: डॉ नरेंद्र बहादुर श्रीवास्तव फारसी में डॉक्टर थे, सूचना विभाग उनको बर्खास्त करना चाहता था : खुदा हाफिज को अल्लाह हाफिज और नमाज को सलात कहने लगे वहाबी :
निहाल उद्दीन उस्मानी
लखनऊ : आजकल हम उस दौर में घुसने लगे हैं, जो अपनी नयी हमलावर संस्कृति गढ़ने में जुटा है। किसी पुरानी लकीर के सामने कोई दूसरी लकीर बड़ी बनाने की प्रक्रिया में हम किसी नयी बड़ी लकीर नहीं बना रहे हैं, बल्कि हमारा पूरा ध्यान इस तरफ ही होता है कि बिना कुछ किये बिने ही यह काम हो जाए। मसलन, बड़ी लकीर बनाने के बजाय सामने की लकीर का साइज छोटा कर दिया जाए। भाषा में और संस्कृति में आजकल यही चल रहा है।
बिभास कुमार श्रीवास्तव जी ने जानना चाहा है कि रमादान कहना सही है या रमज़ान। उर्दू भाषा में यह शब्द फ़ारसी के माध्यम से आया है जहाँ इस का उच्चारण रमज़ान ही है और हमारे यहाँ वही प्रचलित भी रहा है। लेकिन इधर कुछ वर्षों से उर्दू भाषा के अनावश्यक अरबीकरण के कारण रमदान भी प्रचलन में है. इसका कारण कुछ तो यह है कि अरब देशों में रोज़गार के लिए जाने वालों की संख्या बढ़ी है और कुछ संशोधनवादियों का सक्रिय होना भी है चाहे उसके कारण भाषा कुरूप ही क्यों न हो जाये.
आपने ध्यान दिया होगा कि यह संशोधनवादी ख़ुदाहाफिज़ के बजाय अल्लाह हाफ़िज़ , नमाज़ के बजाय सलात कहने पर ज़ोर देने लगे हैं . उनका मानना है कि ख़ुदा और नमाज़ जैसे शब्द तो अग्निपूजकों द्वारा प्रयोग किये जाते हैं. बचपन में हमारे घरों में अभिवादन के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द ” आदाब ” तो अब ग़ैर मुस्लिमों के अभिवादन के लिये ही आरक्षित हो गया लगता है.
एक दिलचस्प घटना का उल्लेख करना चाहूंगा यद्यपि यहाँ उसका कोई औचित्य नहीं है. सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में मेरे सहकर्मी डॉ.नरेन्द्र बहादुर श्रीवास्तव फ़ारसी भाषा में पी एच डी थे और उर्दू अनुवादक थे. विभाग उन्हें यह बहाना लेकर निकालना चाहता था कि वे उर्दू विषय में स्नातक नहीं हैं. मामला न्यायालय पहुंचा.जज ने पूछा इन्हें हिंदी आती है , विभाग ने स्वीकार किया कि आती है तो पूछा गया कि इन्हें फ़ारसी आती है. विभाग का जवाब था कि उसमें तो वे पी एच डी हैं . जज ने कहा कि जिसे हिंदी और फ़ारसी दोनों आती हैं वह उर्दू में कार्य करने में कैसे सक्षम नहीं है।
(लेखक निहाल उद्दीन उस्मानी यूपी सूचना एवं जन संपर्क विभाग में अनुवादक रह चुके हैं। वे दो दर्जन से अधिक भाषाओं के व्याख्याता हैं। अविश्वसीय रूप से, लेकिन निर्विवाद।)