यूपी की राजनीति में बेशर्मी की पराकाष्‍ठा का नाम है स्‍वामीनाथ मौर्या

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: भाजपा में आपका स्‍वागत है स्‍वामी जी, लेकिन अब आप करेंगे क्‍या : दो कौड़ी की हैसियत न पहुंच जाए यह पूर्व बसपाई नेता : जिस भाजपा को पानी पी-पीकर गरिया करते थे स्‍वामी नाथ मौर्य, अब उसके चरणों में लोट लगाने आये हैं : बसपा में अपनी हैसियत का पसंगा तक नहीं पहुंच पायेंगे मौर्या :

कुमार सौवीर

लखनऊ : अरे बधाई हो स्‍वामी प्रसाद मौर्य जी !

हम तो कहते हैं कि आपने बहुत बढिया किया जो बसपा को लात मार कर भाजपा को ज्‍वाइन कर लिया। हालांकि अब तक यह स्‍पष्‍ट नहीं हो सका है कि किसने किसको लात मार कर निकाला-निकला, लेकिन इससे क्‍या फर्क पड़ता है। चाकू तो खरबुज्‍जे पर गिरा या फिर खरबुज्‍जा चाकू पर गिरा, कटा तो खरबुज्‍जवा ही न। है कि नहीं ?

तो बधाई है मौर्या जी, जो आपने जिन्‍दगी में लात खाने की आदत छोड़ कर मायावती का साथ छोड़ दिया। हम तो कहते हैं कि बहुत बढिया किया आपने। मायावती की तुलना विजय माल्‍या से कर दिया, मायावती को लालची और अहंकारी औरत कह दिया, यह कह दिया, वह कह दिया, हैन कर दिया, तैन कर दिया, फलाना कह दिया, ढमकाना कह दिया, वगैरह-वगैरह

आपने एक अच्‍छा काम किया है, उसके लिए आपको शुभकामनाएं। सच बात तो यही है मौर्या जी, कि आपके साथ बहुत अन्‍याय हुआ। मायावती की कलई खोल दी आपने। अरे यह भी कोई तरीका है कि आप जैसे नमकहलाल को दूध की मक्‍खी की तरह निकाल बाहर कर दिया जाए। क्‍या-क्‍या नहीं किया आपने। जब मायावती कमरे से निकलते थे, तो आप किसी लपक कर उनका चरण-स्‍पर्श करते थे और फिर मनुवाद को पानी पी-पी कर गरियाया करते थे। इतनी मेहनत करते थे कि हम्‍फी और फेचकुर निकल जाता था आपका। दिन में पचासों बार मायावती का इतना पैर छुआ, कि पूछो ही मत। इत्‍ता छू-छू कर हलकान हो गये, इतना कि रीढ़ मुड़ गयी। दुनई गयी। अब तक कहिरांव पिराता है आपका, क्‍या किसी से छिपा है क्‍या।

बसपा में खूब चर्चा है कि टिकट बेचने-खरीदने में जो वसूली होती थी, उसमें बस वही दो-चार लोग ही तो शामिल थे। बसपा में आपका नम्‍बर बाबू प्रसाद कुशवाहा के बाद ही माना जाता था। वह तो बाबू की बाबूगिरी डासना में जाने के बाद से यह उत्‍तराधिकार नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने लपक लिया। फिर आप और राजभर वगैरह ने गजब मेहनत की। पूरा प्रदेश जानता है कि किसी गदहे की तरह काम किया है आपने मायावती के लिए। मैं खुद गवाह हूं। बोलिए, क्‍या मैं गलत बोल रहा हूं।

हां हां, यह भी सच ही है कि आपको इसका लाभ भी खूब मिला। आपकी जितनी भी इच्‍छा हुई, धन-दौलत की कहीं कभी भी कमी नहीं पड़ी। लेकिन केवल रूपया-पैसा ही सब नहीं होता है। सम्‍मान भी बहुत बड़ी चीज होती है मौर्या जी। आखिर क्‍या गलत कर रहे थे आप, जो मायावती से आपने अपने लगुओं-फगुओं के लिए टिकट मांग लिया था। हर आदमी यही तो करता है। तो आपने भी किया, इसमें अचरज कैसा। आपने ही तो कहा था कि क्‍या किसी से छिपा था क्‍या कि आप ही आप थे बसपा में, बाकी तो सिर्फ लफण्‍डई ही करते थे।

अरे क्‍या-क्‍या नहीं किया आपने मायावती और बसपा के लिए। मायावती को खुश करने के लिए सपा और भाजपा के मूं पर आग फूंका। वह क्‍या कहते हैं कि, अरे हां, वही साम्‍प्रदायिक और चढ्ढी-गैंग के नाम से भाजपा को गरियाया करते थे आप, सब को पता है। आप ही तो कहा करते थे, और बसपा के बच्‍चा लोग सुन-सुन कर हो-हो करके हंसते थे, चाहे समझ में आये या न आये। आपने ही तो कहा था कि भाजपा कलंक है देश के लिए, और अयोध्‍या में राममन्दिर नहीं, विशालकाय मस्जिद ही बनना चाहिए, और जहां पर रामलला की बसावट है, वहां पर शौचालय बनना चाहिए। मनुवादियों के मुंह में तो जबरन लिटा कर उन्‍हें वह-व‍ह पिलाना चाहिए, जिससे उनकी शुद्धि ठीक तरह से हो जाए। जूते मारा जाना चाहिए तिलक, तराजू और तलवार वालों के सिर पर। सपा को तो आपने गुण्‍डावादी पार्टी यानी गू-पार्टी करार दे दिया था। आपको बोलने में, और खासतौर पर सच बोलने में

आपको हमेशा से ही दिक्‍कत रही है, इसलिए आप तेज-तेज आवाज पर ऐसे बोलते थे कि ज्‍यादातर बातें तो इमली की चियां में इत्‍ती हवा भर दी गयी हो, कि वह पचक जाए।

नसीमुद्दीन ने हम पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में यहां तक कह था कि स्‍वामी इस तरह बोलता है, जैसे पेट में ठूंस-ठूंस कर खा चुका वह सांड जो बमुश्किलन बोल-चल पाता हो।

आप ही तो थे जो अपने सिद्धांत पर अडिग थे, और आपका सिद्धांत ही था कि आपकी बहन जी की ऐन-केन-प्रकारेण सेवा करना। इसीलिए तो आपने दीनानाथ भास्‍कर और आरके चौधरी पर लतखोर बताया था, जब यह दोनों बसपा से लतियाकर भगाये गये थे।

लेकिन जब इन लोगों की घरवापसी हुई तो आप सबसे ज्‍यादा खुश थे, लेकिन अब आप खुद ही बसपा में आये हैं। पूरी दुनिया भर में अपने लिए ठीहा खोजने के बाद। हर पार्टी में आपने ट्राई मारा, लेकिन बात नहीं बनी। कोई आपको लेने को तैयार ही नहीं था। इसीलिए आपने अपनी एक खुद की पार्टी बनायी। लेकिन न तो उसका दफ्तर खोज पाये और न आफिस में बैठने-आने-जाने वालों को। दुकान में कस्‍टमर भी तो जरूरी होता है, है ? होता है, होता है, कहावत भी तो है कि घर से निकाले गये आदमी को लोगबाग बिलकुल कूकुर की तरह ही समझते हैं। चार महीना पहले आप मुम्‍बई के एक पंचसितारे होटल में अमित शाह से मिले थे। बताते हैं कि शाह ने साफ कह दिया था कि टिकट मांगने का लफड़ा करोगे तो मायावती की ही तरह तुम्‍हें घर से बाहर निकाल दिया जाएगा।

खैर, चलो देर आयद, दुरूस्‍त आयद। हार कर आपने दूसरों का ठेका लेने वाला धंधा वाला आइडिया कैंसिल कर दिया। मरता न क्‍या करता।

लेकिन मामला फिर फंस सकता है। भाजपा का भी कोई ठिकाना नहीं। टिकट दें या न दें, उनकी मर्जी। अगर ऐसा हुआ तो फिर आपकी हालत तो बिलकुल “पलिहर खेतै में बांदर” जैसी हो जाएगी। तब क्‍या करेंगे आप। ज्‍यादा कुनकुनायेंगे, तो भाजपाई आपको निकाल बाहर कर देंगे, जैसे बाबू सिंह कुशवाहा को ससम्‍मान निकाला था।

ऐसे में आप क्‍या करेंगे स्‍वामी जी? माना कि आपके पास इस वक्‍त बेहिसाब पैसा है, लेकिन राजनीति के धंधे में बरक्‍कत तब ही होती है, जब आप मलाईदार हैसियत रख पायें। वरना आपकी हालत किसी मीटिंग के बाद दरी लपेटने वाले चिखुरी जैसी हो जाएगी।

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