: औरंगाबाद के कलेक्टर को अब उसके हौसलों की कीमत चुकवाने पर आमादा है बिहार की मीडिया : बेशर्म बड़े काश्तकार हैं, महिलाएं खेत-सड़क पर जाती हैं : घर को तबाही और परिवार को बर्बाद करने वाले शराबियों को लताड़ने का कोई तरीका और हो तो बताइये :
अजीत अंजुम
नई दिल्ली : औरंगाबाद के डीएम कँवल तनुज के तथाकथित विवादास्पद बयान को जितना मैंने सुना, उसके आधार पर ये कह सकता हूँ कि उनकी बातों को मीडिया में ग़लत ढंग से चलाया जा रहा है …उनके बयान में ललकार है . मर्दों का स्वाभिमान जगाने वाला भाव है कि शराब पीने के लिए पैसे जुगाड़ करते वक्त ग़रीबी का रोना नहीं रोते हो लेकिन शौचालय नहीं बनवाते हो और तुम्हारी माँ -बहन -बीवी नग्न होकर खुले में शौच के लिए जाती हैं …
डीएम अपने भाषण में घर की नारी को सम्मान देने की बात कर रहे हैं …एक युवा डीएम अगर गाँवों में शौचालय बनवाने के लिए पुरुष प्रधान समाज को ललकार रहा है …शर्मिंदा कर रहा है तो कोई गुनाह नहीं कर रहा है … डीएम ने पुरुषों की उस मानसिकता पर चोट किया है , जिसकी वजह से गाँवों में माँ -बहन -बेटियाँ खुले में शौच जाने को मजबूर हैं …लाखों लोग ग़रीबी की वजह से शौचालय नहीं बनवा पाते होंगे , ये जितना बड़ा सच है , उससे बड़ा सच ये है कि कई बीघे की खेती वाले लोग भी शौचालय नहीं बनवाते …
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उनकी सोच पर चोट करने की ज़रूरत है …मैंने देखा है गाँवों की हक़ीक़त …जिनके घरों के बाहर ट्रैक्टर होते थे , उनके घरों की महिलाएँ भी सूरज उगने से पहले अंधेरे में शौच के लिए झुंड बनाकर निकलती थीं …डीएम के कहने का क़तई ये मतलब नहीं कि शौचालय बनाने को पैसे नहीं है तो अपनी बीवी को बेच दो …जैसा कि कई अख़बारों ने लिख दिया और कुछ चैनलों ने चला दिया ….
हालाँकि ये हैरत की बात नहीं है कि मीडिया का बड़ा तबक़ा बिना समझे बुझे डीएम के बयान का एक हिस्सा निकालकर ग़लत ढंग से पेश कर रहा है ….
मैं ये मानता हूँ कि अतिरेक या आवेश में ऐसी कुछ बातें कहने से बचना चाहिए था उन्हें ….सार्वजनिक मंचों से बोलते वक्त आपा नहीं खोना चाहिए ..शब्दों के चयन में उनसे चूक हुई है ….मंशा ग़लत नहीं थी ….
मूलत: बिहार के हाजीपुर के रहने वाले अजीत अंजुम वरिष्ठ पत्रकार हैं और फिलवक्त दिल्ली में इंडिया टीवी के प्रबंध सम्पादक के पद पर काम कर रहे हैं।