: महिलाओं के प्रति अपराधों पर सतर्कता के सरकारी दावे क्या वाकई पाखण्ड हैं : संवेदनहीन और बेईमान नौकरशाही कभी लखनऊ में चीरहरण करती है, तो कभी जौनपुर में : पिछले चार बरसों में तो जुल्फी प्रशासन का नाम खासा अहंकार का प्रतीक बन गया : दोस्तों, अब बहुत हो चुका। चलिए, छेड़ दिया जाए “ना” कहने के अधिकार का आन्दोलन (एक) :
कुमार सौवीर
लखनऊ : समाजवादी पार्टी की सरकार बने चार साल बीत चुके हैं, लेकिन ढोंग और पाखण्ड से अधिक नहीं बढ़ पायी है यूपी की महिलाओं का सम्मान और उनकी सुरक्षा। कभी मोहनलालगंज में एक निर्वस्त्र युवती की लाश में छिपे राज को छिपाने में पूरी मशीनरी जुट जाती है, तो कभी जौनपुर का पूरा जिला प्रशासन और पुलिस व स्वास्थ्य महकमा एक किशोरी के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के हादसे पर एफआईआर दर्ज करने के बजाय, उस हादसे को छुपाने के लिए उस बच्ची को पागलखाने में भेजने की साजिश कर देता है। कभी गोरखपुर में एक इंस्पेक्टर अपने थाने पर पहुंची एक महिला को ऐसी-ऐसी गंदी-नंगी गालियां देता है, कि लगता है कि वहां मौजूद हर मर्द उसके साथ बलात्कार करने पर आमादा है। कभी एक जेल में 11 साल से बंद एक महिला गर्भवती हो जाती है तो कभी सामूहिक बलात्कारों के मामलो में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष यह बयान दे पड़ते हैं कि लड़कों से गलती हो जाती है, और इसलिए उन्हें फांसी पर नहीं चढ़ाया जा सकता है।
लखनऊ में इससे पहले किसी महिला की इस तरह नृशंस हत्या का मामला नहीं आया है। लेकिन चूंकि यह मामला केवल किसी युवती की जघन्य हत्या के साथ ही पुलिस, प्रशासन ओर उससे भी ज्यादा बढ़ कर सरकार की कथित संलिप्तता का मामला है, इसलिए यह ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। इससे पहले मैंने पिछले साल भी यही अभियान छेड़ा था, ताकि इस मामले में दूध और पानी अलग-अलग किया जा सके। बेहद शातिराना अंदाज में इस मामले को दबाया गया, केवल प्रदर्शन के लिए बड़े-बड़े अफसरों को लगाया गया, इसके चलते दाल पूरी की पूरी काली ही होती गयी। साफ लगने लगा कि सरकारी कवायदों का मकसद सिर्फ इस मामले को दबाने के लिए ही था।
फिर ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसी कवायदों का मकसद क्या था। जाहिर है कि किसी न किसी बड़े प्रभावशाली को बचाने के लिए ही सरकारी मशीनरी एकजुट हो गयी। जांच के नाम पर केवल पाखण्ड हुआ, प्रदर्शन के लिए बड़े अफसरों को लाली-लिपिस्टिक के तौर पर इस्तेमाल किया गया। पुलिस विभाग की एक अपर महानिदेशक अधिकारी को इसके लिए अस्त्र के तौर पर सामने रखा गया ताकि यह साबित किया जा सके कि सरकार और प्रशासन इस मामले को सर्वाधिक महत्व दे रही हैं। यह इसलिए भी कि समाजवादी पार्टी की सरकार में अखिलेश यादव ने महिला सुरक्षा का डंका खूब बजाया और इसके लिए महिला हेल्पलाइन 1090 योजना शुरू की। हालांकि इस योजना शुरू से ही हवा में चलती रही और अभी भी उसकी यही हालत है।
तो, सच बात यह है कि इस हादसे पर लीपा-पोती के तौर-तरीकों से साफ-साफ पता चलता है कि यह एक षडयंत्र था, जिसमें सरकार और सरकार के कारिंदे साफ तौर पर शामिल दिख रहे हैं। रामसेवक अब जेल में है, मगर इसमें एक परिवार तबाह हो गया। जबकि मारी गयी युवती को अब तक न्याय नहीं मिल सका। उस युवती के बच्चों का क्या होगा, इस बारे में किसी को भी चिन्ता नहीं है, सिवाय इसके कि पुलिस ने यह खुला बयान जारी कर दिया कि यह युवती देह-व्यापार में लिप्त थी। यानी उसकी मौत के बाद उसके बच्चों पर यह एक अमिट दाग लग या।
लेकिन मेरी चिन्ता का विषय किसी फंसाये शख्स को बचाना ही नहीं है, बल्कि हम तो यह चाहते हैं कि कोशिश ऐसी हो कि आइंदा किसी निर्दोष की जिन्दगी तबाह हो जाए। लेकिन इससे भी ज्यादा और सर्वाधिक चिन्ता का विषय तो यह है कि इस हादसे के असली दोषियों को सींखचों के पीछे जाने की व्यवस्था हो, ताकि आइंदा बिगड़े दिन अमीरजादे और हैसियतदार लोग ऐसी घिनौनी हरकतें न कर पायें।
इस मामले को अब हम सिलसिलेवार छापने जा रहे हैं। पिछले साल भी हमने यही अभियान छेड़ा था, जिसे एक राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक तरूणमित्र ने स्पांसर किया। हम शुक्रगुजार हैं तरूणमित्र के।
बहरहाल, इसके अगले अंकों को देखना-पढ़ना चाहें, तो निम्न लिंक पर क्लिक कीजिएगा :- चलिए, छेड़ दें “ना” कहने के अधिकार का आन्दोलन