: शिव की प्रतिमा पर खूब फुंफकारता है नाग, लेकिन जीवन्त शिव से शरमा गया : बहुत टहोका, लेकिन टस से मस नहीं हुआ वह नाग : बोला कि, “मालिक, आप ही तो मालिक हो, मैं तो आपका सेवक हूं” : बोला:- “हुकुम कीजिए भगवन! किसे डंसना है?” मैंने जवाब दिया:- “मूर्ख। तू अब विश्राम कर। यूपी में डंसने वालों की तादात काफी है” :
कुमार सौवीर
लखनऊ : धर्म-निरपेक्षता की जीती-जागती कई प्रतिमाएं मेरे पास हैं। प्रतिमाएं कहना शायद उनका अपमान करना होगा, इसलिए उन्हें रिबोट कहना ज्यादा बेहतर होगा। क्योंकि वे अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कभी भी नहीं करते। हमेशा अपनी इकतरफा फीडिंग के भरोसे रहते हैं। उनके पास सवाल तो होते हैं, लेकिन अधिकतर तर्क बेसलेस। जैसा प्रोग्रामिंग, वैसा ऐटीच्यूट, और वैसा ही बिहैवियर। फिर जैसा ही उनका एक्शन। आउटपुट तो इनपुट से ही निकलता है। है कि नहीं ?
खैर, हमने शुरू किया था नाग और संपोलों और उनके साथ शिव-महात्म्य के साथ अध्याय।
तो हुआ यह, कि सावन के पहले ही दिन संपेरों की बीन बजनी शुरू हो गयी। हालांकि सावन के पहले ही सांप अपने बिल से निकल पड़ते हैं। मजबूरी में ही। वजह है भोजन और आवास में पानी भर जाना। लेकिन अब तो लोग सांप को देखते ही मार डालने पर आमादा हो जाते हैं। यह जानते हुए भी सांप ही हमारी कृषि का एक मजबूत आधार स्तम्भ है। सांप न हो तो गणेश जी के सेवकों की चूहा मंडली खेत को तबाह कर डाले। सावन में और खास कर नागपंचमी के दिन हमारे मनीषियों ने सांप को सम्मान व रक्षा के लिए एक दिन ही मुकर्रर कर दिया।
लेकिन अब तो सांप को सम्मान देने के बजाय लोग उसे देखते ही अपनी लाठी तराशना शुरू कर देते हैं। ऐसे में बीन कौन बजाये। संपेरे भी भूल चुके हैं वह साठ साल पुरानी बीन की धुन, जिस पर लोग मस्त हो जाते थे। जिसकी हर हरकत पर सांप सतर्क हो जाता था। सांप हमलावर अंदाज में इधर-उधर घूमता था, जबकि देखने वाले लोग समझते थे कि नागमहराज जी मस्ती में नाच रहे हैं।
सावन के पहले ही दिन कपूरथला चौराहे पर बनी एक धर्मनिरपेक्ष टी-स्टाल में हमारे बुद्धिजीवी प्रभात त्रिपाठी, रंजीत पाण्डेय और महामहोपाध्याय शुभम पाण्डेय के साथ मैं भी चाय सुडक रहा था। कि अचानक संपेरा आ गया। लहजा साफ था, सवाली अंदाज में। नाग देखो, फिर पैसा निकालो।
मैंने कहा:- “बीन तो बजा दो !”
तो उसने इधर उधर झांकने की अदा में देखा और फिर खुसफुसा कर बोला:- “अभी पूरी परेक्टिस नहीं भयी है साहब।”
उसकी अदा मुझे भा गयी। सब से कह कर मैंने उसे पैसे दिलवाये तो उसने खुश होकर अपनी पिटारी खोल कर एक फनफनाता हुआ नाग निकाल दिया। गजब सतर्क नजर और अंदाज था उस नाग-राज का। बेहद चौकन्ना। मैं नाग को गौर से देखने लगा तो संपेरे ने उसे मेरे गले में डाल दिया। सांप ने भी अपनी मुक्ति की प्रत्याशा में मेरे पूरे गले में अपना घेरा बना लिया।
लेकिन मैं तो अपने गले से लिपटे नाग को फुंकारते नाग को देखना चाहता था। मैंने उस नाग को हल्की ठुनकी दी, मगर वह पलट कर सकुचा गया। बहुत टहोका, लेकिन टस से मस नहीं हुआ वह नाग। बोला:- “मालिक, आप ही तो मालिक हो, मैं तो आपका सेवक हूं देवाधिदेव महादेव।” मेरे गले में लिपटी अपनी देह-यष्टि में खुद ही घुसने की कोशिश करते हुए बोला:- “हुकुम कीजिए भगवन ! किसे डंसना है?” मैंने जवाब दिया:- “मूर्ख। तू अब विश्राम कर। यूपी में डंसने वालों की तादात काफी है।”
“अबे, तू अपना फन क्यों नहीं उठा रहा है संपोले के बच्चे?” झुंझला कर कहा मैंने, और साथ ही उसे हल्की चपत लगा दी। तो वह कुंकुंआने की इष्टैल में सकुचाया, फिर बोला:- “हे अवधूत-श्रेष्ठ आप तो साक्षात शिव हैं। आपसे क्या फन उठाना। मैं तो उन पथरीली मूर्तियों के गले, सीने, बांह पर लिपट कर फुंफकाते हुए अपना फन तानता हूं, ताकि लोग मुझसे दूर ही रहें। आप तो मैं मेरे स्वामी हैं, मैं आपका दास। चरणों में स्थान दे दीजिए शंकर भगवान। ?
भले ही सही, लेकिन शायद सच ही बोल गया वह नाग। हमारे आसपास इंसान ही कहां हैं। जो सामने हैं वे पत्थर के बने हैं और जो नहीं दिख रहे वे किसी बिल में दुबके रहते हैं। आप ऐसी प्रस्तर-प्रतिमाओं को ज्यादा सम्मान कैसे दे सकते हैं। हां, उनके सामने खड़े होकर सेल्फी खूब लीजिए। ऐसी प्रतिमाओं में कई ऐसे करेक्टर भी शामिल हो जाते हैं जिनमें फण्डामेण्टल फीडिंग-इक्वेशंस करप्ट हो जाती है। जैसे कम्प्यूटर में वायरस। उसमें भी टॉर्जन वायरस। जो आपके कम्प्यूटर का आदर-फादर कर डालता है। एक ही झटके में।
लेकिन ऐसे भी बहुत करप्टेड करेक्टर होते हैं जो वाकई करप्ट होते हैं। चाहे वह चरित्र से हों या फिर अपने कम्यून से। जहां भी रहते हैं, पूरा सिस्टम न केवल खराब करते हैं, बल्कि उसे तबाह करने का ठेका ही लिये रहते हैं! न यकीन आ रहा हो तो अपने आसपास पसरे-फैले ऐसे इंसानी पत्थरों को गौर से देख लीजिए। पहचान न कर पा रहे हों तो फिर हाल ही मुख्यमंत्री के घर एक पत्रकार की किताब के विमोचन में यूपी में कानून-व्यवस्था की जमकर तारीफ करने वाले सीपीआई के एक बड़े नेता अतुल अंजान जैसे लोगों को देख लीजिए। जिन्हें यूपी सबसे शांत, सुखदायी, और खुशहाल प्रदेश दिखायी पड़ता है।
काम खत्त्त्म।
खैर, नागपंचमी का दिन है। इसलिए फेसबुक के सभी जग-जाहिर हो चुके छोटे-बड़े नाग-नागिनों और सांप-संपोलों को, और खास कर पत्रकारिता में जग-जाहिर दल्ला-ठग-बटमार और कुटम्मस-श्री तथा पिटइय्या-बहद्दर को …इस “किंग कोबरा” की तरफ से नाग-पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
( यह टी-शर्ट बीएसएफ से पत्रकारिता में उडे़ले गये अहीर-श्रेष्ठ जनार्दन यादव के सौजन्य से। मेरी बिटिया आशु चौधरी से मिली टी-शर्ट बाद में पहन कर दिखाऊंगा। और हां, इस होटल का पेमेंट करने की नौटंकी में जुटे प्रभात त्रिपाठी जब तक अपनी जेबें टटोलते, मैंने भुगतान कर दिया)