“आओ, रिश्तों की खाद बनाया जाए”
रिश्ते
चाहे वह जैविक हों, या फिर भावनाएं
औपचारिक हों, अथवा आत्मीय या घनिष्ठ
थोपे हुए हों, या फिर जबरन चिपकाये गये हों।
उन्हें तोड़ कर फेंकना अक्लमंदी नहीं।
बेहतर होगा कि उनको बटोर कर अपने से दूर कर दें।
किसी गड्ढे में उन्हें दफ्न कर दिया जाए।
सिलसिलेवार और तरतीबवार।
इससे उनसे बनी खाद सर्वश्रेष्ठ होगी।
हमारे लिए वो भले ही मुफीद न हो
लेकिन हमारी अगली पीढ़ी के लिए फायदेमंद होगी।
कम से कम, उन्हें रिश्तों को देखने, पहचानने, परखने
और उनको ठिकाने लगाने की तमीज मिल जाएगी।
कोशिश करने में क्या दिक्कत है?
कुछ न कुछ तो करना ही होगा हमें।
नये साल को खुशनुमा बनाने के लिए
लम्बी टीस की बर्फ को तोड़ने के लिए
गले में फांस की तरह चुभते, फांसी लगाते संबंधों के लिए
जिन्दगी को तरोताजा जिन्दगी में बदलने के लिए
जिन्दगी को नये सिरे से जिन्दा करने के लिए।
जो बीत रहा है, उसके खिलाफ एक धर्मयुद्ध की तरह
हमें संकल्प लेना ही होगा।
फिर देखना होगा कि जिन्दगी कैसे सरपट दौड़ती है, या मुंह के बल गिर पड़ती है।
कुछ भी हो, नया साल मुबारक हो।
आपको और आपके परिवारीजनों के साथ उन दुश्मनों को भी मुबारक हो, जिनके दिमाग में आपके खिलाफ भरा कूड़ा-जाला जल्दी ही साफ होने वाला है।
कुमार सौवीर
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