: राजस्थान की अनुपमा तिवारी ने एक अनोखा आंदोलन छेड़ दिया : महिलाओं पर बढ़ते हमलों और उन पर फेंकी जा रही गालियों के खिलाफ जंग : रण-डी यानी रंडी, जो रण को जीत ले :
कुमार सौवीर
जयपुर : भगवा-ब्रिगेड की करतूतों और उनकी ओर से महिलाओं पर उलीची जा रही गालियों के खिलाफ जयपुर की एक महिला ने एक अनोखा आंदोलन छेड़ दिया है। इस महिला का कहना है कि जब किसी सक्रिय महिला की पहलकदमी को रौंदने के लिए अश्लील शब्दों का इस्तेमाल करते हो, उसे रंडी जैसी गालियों से नवाजते हो, तो फिर हम तुम्हारी गालियों को शिरोधार्य कर लेंगे। और खुद को रंडी के नाम से ही स्वीकार कर लेंगे।
यह महिला है अनुपमा तिवारी। जयपुर की पली-बढ़ी अनुपमा सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ ही साथ कविता भी करती हैं। उनका एक कविता संग्रह भी बाजार में आ चुका है। अपने ताजा कदम के तहत अनुपमा ने खुद को रंडी के तौर पर कुबूल लिया है। उन्होंने कहा है कि अगर तुम्हें दीपिका पादकोणे और नीलिमा जैसी महिलाओं को रंडी कह कर संतुष्टि मिलती है, तो फिर वही ठीक। अब हम केवल दीपिका ही क्यों, स्वयं को भी रंडी के तौर कुबूल लिये देते हैं। कहने की जरूरत नहीं कि महिलाओं पर बढ़ते हमलों और उन पर फेंकी जा रही गालियों के खिलाफ यह जंग वाकई खासी मजबूत होती जा रही है। अनुपमा की इन लाइनों को बडी संख्या में अपनाया है, जिनमें महिलाओं की तादात बेहिसाब है।
इतना ही नहीं, महिलाओं ने रंडी शब्द का एक नायाब अर्थ भी निकाल दिया है। अनुपमा की वाल पर वीणा वत्सल सिंह ने लिखा है कि:- यह तो बहुत बढ़िया शब्द है – रण+ डी। इसका जवाब देते हुए अनुपमा तिवारी ने जवाब दिया है कि:- वाह वीणा जी, जो रण को जीत ले !
इस पर पँकज सविता ने लिखा है कि रण पे निकली डॉटर = रण+डी
वीणा वत्सल सिंह का कहना है कि:- व्याख्याएं एकदम सटीक एवं सार्थक हैं
Bata Bhurji लिखते हैं कि वीणा वत्सल सिंह रणधीर की दीपिका
बहरहाल, अनुपमा तिवारी की इन लाइनों का मजमून कुछ इस तरह है:-
रंडी
कल से दीपिका पादेकोण को रंडी लिखा पढ़ रही हूँ
तस्लीमा, घोषित रंडी है
नीलिमा चौहान, उभरती रंडी है
मैं भी रंडी होना चाहती हूँ.
अब रंडी गिरा हुआ शब्द नहीं
क्षोभ और गर्व से मिश्रित शब्द है
समय के साथ शब्दों के अर्थ बदलते जाते हैं
मुझे लगता है
इस देश और दुनिया को अब देवियों की नहीं,
रंडियों की ज़रुरत है
मेरी कामना है
कि इन जैसी इस दुनिया में तमाम रंडियां जन्म लें !