: मुझे तो अब न सरकार पर यकीन है, न पुलिस और न अदालत पर : इतनी नृशंसता कर पाना किसी एक व्यक्ति की वश की बात नहीं : पूरा मोहनलालगंज जानता है कि किन-किन लोगों ने की थी उस युवती की हत्या : एक दुबला-पतला गार्ड कैसे कर सकता है एक बलिष्ठ युवती की ऐसी जघन्य हत्या : चलिए, अब छेड़ दें “ना” कहने के अधिकार का आन्दोलन (दो) :
कुमार सौवीर
लखनऊ : रामसेवक को पुलिस ने उस वक्त दबोचा, जब वह अपने घर से अपने काम पर निकल चुका था। राम सेवक की पत्नी परिवार के लिए भोजन बना रही थी। दोनों बेटियां स्कूल जा चुकी थीं। बेटा रोहित घर स्नान कर रहा था। कि अचानक किसी तूफान की तरह पुलिस वाले घर में दनादन घुसे और तलाशी शुरू कर दी। जाहिर है कि रामसेवक की पत्नी इस पर चिल्ला पड़ी। हल्ला सुन कर रोहित बाहर निकला, तो पुलिसवालों ने उसे पकड़ लिया। इसी क्रम में रोहित की तौलिया गिर पड़ी, लेकिन इसकी चिन्ता किये, पुलिस ने नंग-धड़ंग रोहित को जीप में धकेला और रवाना हो गये।
यह मामला है 17 सितम्बर-2014 का। वक्त रहा होगा करीब दो बजे दोपहर का।
लेकिन आप केवल इतने से ही इस हादसे की गम्भीरता नहीं समझ पायेंगे। आइये, हम आपको दिखाते हैं कि आखिरकार रामसेवक और रोहित के साथ ऐसा क्यों हुआ।
जरा दो साल पहले का एक हादसा याद कीजिए, जो लखनऊ के मोहनलाल गंज में 16-17 जुलाई-2014 की रात को हुआ था। यहां के बलसिंह खेड़ा के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में सुबह एक महिला की नंगी लाश मिलने की खबर ने पूरे लखनऊ को दहला दिया था। वजह यह कि रक्त-रंजित इस निर्वस्त्र युवती की लाश की फोटो ही ह्वाट्सअप पर वायरल हो गयी।
इस घटना से करीब 9 किलोमीटर दूर वृंदावन योजना के सेक्टर-4 की एक निर्माणाधीन इमारत का गार्ड रामसेवक यादव अपनी ड्यूटी पर था, कि अचानक पुलिस वहां पहुंची और उसे भी पुलिस ने पकड़ लिया। सीधे मोहनलालगंज थाने पर ले गये। रामसेवक बताता है कि वहां हवालात में उसके बेटे रोहित को नंगा करके पीटा जा रहा था। रामसेवक को भी नंगा किया गया। दोनों ही एक-दूसरे के सामने नंगे थे। पिटाई फिर शुरू हुई। एक ही बात कि, “कुबूल कर लो कि वह कत्ल तुमने किया।”
पिछले दिनों पेशी पर पुलिस कस्टडी में कचेहरी लाया गया रामसेवक यादव अब पूरी तरह निराश है। उसकी आंखें बिलकुल पथरा गयी हैं। “अब बचा ही क्या साहब। गरीब का तो वैसे ही कोई सम्मान नहीं होता। लेकिन गांव-जंवार में जो कुछ परिचय-रिश्ता-सम्बन्ध था, सब धूल में मिल गया। पुलिस ने हमारे पूरे खानदान को तबाह कर दिया। तीन बेटियां और एक बेटा रोहित है घर में। बड़ी बेटी की शादी सन-13 में कर ली थी। दो बेटियां और रोहित अभी पढ़ ही रहे हैं। जमीन के नाम पर केवल आठ बिस्वा जमीन है हमारे पास। नौकरी से ही घर चलता है। चार हजार रूपये की पगार थी गार्ड के तौर पर, और इमारत के आफिस में चपरासी के तौर पर एक हजार रूपया ऊपर से मिल जाता था। अब सब कुछ खत्म हो गया।”
इस मामले को अब हम सिलसिलेवार छाप रहे हैं। इसके अगले अंकों को देखने-पढ़ने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिएगा :- चलिए, छेड़ दें “ना” कहने के अधिकार का आन्दोलन