इस संपेरे ने नाग-राज को पत्‍नी वाले वाम-अंग पर फिट कर डाला

बिटिया खबर मेरा कोना
: आइये सावन में भींजिए,हचक कर अंदरसा खाइये और दूध चांपिये, फुंफकार मारिये, मौका मिले तो डंस भी लीजिएगा : सहअस्तित्व के समभाव की सख्त अनिवार्य आवश्यकता : अन्‍यथा सर्वनाशी घमंड का जन्म होगा, जहां सोहर नहीं, मृत्यु का शोक गीत गढ़ता है : 

कुमार सौवीर

लखनऊ : यह जो संपेरे होते हैं न, एक नम्बर के चूतिया होते हैं। रोजी कमाने के लिए किसी व्यवसाय की जरूरत तो होती ही है, लेकिन उस धंधे को तबाह और खत्म करने की हरकत उनकी कालिदास-प्रवृत्ति का परिचायक है। मसलन, सांप का दांत तोड़ देना वगैरह। यह तो कोई दिक्कत नहीं, लेकिन हत्यारी करतूत तो तब नंगी होती है जब यह जहर की थैली ही निकाल देते हैं। ऐसी हालत में ऐसे सांप का जीवन सिर्फ हफ्तों तक ही सिमट जाता है।
ऐसा ही एक अनाड़ीपन इस संपेरे ने कर डाला। आज यह संपेरे मेरे घर के सामने ओम शिवाय का जयकारा लगाने लगा, तो मैंने दरवज्जा खोला।
बिटिया बकुल को आवाज दी कि कुछ रुपये नागराज और उसके संपेरे को दे दो। मैं भी उत्सुकता में संपेरे के पास पहुंचा, नाग-दर्शन करने लगा। भाव उत्साह और पुरानी परंपरा के आग्रह के चलते ही था, कि घर से कोई खाली न जाये। (हांलाकि मैं सक्षम लोगों से बाकायदा भिक्षा मांगता हूं, लेकिन अधिकांश लोग इग्नोर कर देते हैं? सभी को जीने का अधिकार है, इसलिए सहअस्तित्व के समभाव की सख्त अनिवार्य आवश्यकता होती है। हम सभी एक-दूसरे पर निर्भर हैं और सभी के प्रति सम्मान का भाव रखना सर्वोपरि है। यह समझना परम सत्य है। वरना सर्वनाशी घमंड का जन्म हो जाएगा। जहां सोहर नहीं, मृत्यु का शोक गीत बुनना शुरू हो जाता है।
तो अभी मैं उस नाग से बातचीत कर उसका हालचाल देख-पूछ ही रह था कि बकुल के साथ घर के दो अन्य लोगों ने भी उस नाग-आश्रय पात्र में कुछ रुपये भी अर्पित कर दिया।
फिर क्‍या था, संपेरा अति-उत्साह में गया। उतावली का तेल लगाते ही इस संपेरे ने उस नाग को मेरे गले में डालना शुरू कर दिया। नाग की सांसें बेहद आक्रोश से भरी थी, मानो किसी ने दहकते किसी बड़े कड़ाहे में पानी डाल दिया हो। गुस्‍से में भरे नाग-राज की रोंगटे खड़े कर वाली श्‍वास-ध्‍वनि किसी को भी भयातुर कर सकती है। साफ अहसास हुआ, मानो मैं कोहबर में बैठा हूं, और एक शैतान साली अपनी जिद पूरी कराने के लिए मेरे कान में फुंफकार कर रही है। मैं तो शिवत्‍व में लीन होने ही लगा।

इसी बीच हमारे पारिवारिक गौरव श्रीवास्‍तव जी पहुंच गये। उन्‍होंने अपना मोबाइल निकाला और लगे धड़ाधड़ सेल्‍फी के बटन दबाने। न जाने इस संपेरे को क्‍या सूझी, कि उसने मेरी गर्दन के पास उस फुंफकारते नाग को सटा दिया। मानो, वह मुझे शिव की तरह देखना, समझना और दिखाना चाहता हो।
कई फोटो खिंचा-खिंच हुईं। नाग अपने टोकरी में, संपेरा अपनी डगर और हम लोग अपने घर में चले आये। बैठ कर फोटो देखी, तो माथा ठोंक लिया। इस मूर्ख संपेरे ने मुझे उल्‍टा-पुल्‍टा शिव समझ लिया था। तभी तो उसने उस नाग को मेरे बायें कांधे के बजाय, दाहिने कांधे पर बिठा दिया।
इस चूतिये को इतना भी शऊर नहीं था कि बायें ओर का स्‍थान पत्‍नी का होता है। जबकि इस नाग को इस संपेरे ने पत्‍नी के स्‍थान पर यानी वाम-अंग पर स्‍थापित कर दिया।
हईस्‍साला, अब मैं पति-धर्म का पालन किसी नाग-नागिन से करूंगा क्‍या ? मुझे क्‍या ! भविष्‍य में मेरी सारी औलादें अब सांप-संपोली ही निकलेंगी। 

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