें वो हर सपना~~~ …नये घर में बेटे बनायें रिश्ते नयेअपनी पत्नी के घर को अपनायें!अगर आपका पुरुष अहम ना टूटेआओ ऍसा इक जहां बनायें! कुछ ना खोयेगा पुरुष भी […]

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कभी भादों तो कभी सावन हैं

कितनी मनभावन हैं बेटियां,कभी भादों तो कभी सावन हैं। बेटियाँ रिश्तों-सी पाक होती हैंजो बुनती हैं एक शालअपने संबंधों के धागे से। बेटियाँ धान-सी होती हैंपक जाने पर जिन्हेंकट जाना होता है जड़ से अपनीफिर रोप दिया जाता है जिन्हेंनई ज़मीन में। बेटियाँ मंदिर की घंटियाँ होती हैंजो बजा करती हैंकभी पीहर तो कभी ससुराल […]

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