कप्‍पन को नहीं जानते ? तो आप पत्रकार नहीं, विशुद्ध दलाल हैं

बिटिया खबर

: हाथरस में योगी-पुलिस ने केरोसिन डाल कर फूंका था दुराचार पीडि़त युवती को : पुलिस-कुकर्म का स्‍याह-सफेद परखने गया था कप्‍पन : सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ढाई बरस से लखनऊ की जेल में सड़ रहा है सिद्दीक कप्‍पन : दोलत्‍ती वाले कुमार सौवीर और रूपरेखा वर्मा ने भरा है जमानत बॉंड :

कुमार सौवीर

लखनऊ : यह 14 सितंबर-20 को हाथरस में हुआ यह हादसा तो आप को बखूबी याद होगा। अनुसूचित जाति की एक लड़की के साथ चार सवर्ण युवकों ने गैंगरेप किया और उसे एक खेत में ही खून से लथपथ छोड़कर भाग गए। बुरी तरह घायल उस युवती की गर्दन और प्राइवेट पार्ट्स पर गंभीर चोटें पाई गईं थीं। उसकी जीभ भी कट चुकी थी। अलीगढ़ के एक अस्पताल के बाद पीड़िता को दिल्ली ले जाया गया था। इसके करीब11 दिन बाद दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में आखिरकार उसकी मौत हो गई। इसके बाद पुलिस और प्रशासन ने आनन-फानन में आधी रात को ही मृतका के शव का पोस्‍टमार्टम कराने के बजाय उसे मिट्टी का तेल डाल कर खेत में फूंक डाला। नाम दिया कि हो गया अंतिम संस्कार।
इस जघन्‍य हादसे की जमीनी हकीकत जांचने के लिए दिल्‍ली के पत्रकार सिद्दीक कप्‍पन हाथरस पहुंचे। कप्‍पन केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्‍ट्स की दिल्‍ली इकाई के सचिव हैं। मूलत: केरल के रहने वाले कप्‍पन की कार 5 अक्‍टूबर 2020 को मथुरा वाले टोल प्‍लाजा पर रोकी गई। यूपी पुलिस ने कार में मौजूद चारों लोगों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने कहा कि कप्‍पन के पास 45 हजार रुपये बरामद हुए और वह देशविरोधी गतिविधियों में लिप्‍त था। आरोप लगाया कि पीएफआई का भी उसे संरक्षण है। इतना ही नहीं, 45 हजार रुपयों की बरामदगी पर पुलिस ने कप्‍पन को मनी-लॉड्रिंग का आरोपी भी मान लिया। कहने की जरूरत नही है कि कप्‍पन की गिरफ्तारी की राष्‍ट्रीय-अंतरराष्‍ट्रीय पत्रकार और मानवाधिकार संगठनों ने कड़ी निंदा की।
मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो चीफ जस्टिस ने यूपी सरकार से पूछा कि क्या कप्पन के पास से कोई विस्फोट पदार्थ मिला है? कोई ऐसी सामग्री मिली जिससे लगता हो कि वो साजिश रच रहा था, तब यूपी सरकार के वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि कप्पन के पास से कोई विस्फोटक तो नहीं मिला है लेकिन उसकी कार से कुछ साहित्य मिला है। इस पर बचाव में कपिल सिब्बल ने कहा कि साहित्य ये था कि हाथरस की पीड़िता को इंसाफ दिलाना है। चीफ जस्टिस ने कहा कि कप्पन दो साल से जेल में है और लग रहा है कि अभी मामला आरोप तय करने के चरण में भी नहीं पहुंचा है। तब कोर्ट ने कहा कि हम कप्पन को ज़मानत दे देंगे।
चीफ जस्टिस ने जब पूछा कि हर किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हासिल है, और कप्पन दुनयिा को यह दिखाने की कोशिश कर रहे थे कि हाथरस की पीड़िता को इंसाफ मिलना चाहिए और उनकी आवाज़ उठाना चाहते हैं। क्या ये कानून की निगाह में अपराध है? शर्मनाक है कि इस सवाल पर यूपी सरकार के पास अब तक कोई भी जवाब नहीं है।
पिछले 23 दिसम्‍बर को सुप्रीम कोर्ट ने सिद्दीक कप्‍पन को जमानत दे दी। लेकिन इसके एक महीना पूरा हो जाने के बावजूद कप्‍पन को लखनऊ जेल से रिहा नहीं किया गया है। यह तब, जब कि लखनऊ विश्‍वविद्यालय की पूर्व कुलपति डॉ रेपरेखा वर्मा और मैंने यानी दोलत्‍ती डॉट कॉम के संपादक कुमार सौवीर ने पत्रकार सिद्दीक कप्‍पन की जमानत जमा कर दी है।
अब लखनऊ और उप्र के पत्रकारों का चरित्र भी छान लिया जाए। केरल का रहने वाला और दिल्‍ली में पत्रकारिता कर रहा कप्‍पन तो यूपी और हाथरस की अबला बेटियों को उनके जायज हक और सम्‍मान के लिए पिछले ढाई बरस से जेल में सड़ रहा है। इसी बची कप्‍पन को देशद्रोही करार देकर कैदियों द्वारा जेल में बुरी तरह पीटा भी गया। अपने बेटे की रिहाई मांगते-मांगते कप्‍पन की मां का ही देहांत हो गया, लेकिन कप्‍पन नहीं रिहा हो पाया। कप्‍पन की रिहाई के लिए पत्‍नी रेहाना ने हर दरवाजा खटखटाया। कई विरोध-प्रदर्शन आयोजित कराए। पति को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद रेहाना ने कहा, ‘अदालत ने पाया है कि कप्पन निर्दोष हैं और इसलिए जमानत दी गई। दो साल हो गए हैं और यह हमारे लिए बहुत कठिन था और हमने इसका सामना गहरी भावनाओं और पीड़ाओं के साथ किया।’

बेहद शर्मनाक हालत तो यह है कि लखीमपुर से केंद्रीय मंत्री के उस हत्‍यारे बेटे की रिहाई तो कल हो गयी, जिसने किसानों को अपनी गाड़ी से कुचल कर मार डाला था, लेकिन उस कप्‍पन पर किसी भी पत्रकार ने अपनी कलम नहीं उठायी, जिसने हाथरस और उप्र के योगी-राज के दावों को बिलकुल सरेआम नंगा कर दिया था और उसका खामिजाया अब वह जेल में भुगत रहा है। सर्वोच्‍च न्‍यायालय के आदेशों के बावजूद।

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