अमर उजाला का इक उपचार, तान के मारो जूता चार

बिटिया खबर

: जौनपुर का रिपोर्टर इस अखबार के लिए पूरी जिन्‍दगी खपा गया, उसको मरने के बाद भी अपना नहीं माना : बलिया के रिपोर्टरों को भी इसी तरह दूध की मक्‍खी की तरह चूस कर फेंक दिया था लिंग-वर्द्धक अखबार ने : इसको बेशर्मी ही नहीं, स्‍वार्थपरता की पराकाष्‍ठा ही है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : एक था अजय सिंह। खबरों को खोजना, छानना और लिखने का जुनून था उसमें। करीब दस बरस पहले वह अमर उजाला से जुड़ा, और जल्‍दी ही रिपोर्टर बन गया। फिर उसके बाद उसकी हैसियत वरिष्‍ठ संवाददाता में होने लगी। खबर मिलते ही बाइक निकाला, और मौके पर हाजिर। लेकिन इसी खबरबाजी के चलते में भारी गर्मी और लू के चलते वह बेहाल हो गया और एक दिन के भीतर ही उसकी मौत हो गयी। लेकिन उसकी मौत के बाद अमर उजाला अखबार की बेशर्मी तो देखिये कि इस अखबार ने उसको अपना रिपोर्टर मानने तक से इनकार कर दिया।
यह मामला है जौनपुर का। करीब ढाई दशक पहले यहां के ब्‍यूरो चीफ हुआ करते थे कैलाश सिंह। उनका ही भाई था अजय सिंह। कैलाश ने तो करीब 15 बरस पहले अमर उजाला छोड़ दिया, लेकिन अजय सिंह अपनी मेहनत और मेधा के चलते अमर उजाला में रिपोर्टर और फिर वरिष्‍ठ संवाददाता की पहचान बना गया। अक्‍सर तो ऐसा ही होता था कि ब्‍यूरो चीफ की गैरहाजिरी में अजय सिंह ही पूरा अखबार निकाल दिया देता था। क्‍या चंदवक तो क्‍या सुरेरी, क्‍या मुंगराबादशाह तो क्‍या केराकत, क्‍या नाऊपुर, तो क्‍या शाहगंज, क्‍या जलालपुर तो क्‍या सिंगरामऊ। खबरों के मामले में अजय सिंह की महारत थी।
लेकिन दो दिन पहले ही वह ब्‍लड डोनेशन के एक कार्यक्रम में काफी व्‍यस्‍त रहा। अगले दिन उसको सिकरारा की ओर जाना पड़ा, धूप बहुत कड़ी पड़ रही थी। उसे लू लग गयी। शाम को वह दवा लेने के लिए कलेक्‍ट्री के पास दवा खरीदने के गया, तो गश खा गया। देखते ही देखते ही अजय सिंह के प्राण-पखेरू उड़ गये।
कहने की जरूरत नहीं कि इस घटना से जौनपुर का खबर जगत आहत और स्‍तब्‍ध हो गया, लेकिन अमर उजाला ने उसकी मौत को अपने रिपोर्टर की मौत के तौर पर पेश करने से इनकार कर दिया। कहने की जरूरत नहीं कि अमर उजाला अखबार इकलौता समाचारपत्र है जो अपने पन्‍नों में खबरों की विश्‍वसनीयता के बजाय लिंग-वर्द्धक यंत्रों को बेचने संबंधी विज्ञापन बढ़-चढ़ कर छापता है।

आपको बता दें कि हाल ही बोर्ड परीक्षाओं के पेपर्स को प्रकाशित कर बलिया प्रशासन की लापरवाही को दो-कौड़ी की तरह सामने कर देने वाले मामले में जिन दो रिपोर्टरों ने साहस दिखाया था, उसको भी अमर उजाला अखबार ने पहचान देने से ही भी इनकार कर दिया था। वह भी तब, जब यह रिपोर्टर न केवल अमर उजाला के ही रिपोर्टर थे, बल्कि के लिए अमर उजाला के लिए ही वे जेल तक चले गये थे।

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