रद्दी अखबार में लिपटे-छिपे सेनिटरी नेपकिन

बिटिया खबर

: अब तक छिपी रही बातों को बहस के लिए आमंत्रित करती हैं शुभम श्री की कविताएं : मुस्करा उठते हैं लड़के, झेंप जाती हैं लड़कियाँ : गूँज रहे हैं कानों में वीर्य की स्तुति में लिखे श्लोक… : जेएनयू में एमए दर्जे में पढ़ती हैं गया की शुभम श्री : कोशिश – तीन

मेरे हॉस्टल के सफाई कर्मचारी ने सेनिटरी नैपकिन फेंकने से इनकार कर दिया है

ये कोई नई बात नहीं

लंबी परंपरा है

मासिक चक्र से घृणा करने की

‘अपवित्रता’ की इस लक्ष्मण रेखा में

कैद है आधी आबादी

अक्सर

रहस्य-सा खड़ा करते हुए सेनिटरी नैपकिन के विज्ञापन

दुविधा में डाल देते हैं संस्कारों को…

झेंपती हुई टेढ़ी मुस्कराहटों के साथ खरीदा बेचा जाता है इन्हें

और इस्तेमाल के बाद

संसार की सबसे घृणित वस्तु बन जाती हैं

सेनिटरी नैपकिन ही नहीं, उनकी समानधर्माएँ भी

पुराने कपड़ों के टुकड़े

आँचल का कोर

दुपट्टे का टुकड़ा

रास्ते में पड़े हों तो

मुस्करा उठते हैं लड़के

झेंप जाती हैं लड़कियाँ

हमारी इन बहिष्कृत दोस्तों को

घर का कूड़ेदान भी नसीब नहीं

अभिशप्त हैं वे सबकी नजरों से दूर

निर्वासित होने को

अगर कभी आ जाती हैं सामने

तो ऐसे घूरा जाता है

जिसकी तीव्रता नापने का यंत्र अब तक नहीं बना…

इनका कसूर शायद ये है

कि सोख लेती हैं चुपचाप

एक नष्ट हो चुके गर्भ बीज को

या फिर ये कि

मासिक धर्म की स्तुति में

पूर्वजों ने श्लोक नहीं बनाए

वीर्य की प्रशस्ति की तरह

मुझे पता है ये बेहद कमजोर कविता है

मासिक चक्र से गुजरती औरत की तरह

पर क्या करूँ

मुझे समझ नहीं आता कि

वीर्य को धारण करनेवाले अंतर्वस्त्र

क्यों शान से अलगनी पर जगह पाते हैं

धुलते ही ‘पवित्र’ हो जाते हैं

और किसी गुमनाम कोने में

फेंक दिए जाते हैं

उस खून से सने कपड़े

जो बेहद पीड़ा, तनाव और कष्ट के साथ

किसी योनि से बाहर आया है

मेरे हॉस्टल के सफाई कर्मचारी ने सेनिटरी नैपकिन

फेंकने से कर दिया है इनकार

बौद्धिक बहस चल रही है

कि अखबार में अच्छी तरह लपेटा जाए उन्हें

ढँका जाए ताकि दिखे नहीं जरा भी उनकी सूरत

करीने से डाला जाए कूड़ेदान में

न कि छोड़ दिया जाए

‘जहाँ तहाँ’ अनावृत …

पता नहीं क्यों

मुझे सुनाई नहीं दे रहा

उस सफाई कर्मचारी का इनकार

गूँज रहे हैं कानों में वीर्य की स्तुति में लिखे श्लोक…

नाम : शुभम श्री

जन्म : 24 अप्रैल 1991, गया, बिहार

भाषा : हिंदी, अंग्रेजी

विधा : कविता

सम्प्रति जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में एमए (प्रथम वर्ष) की छात्र

संपर्क : 001 कोयना, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली – 110067

फोन : 09818920474

ई-मेल : shubhamshree91@gmail.com

यह लेख तीन अंकों में है। इस अंक पढ़ने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए: रज और वीर्य को बराबर के तराजू पर रखिये, कोई भी कमतर नहीं है।

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