: मजदूर दिवस पर इससे बड़ा माखौल हो सकता है पत्रकारों के नाम पर : पत्रकारों की धुली चादर पर कितने कर्म-कुकर्म किये तुमने : बेशर्मी की सारी सीमाएं पार कर चुके हैं पत्रकार नेतागण :
कुमार सौवीर
लखनऊ : क्यों पत्रकार दोस्तों। तुम कैसे और किस कोने से श्रमजीवी मजदूर नेता दिखते हो?
झूठ मत बोलो। तुम में से अधिकांश नेताओं को न तो समर्पित मजदूर जैसा परिश्रम करने की आदत है, न कुशल मजदूर जैसी कुशलता, न अपने साथिेयां के प्रति कोई निष्ठा, ईमानदारी और न जुझारूपन।
फिर कैसे तुम श्रमजीवी पत्रकार बन गये?
तुम तो विज्ञापन लगवाने की कीमत पर अपनी खबर हटवाने को तैयार हो जाते हो। फर्जी खबर प्लांट कराने में महारत है तुममें। सत्ता के जितने तलवे तुम चाट सकते हो, प्राणी-जगत में किसी अन्य की क्षमता उतनी नहीं है। तुम्हें सारे लाभ चाहिए, हर कोने से चाहिए। अपने ही साथियों की पेंशन का पैसा का घोटाला तुमने कर दिया, सैकड़ों पत्रकारों को इस योजना से हटा दिया। इंडियन एक्सप्रेस में बीसियों नौकरी खटने के बाद महज दो हजार पेंशन पर जीवन कांख रहे हें, उसके बारे में तुमने कोई बात की। नेताओं की प्रेस-कांफ्रेंस में तुम क्या करने जाते हो? कोई आउटपुट है तुम्हारा? किसी इजारेदार, पूंजीपति के रूआब में रहते हो तुम, और खुद को पत्रकार कहलाते हो।
74 बरस का तुम्हारा एक बुड्ढा साथी रेल-क्रासिंग पर दम तोड़ गया, तुम गये उसके घर। तुमसे बेहतर तो वह वैदेही गुप्ता और उसके साथीगण उस पत्रकार के परिजनों को सम्भालते रहे, लेकिन तुम झांकने तक नहीं गये। दिवंगत रवि वर्मा समेत दो पत्रकारों के परिजनों को राहत दिलाने के लिए मैंने 187 पत्रकारों के हस्ताक्षर से एक अर्जी तैयार की थी, तुमने कहा कि उस पर काम करोगे। लेकिन तुमने ही शराब के नशे में मुझे बताया कि वह अर्जी तुमने इसलिए फाड़ दी, क्योंकि हिसाब सिद्दीकी को क्रेडिट जा सकता था। तुमने शाहजहांपुर के पत्रकार जागेंद्र सिंह की हत्या को सत्ता के हाथों बेच दिया। और तुम खुद को पत्रकार कहलाते हो?
जागेंद्र सिंह की हत्या को तो तुम जैसे पत्रकारों ने दबा ही दिया था, लेकिन मैंने ही शाहजहांपुर जाकर मंत्री, पुलिस व प्रशासन की करतूतों का खुलासा किया तो तुम सब लोग किसी श्वान-श्रंगाल की तरह उसका क्रेडिट लेकर उड़ने की फिराक में जुट गये। अब पता चला है कि पत्रकारों के एक नेता ने जागेंद्र सिंह के मामले में अपने “अदम्य परिश्रम, क्षमता ओर जुझारूपन” का “प्रदर्शन” किया था, उसके लिए मुम्बई प्रेस क्लब से कोई बहादुरी-शील्ड झटक लाये हो तुम। कितने बेशर्म हो तुम सब?
कोई बात नहीं, मैं तो अपनी बात कहूंगा जरूर। तुम दलाली करते रहना। मैं तुम्हें नंगा करता रहूंगा। एक न एक दिन तो हमारी पत्रकार बिरादरी तुम्हारे चेहरे पर कालिख पोतेगी जरूर।