: लेकिन इस बात पर भी खासा दम है कि दाल तो दोनों ओर से काली है : कुछ ऐसे ही हादसे का जिक्र किया है प्रख्यात साहित्यकार हावर्ड फॉस्ट ने अपने बहुचर्चित उपन्यास शहीदनामा में : अब जरा अरूणाचल के मुख्यमंत्री पद से आत्महत्या करने वाले कलिखो पुल के सुसाइड-नोट में खंगालिये :
कुमार सौवीर
लखनऊ : दुनिया के प्रख्यात साहित्यकार रहे हावर्ड फॉस्ट का एक बहुचर्चित उपन्यास है। नाम है:- शहीद नामा। इसमें पिछली सदी की शुरूआत में चल रहे दुनिया भर के मजदूर आंदोलन का जिक्र किया है। उस कहानी में जिन मजदूर नेताओं को फांसी पर लटकाने का आदेश जिस जस्टिस ने दिया था, वह बाद में आत्मग्लानि से बुरी तरह ग्रसित हो जाता है। हालत यह हो जाती है कि वह हर मिलने-जुलने वाले से उस फांसी के आदेश को लेकर अपनी सफाई देने लगता है। ठीक उसी तरह जैसे कोई कातिल अपने हुए जघन्य अपराध को जस्टिफाई करता हो।
जस्टिस कर्णन का मामला हावर्ड फॉस्ट से पूरी तरह मिलता-जुलता भले न हो, लेकिन कई मामलों में इसकी कई कडि़यां पिछले तीन-चार से महीने में चल रही न्यायिक और सांवैधानिक ओहदों पर बैठे लोगों के व्यवहार से ठीक मिलती-जुलती हैं। कहने की जरूरत नहीं कि जस्टिस कर्णन की मौजूदा घटना कड़ी को केवल इसी आधार पर एकांगी नहीं माना जा सकता है, कि कर्णन ने न्यायपालिका पर कड़ी चोट दी है।
लेकिन पहली बात तो यह समझ लिया जाए कि कर्णन ने जो भी आरोप सर्वोच्च न्यायालय और उस पर बैठे जजों पर लगाये हैं, हकीकत तो यह है कि जस्टिस कर्णन के मनोरोगी होने के ही प्रमाण समझे जा सकते हैं। 8 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें नोटिस जारी करते हुए 13 फरवरी को 7 जजों की पीठ के समक्ष पेश होने के कहा था। जस्टिस कर्णन ने कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को लिखी चिट्ठी में पूछा है कि उनके खिलाफ अवमानना का नोटिस का मामला क्यों शुरू किया गया है? जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ के आदेश पर कहा, ‘मैं यह कहना चाहूंगा कि बिना मुझसे पूरी बात जाने कोर्ट के पास हाई कोर्ट के वर्तमान जज को दंड देने का अधिकार नहीं है। मौजूद आदेश तर्कहीन है। इसलिए यह मामला टिक नहीं पाएगा।’
जस्टिसकर्णन पर आरोप है कि उन्होंने 20 सीटिंग और रिटायर्ड जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री से उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। उन्होंने इसके दो सप्ताह बाद फिर चिट्ठी लिखकर पूछा था कि उनके खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है? इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए उनसे पूछा कि उनके खिलाफ मामले में अवमानना की कार्रवाई क्यों न की जाए। कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए उनके जूडिशल और प्रशासनिक काम पर भी रोक लगा दी है।
जस्टिस कर्णन शुरु से ही विवादों में घिरे रहे हैं। वे हर बार यह शिकायत करते आए हैं कि उनके साथ, उनके साथी व वरिष्ठ न्यायाधीश इसलिए दुर्व्यवहार करते आए हैं क्योंकि वे एक दलित है। वे अपनी शिकायत कभी प्रधान न्यायाधीश से करते हैं तो कभी राष्ट्रीय अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग की शाखा में जाते हैं। कभी प्रधानमंत्री के यहां गुहार लगाते हैं तो कभी कानून मंत्री से इंसाफ मांगते हैं। उन्हें जो पत्र लिखते हैं उन्हें खुद ही सार्वजनिक कर देते हैं।
सबसे पहले उन्होंने नवंबर 2011 में अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग से शिकायत की थी कि एक शादी में उनके साथ सहयोगी जज ने बहुत बुरा बर्ताव किया। वह उनके साथ बैठा हुआ उन्हें अपनी टांगे मारता रहा। उसने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे दलित है। उन्होंने संबंधित जज के खिलाफ हरिजन एक्ट के तहत मामला दर्ज किए जाने की मांग कर डाली। उस समय पी एल पूनिया आयोग के अध्यक्ष थे व उन्होंने यह मामला तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश के पास भेज दिया। मद्रास हाईकोर्ट के जज रहते हुए वे एक बार उस खंडपीट में चले गए जो कि जजो की नियुक्ति संबंधी एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रही थी। उन्होंने खुद जज होते हुए खंडपीट से कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए जो नाम सुझाए गए हैं वे ठीक नहीं हैं और वे इस संबंध में एक हलफनामा दाखिल करेंगे। उनकी इस हरकत पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई।
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