: कुलपति हैं तो सब मुमकिन है, कानून-नियम सब ताक पर रख : शासन गया तेल लेने, अड़ंगा डालने वाला वित्त अधिकारी बना दूध की मक्खी : सर्वनाश करने पर आमादा रहे हैं यहां के कुलपति : असली झगड़ा कहीं यूनिवर्सिटी में निर्माण और अनुरक्षण कार्यों पर तो नहीं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : पूर्वांचल यूनिवर्सिटी का नाम वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के बजाय अब निर्मला एवं तोमर विश्वविद्यालय न हो जाए। शिक्षा जगत में ताजा चल रही गतिविधियों को तो देख कर यह आशंका होने लगी है। यह आशंका तब बलवती होने लगी है, जब कई बरस पहले रिटायरमेंट पा चुके एक व्यक्ति को कुलपति ने न केवल उस पद पर दोबारा नियुक्ति देने की कवायद शुरू कर दी। इतना ही नहीं, कुलपति की इस कवायद में अडंगा लगाने वाले यूनिवर्सिटी के वित्त अधिकारी को ही विश्वविद्यालय से ही निकाल बाहर कर दिया।
बहरहाल, मास्टरी तो नहीं मिल पायी, लेकिन चूंकि जुगाड़ तो जबर्दस्त था, इसलिए दक्षिण भारत के एक हिंदी सेंटर में पूरी जिन्दगी खपायी। लेकिन वक्त ने सुनहली किरणों से सहलाना शुरू किया तो वे सैकड़ों स्नातकोत्तर कालेजों की तीन-साला मालकिन बन गयीं। हालांकि यह नौकरी टेम्परेरी है, लेकिन वे अपने आप को विधाता बन बैठी हैं। मजाल है कि उनकी नाक पर कोई मक्खी तनिक भी देखने की हिम्मत दिखा सके। बीते दिनों एक वित्त अधिकारी ने उनके रंगीन ख्वाहिश पर कानून समझाने की क्या कोशिश की, कुलपति ने उसको मर चुके मूस की तरह उठा कर विश्वविद्यालय से दफा करके उसे लखनऊ भेज दिया। बोलीं:- खबरदार। आइंदा इधर न आना।
जी हां। यह मामला है वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय का और इस विश्वविद्यालय की ताजा-तरीन कुलपति हैं निर्मला एस मौर्या। अपनी ताजा-तरीन नौकरी में खासी चर्चाएं फैला चुकीं निर्मला एस मौर्या का ताजा शिगूफा यह है कि उन्होंने अपने एक बड़े अधिकारी का बोरिया-बिस्तर यूनिवर्सिटी से फेंक कर लखनऊ भेज दिया हैं। यह अधिकारी वह उस यूनिवर्सिटी का नहीं, बल्कि यूनिवर्सिटी में चल रहे गड़बड़-झाला पर निगाह करने के लिए तैनात किया गया है। यह है इस यूनिवर्सिटी का वित्त अधिकारी, जो मूलत: उप्र सरकार के वित्त विभाग का एक बड़ा अधिकारी है। इस अधिकारी का नाम है संजय कुमार राय।
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मिली खबरों के अनुसार दो दिन पहले पूर्वांचल विश्वविद्यालय ने अपनी यूनिवर्सिटी की कार्य-परिषद की बैठक बुलायी थी। इस बैठक का कार्य-वृत्त कई दिन पहले ही सभी सदस्यों को भेजा जा चुका था। एजेंडा था करीब सत्रह पन्नों का। बैठक में जमकर हंगामा हुआ। हालांकि इस बैठक को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है। लेकिन इस बैठक में क्या हुआ, या नहीं हुआ, इसका तो पता नहीं चल पाया है। लेकिन इतना जरूर है कि इस एजेंडा के आखिर बिन्दु में यह दर्ज हो गया है कि इस यूनिवर्सिटी के वित्त अधिकारी के चलते यूनिवर्सिटी का कामधाम बाधित हो रहा है और उस वित्त अधिकारी के रहते यहां का कामधाम हो पाना सम्भव नहीं है। ऐसी हालत में कार्यपरिषद ने इस वित्त अधिकारी संजय राय को इस यूनिवर्सिटी से इकतरफा हटा दिया गया है। जाहिर है कि इसके बाद यह वित्त अधिकारी संजय राय को अपनी नौकरी के लिए लखनऊ में वित्त विभाग के पास जाना होगा। अब संजय राय इधर-उधर भटक रहे हैं, और कुलपति समेत उनके सारे समर्थक मजे में लहालोट।
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अब यह तो मामला गुपचुप ही है कि यह पूरा लफड़ा किस तद्भव और तत्सम के चलते कैसे और क्यों भड़का, लेकिन सूत्र बताते हैं कि यह मामला पसंदीद को पसंदीद कुर्सी पर चटाने से शुरू हुआ है, और उसमें असली मदारी हैं कुलपति निर्मला एस मौर्या। वे ही चाहती हैं कि यूनिवर्सिटी में ओएसडी की कुर्सी पर जमे केएस तोमर को ही पूरी सल्तनत थमा दी जाए। जबकि हकीकत यह है कि यूनिवर्सिटी से तीन बरस पहले रिटायर हो चुके केएस तोमर लगातार ओएसडी की कुर्सी थामे हैं। जबकि सूत्र बताते हैं कि नियम के तहत तोमर की यह पुनर्नियुक्ति नहीं हो सकती है। सूत्रों का कहना है कि इस बारे में सन-92 में ही एक नियम जारी हो चुका है। लेकिन कुलपति निर्मला मौर्या चाहती हैं कि उनका ओएसडी केएस तोमर ही हो। लेकिन ऐसा क्यों हो, इसके बारे में कोई भी खुलासा कुलपति नहीं कर पा रही हैं।
हैरत की बात है कि एक कुलपति एक ओएसडी की पुनर्नियुक्ति के मसले पर कानून-नियम को धता बता रही हैं, यूनिवर्सिटी की प्रतिष्ठा को ठेंगे पर रख दिये घूम रही हैं, और कर्मचारियों में हताशा और पूरे शिक्षा-जगत में अफरा-तफरी ही नहीं, बल्कि अराजकता और धूमिल शिक्षा-स्तर के लिए विश्वविद्यालय की कब्र खोद रही हैं। सूत्र बताते हैं कि इस विवाद का असली किस्सा तो यूनिवर्सिटी में निर्माण और अनुरक्षण कार्यों को लेकर शुरू हुआ है। इस पर ताकाझांकी और अड़ंगा लगाने की साजिशें भी चल रही हैं। लेकिन विस्फोट तो तब हुआ जब कुलपति ने यहां के वित्त अधिकारी को विश्वविद्यालय से निकाल बाहर कर दिया।
इस बारे में कुलपति निर्मला एस मौर्या से बातचीत करने के लिए दोलत्ती डॉट कॉम ने कई बार कोशिश की गयी, लेकिन कुलपति ने फोन न तो उठाया, और न ही कोई जवाब ही दिया।
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