जननी के आंसूं ना आयें!

मेरा कोना

क्यों दुनिया का दस्तूर यही है कि बेटी विदा होती है
क्यों बेटे ही बनते हैं बुढापे की लाठी
क्यों ना बेटों को मिले नया घर,
जहां पूरा करें वो हर सपना~~~

नये घर में बेटे बनायें रिश्ते नये
अपनी पत्नी के घर को अपनायें!
अगर आपका पुरुष अहम ना टूटे
आओ ऍसा इक जहां बनायें!

कुछ ना खोयेगा पुरुष भी हो के विदा,
वरन पायेगा स्नेही माता और पिता!!

हां! उसकी जननी की महत्ता खत्म नहीं होगी
बल्कि वरदान करने पे स्वर्ग की भागीदारी होगी

बच्चे जयेंगे दादा दादी के घर पे मिलने को
इन सबके लिये, 
आओ इक दस्तूर बनायें!
अगर आपका पुरुष अहम ना टूटे
आओ ऍसा इक जहां बनायें!

जहां बेटी हो बुढापे की लाठी,
बेटी होने पर सोने की थाली बजायी जाए!
अगर आपका पुरुष अहम ना टूटे
आओ ऍसा इक जहां बनायें!

कन्या मृत्यु बन्द हो जाये,
जननी के आंसूं ना आयें!
अगर आपका पुरुष अहम ना टूटे
आओ ऍसा इक जहां बनायें!

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