हे राम ! यह चीत्कार नहीं, चेतावनी थी

बिटिया खबर

: हमारे पास 80 बरस का निष्पाप कर्मयोगी गांधी भी है, और उसे मार डालने पर आमादा 40 बरस का एक विक्षिप्त गोडसे भी है : पड़ोसी से भी नफरत तो बच्चे अब होमवर्क की तरह सीखते-करते हैं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : नफरत का उत्पादन हमेशा विनाश ही लाता है।अशोक हों, खिलजी हों, जिन्ना हों, सोहरावर्दी हों, गोडसे हों या फिर भिंडरवाला, डॉ जाकिर, आडवाणी, तोगड़िया अथवा सिंहल और बागेश्वर धाम जैसे धूर्त और पाखंडी जैसे लोग। गुजरात दंगों में खुद अटल जी तक ने ही नरेंद्र मोदी को राष्ट्र-धर्म सिखाने की नसीहत दी थी।
लेकिन इंसान बुराई तरफ ही दौड़ता है। लालच है सिर्फ फैलता खून और पपड़ी बनने जाता उबकाई मारता रक्त, जहाँ केवल प्रतिशोध ही दिखती और पहुंचती है। बातचीत की संभावनाएं शून्य, समाप्त। खिड़कियां बन्द। पड़ोसी से भी नफरत, जो हमारे बच्चे अपने घर में बहु होमवर्क की तरह सीखते और करते हैं। क्या ऐसा नहीं लगने लगा है कि हम लगातार मानव के विनाश की ही योजनाएं बनाने में व्यस्त हैं?
काश ! हम हृदय में धड़कती ममतापूर्ण संवेदना की गहराइयों तक पहुंच कर सोचें तो, कि हमारे पास हमारे सोचने, करने और हासिल करने के लिए कितनी असीम स्वर्णिम जमीन मौजूद है। जहां, ऋषि, मुनि, बुद्ध, गार्गी, महाबीर, जीसस, मोहम्मद, शंकराचार्य, कालिदास, शबरी, तुलसीदास, गुरु गोविंद, मीरा, चैतन्य, अब्दुर्रहमान खानखाना, जायसी, सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान, नेहरू, अम्बेडकर, प्रेमचंद, सुदर्शन, मंटो, निराला और टैगोर और सुहानी शाह जैसी कितनी व्यापक और बेमिसाल जीवंत संपदा भी मौजूद है।
हमारे पास 80 बरस का निष्पाप कर्मयोगी गांधी भी है, और उसे मार डालने पर आमादा 40 बरस का एक विक्षिप्त गोडसे भी है।
तय तो हमें ही करना होगा न!!!
महान वैज्ञानिक अल्‍बर्ट आइंस्‍टीन ने महात्मा गांधी के बारे में जो कहा उससे ज्‍यादा और बेहतर गांधी के बारे में कुछ नहीं कहा, लिखा या सोचा जा सकता है। वे कहते हैं, “भविष्‍य की पीढि़यों को इस बात पर विश्‍वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्‍यक्ति भी कभी धरती पर आया था।”
ऐसा न हो कि हम बाद में फिर पछताते ही रह जाएं। ध्यान रखिये कि हमारे घर के सर्वाधिक सम्मानित और वयोवृद्ध मुखिया महात्मा गांधी जी की हत्या हुई थी, लेकिन हम चाहें तो अपने महान देश की दोबारा नृशंस हत्या को आशंकाओं को आज भी समाप्त कर सकते हैं।
सिर्फ यही फैसला करना है हमें, कि हम अपने बुजुर्गों को गोली मार उन्हें रक्तरंजित मार डालने वाला देश बनना चाहते हैं, जहां के बच्चे अपने बड़े-बुजुर्गों का कत्ल करने पर हमेशा आमादा रहें? या फिर ऐसा देश जहां के मासूम बच्चे अपने बड़ों की प्यारी छांव में किलकारियां भरते हुए कुछ ठोस सार्थक और रचनात्मक काम सोचने, करने और उन्हें मूर्त स्थापित करने की प्रतिज्ञा ले सकते हैं?
अब आज सिर्फ इतना ही सोच कर फैसला लीजिये कि आप कितनी देर और किन हालातों तक अपने पड़ोसियों के साथ नफरत की सांस ले सकते हैं?।
नफरत की भी एक सीमा होती है। परस्पर झगड़े को नफरत में मत बदलिए।
अपनी प्यारी, दुलारी और नन्हीं मासूम औलादों को सुकून के समग्र और प्रसन्न माहौल में रहना-जीना सिखाइये।

1 thought on “हे राम ! यह चीत्कार नहीं, चेतावनी थी

  1. अप्रतिम।
    आपकी मेधा और प्रवाहिता का जवाब नहीं, बन्धुश्रेष्ठ। आपकी चित्रात्मक शैली जनग्राह्य भाषा मे सब कुछ कह देती है। ज8न घटनाओं के बारे में हम विज्ञ रहते है उन्हें भी पढ़ने पर आनन्दानुभूति होती है।

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