अवसादों से निकलने का इकलौता रास्‍ता है, जो भी मन में आये, लिख डालो

सक्सेस सांग

:  प्रतिबंधों की सांकलों को लांघकर आती आवाज़ें बनती हैं क्रांति : आस को ठौर बहुतेरे की अलख जगाती हैं शुभ्र शुभा की रचनाएं : मुजफ्फरनगर की रहने वाली हैं शुभ्र शुभा :

विनय समीर

सम्‍भल : “प्रतिबंधों की सांकलों को लांघकर आती आवाज़े अक्सर क्रांति का सबब बनती हैं” ..अब वो प्रतिबंध घर का हो, समाज का हो अथवा रूढ़िवादी पारंपरिक सोच का ..भले ही सामंती विचारधारा के ठकुरई समाज में घर की महिला का मुखर होना शायद विद्रोह की निशानी समझा जाता हो लेकिन प्रतिभा का उदीप्त प्रकाश बंद दरवाजों में भी दरार खोजकर फूट पड़ता है, वो कहा गया है न कि ..”आस को ठौर बहुतेरे” ..बस इन्ही आस के ठौरों में ठहराती गहराती प्रतिभा की लहरें जब अपने आवेग को प्राप्त कर स्वच्छंदता की ओर पींगें बढाती हैं तो जन्म होता है एक नवक्रांति का ..एक ऐसी आवाज़ का.. जिसकी गूंज तमाम बंधनों के बावजूद अपने प्रहार से ख़ामोशी के सारे शीशे चकनाचूर कर देती है ..

आज इस परिचय श्रृंखला “लिक्खाड़ शख्शियतें” की इक्कीसवीं पायदान पर ऐसी ही एक आवाज़ शुभ्रा विभा शिशौदिया का ज़िक्र है, जिसने ठकुरई के समस्त सामाजिक अवरोध आवरणों को स्वीकार करते हुए अपने समाजधर्म को निबाहने के साथ अपनी आवाज़ को भी इस दर्जा मुखर किया कि उनकी कलम की कोख से जन्मी रचनाएँ एक दायरे में रहने के बावजूद अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब हुई हैं! पश्चिमी उत्तरप्रदेश के गुड़ गन्ना ओर गुणों की धरती मेरठ मुजफ्फरनगर अंचल के ग्रामीण परिवेश में जन्मी, और इसी संस्कृति में पल बढ़कर, इसी ठकुरई निगरानी में ब्याहकर अपने विचार प्रवाह और शब्द सामर्थ्य को तमाम झंझावातों के मध्य मुखर करने वाली शुभ्र शुभा शिशोदिया से मेरा कोई खास परिचय तो नहीं है परंतु यहाँ फेसबुक की टहल के दौरान निगाह से गुज़री उनकी रचनाओं ने मुझे विवश किया कि मैं उनको परदे के पीछे से निकालकर प्रबुद्ध पाठक वर्ग के समक्ष लाऊं और इसी प्रयत्न के क्रम में उनसे प्राप्त उनका सफरनामा, उन्ही के शव्दों में आप तक पहुंचा रहा हूँ !

“मेरा पूरा नाम विभा शिशौदिया है, मैं मूलतः जिला मुज़फ्फरनगर यूपी के बिरालसी गाँव से ताल्लुक रखती हूँ । सन् 1980 में मेरा जन्म एक ठाकुर परिवार में हुआ। मेरे पिता एक अध्यापक , एक किसान , एक बहुत अच्छे गायक , एक बहुत अच्छे खिलाडी ,और एक बहुत अच्छे एक्टर थे। मेरी माँ एक घरेलू महिला हैं । मेरे पिताजी अकसर अमृता जी को पढ़ा करते थे और मैं उन्हें बड़ी उत्सुकता से देखा करती थी और जब पिताजी कहीं चले जाते तो मैं छुपकर अमृता जी की किताबें पढ़ा करती थी, मेरी उम्र उस टाइम कोई यही 12 ,13 साल रही होगी, जिस उम्र में मेरी सहेलियाँ गुड्डे गुड़िया खेला करती थीं, मैं उस उम्र में माँ पिताजी से छुपकर अमृता जी को पढ़ा करती थी।

मेरी माँ बिलकुल साधारण सी एक घरेलू महिला हैं। बचपन से ही मैं अपने पिता के बहुत करीब रही। लेकिन पिता का साथ ज्यादा लंबे समय तक नही मिल पाया, सन् 2000 जनवरी में मेरे पिता जी की आकस्मिक मृत्यु ने मुझे तोड़ कर रख दिया, बस यहीं से मन में एक टूटन सी हुयी और मैं खुद से विरक्त सी हो गयी। मैं घर की बड़ी बेटी थी तो पिताजी के बाद पूरे घर की ज़िम्मेदार मेरे ऊपर थी जो मैंने बखूबी निभायी लेकिन मन में एक अथाह पीड़ा घर कर गयी थी जो मैं कभी किसी से कहती नही थी । पिताजी की मृत्यु के बाद मैंने दोनों भाई बहनो को भी पढ़ाया और खुद भी अंग्रेजी से एमए किया । मुझे गाने का बेहद शौक था इसलिए स्कूल और कालेज तक हर प्रतियोगिता, सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा लेती थीं और हमेशा फर्स्ट आती थी । लेकिन एक ठाकुर परिवार की बेटी होने के कारण हमें विचारो की अभिव्यक्ति की आज़ादी नही थी इसलिए मैं चाहते हुए भी कभी कुछ नही लिख सकी । सन् 2004 में मेरी शादी मेरठ हैंमें एक ठाकुर परिवार में ही हुयी । मेरा एक बेटा और एक बेटी है ।”

“सब कुछ होने के बावजूद भी, मन में कहीं एक खालीपन एक उदासी हमेशा सालती थी, मैं पिता की यादों से कभी पीछा नही छुड़ा सकी और अवसादग्रस्त हो गयी । फिर अब से 10 महीने पहले मेरे एक फेसबुक मित्र आदरणीय सूरज रॉय सूरज जी जो कि मेरे गुरु जी भी हैं उन्होंने मुझसे कहा कि ‘इस अवसाद से निकलने का एक ही तरीका है कि तुम लिखा करो जो भी दिल में आये बस लिखा करो.. देखना सुकून मिलेगा।’ उनके कहने से 19 अक्‍तूबर-15 में अपनी पहली कविता यहाँ पोस्ट की । मैं नही जानती उसे कविता कहेंगे कि क्या कहेंगे, मैंने तो बस सीधे सीधे अपने मन के भाव लिख दिए थे । और सच में बेहद सुकून मिला । और आज भी मुझे लिखने का कोई नियम कोई क़ायदा नही पता बस जो दिल में आता है जैसे आता है सच्चे भाव जैसे के तैसे लिख देती हूँ । “

“मैंने प्रेम को जीया है , मैंने विरह को जीया है, मैंने सामाजिक प्रतिबंधों का भयानक रूप देखा है और भोगा है, इसीलिए मेरी कवितायेँ थोड़ी विद्रोही होती हैं, क्योंकि कोई भी इंसान जो जीता है वही लिखता है । मैं प्रेम कम ही लिख पाती हूँ । अकसर थोड़ी विद्रोही हो जाती हूँ। मेरी कविताओं मे विरह, वेदना, छल कपट का भोग आदि ये सब होता है । मैंने कभी भी अपने नाम के लिए या मशहूर होने के लिए नही लिखा, ना ही मैं झूठी वाहवाहियां चाहती हूँ, मैं लिखती हूँ तो बस जीने के लिए ..और ..लिखती हूँ तो ज़िन्दा हूँ” …

“मैंने जब लिखना शुरू किया तो एक नए नाम “शुभ्रा शुभा” के नाम से लिखना शुरू किया क्योंकि मेरे परिवार में घर की बहु बेटियों को लिखने की अपने विचार व्यक्त करने की आज़ादी नही है इसलिए किसी दूसरे नाम से लिखना शुरू किया जिसमे मुझे मेरे पति रोहित शिशौदिया जी ने बहुत सपोर्ट किया और मेरा साथ दिया। मेरे मायके और ससुराल में मेरे पति के अलावा आज तक भी किसी को ये नही पता कि मैं लिखती हूँ। मुझे समाज की अपने परिवारो की इसी संकीर्ण सोच पर बड़ा दुःख होता है । अभी मुझे लिखना शुरू किये 10 महीने ही हुए हैं, कोशिश जारी रहेगी कि हमेशा कुछ अच्छा लिख सकूँ ।”

चलते चलते आप सभी मित्रों से एक बात कि “मुझे दिल से पढ़ें दिमाग से नही” मैं नियम या कायदों में बंधकर नही लिख सकती इसलिए मुझे बहर,रदीफ़, काफ़िया का कोई ज्ञान नही । इसके बावजूद भी आप सबने मुझे जितना पसंद किया और जितना स्नेह दिया सराहा ,,उसके लिए मैं आप सबकी सदा आभारी रहूँगी। वर्तमान में, मैं एक गृहणी होने के साथ साथ एक मेकअप आर्टिस्ट ,और nomind publication में managing director हूँ। लेखन में अमृता जी और गुलज़ार जी मेरी प्रेरणा रहे हैं, मुझे पुराने गीत और ग़ज़लें सुनना बेहद पसंद है । मैं जब कभी उदास होती हूँ तो जगजीत सिंह जी, मेहँदी हसन जी , गुलाम अली साहब , आबिदा परवीन जी , और नुसरत फ़तेह अली खान साहब को सुनती हूँ। लेखन का उद्देश्य मैं खुद नही जानती …बस लिखती हूँ….लिखती रहूंगी …. जाने क्यों ??

तो मित्रों ये थी शुभ्रा शुभा की कलमयात्रा की कहानी उन्ही की जुबानी ..अब सुधि साथी इनकी रचनाओं के रसास्वादन हेतु निम्न लिंक ओपन कर देखें/पढ़ें …

१ – https://m.facebook.com/story.php…

२ – https://m.facebook.com/story.php…

३ – https://m.facebook.com/story.php…

४ – https://m.facebook.com/story.php…

५ – https://m.facebook.com/story.php…

६ – https://m.facebook.com/story.php…

७ – https://m.facebook.com/story.php…

८ – https://m.facebook.com/story.php…

९ – https://m.facebook.com/story.php…

१० – https://m.facebook.com/story.php…

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