: मौत के घर में तब्दील हो गये सरकारी अस्पताल : चार दिन पहले एक मरीज को खून के बजाय लाल रंग मिला ग्लूकोज चढ़ाया : एनआईसीयू में था तीन दिन का नवजात। न डॉक्टर, न नर्स, न वार्डब्वाय : निगरानी का जिम्मा डॉक्टरों का, सस्पेंड की गयी नर्स :
दोलत्ती संवाददाता
महोबा : जिला अस्पताल का बच्चा वार्ड में कमजोर या बीमार पाये गये नवजात बच्चों को विशेष रूप से निगरानी के लिए गहन चिकित्सा यूनिट यानी एनआईसीयू में रखा जाता है। कहने की जरूरत नहीं कि एनआईसीयू अत्याधुनिक और सुरक्षित मानी जाती है। लेकिन बीती गुरुवार को यहां के एनआईसीयू में रखे गये एक तीन दिन के बच्चे को चींटियों ने कुछ इस कदर काटा-नोंचा कि उसकी मौत हो गयी। दरिंदगी का आलम यह देखिये कि उस महज तीन दिन का यह बच्चा बिलखता रहा, लेकिन किसी भी डॉक्टर या अस्पताल-कर्मी के कानों तक उसकी चीखें नहीं पहुंच सकीं।
बता दें कि इसी अस्पताल में चार दिन पहले एक मरीज को खून की जगह ग्लूकोज में लाल रंग की दवा मिलाकर चढ़ा दी गई थी। वह भी तब, जब कि मरीज की वृद्ध मां ने अपने जेवर बेच कर अस्पतालकर्मियों को पांच हजार रुपयों की घूस वसूल ली थी। इस पर हंगामा हुआ, तो डॉक्टरों को बचाने के लिए अस्पताल-प्रशासन ने एक नर्स को सस्पेंड करके मामला रफा-दफा कर दिया था। लेकिन इस हंगामे के बावजूद यहां के जिला अस्पताल की करतूतों का खामियाजा यहां भर्ती एक नवजात को भुगतना पड़ा है।
पता चला है कि कुलपहाड़ तहसील क्षेत्र के मुढारी गांव का रहने वाला सुरेंद्र रैकवार 30 मई को अपनी गर्भवती पत्नी सीमा को लेकर यहां आया था। डिलीवरी के नाम पर डॉक्टर ने उनसे 6500 रुपये लिए थे। जन्म के बाद नवजात की सेहत बिगड़ने लगी, जिसके बाद उसे विशेष नवजात देखभाल वार्ड में भर्ती कर दिया गया था। बताया जाता है कि बेड पर चींटियां थीं और उन्होंने बच्चे को इस कदर काटा कि एनआईसीयू में ही उस मासूम ने दम तोड़ दिया। पता चला है कि जब इस बच्चे को एनआईसीयू से बाहर निकाला गया, तो उसके पूरे बदन में नन्हें-नन्हें चकत्ते पड़े थे।
परिवार के लोग बताते हैं कि बेड पर चींटी होने की शिकायत ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर और स्टाफ को दी गई थी लेकिन किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. उनका आरोप है कि महिला डॉक्टर अपनी नींद के आगे किसी की नहीं सुन रही थी, वह बार-बार परिजनों को दुत्कार कर भगा रही थी. बच्चे की मौत से परिजनों में खासा आक्रोश है और उन्होंने अस्पताल में जमकर हंगामा किया। इसके बावजूद अस्पताल प्रशासन अपनी गलती मानने को तैयार ही नही है।
घटना के बाद सीएमएस ने जांच के आदेश दिए हैं, जबकि एसडीएम ने मौके पर पहुंचकर परिवार को समझाबुझा कर शांत कराया गया है। लेकिन जिला अस्पताल प्रशासन अभी तक यह तय नहीं कर पाया है कि एनआईसीयू में हुई इस हैरतनाक घटना का जिम्मेदार कौन है।