अफसर की बीवी का जेबखर्च दस लाख रुपया महीना

बिटिया खबर

: बीवी को पता है कि उसके पति की हराम की कमाई में आम आदमी की कराह, चीत्‍कार और चीखें चिपकी हैं : कोई कैसे शर्मिंदा हो, सब जानते हैं कि सुविधाएं व मोटा जेब-खर्चा उनके पति के वेतन का कई गुना ज्‍यादा :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अमेरिका के मिनेपोलिस शहर में 25 मई में अश्‍वेत जॉर्ज फ्लॉयड के हत्‍यारे पुलिस अफसर की पत्‍नी केली ने अपने पति डेरेक चौवन को तलाक देने की घोषणा कर दी। तो उसका मतलब यह नहीं कि दुनिया के सारे शीर्ष पुलिस या प्रशासनिक अफसरों की बीवियों ने भी केली जैसा ही आंदोलन छेड़ सकती हैं, या फिर वे भविष्‍य में अपने साथ होने वाली ऐसी किसी घटना पर बहुत गम्‍भीरता के साथ फैसला लेने को व्‍यग्र हो सकती हैं। यूपी के एक बहुचर्चित पुलिस अफसर का किस्‍सा अगर अमेरिका की केली जैसी महिलाएं सुनेंगी, तो शर्तिया अपने दांतों तले उंगलियां चबा डालेंगी।
किस्‍सा आगे सुनाने से पहले हम आपको बता दें कि केली ने अपने पति डेरेक चौवन को तलाक देने का फैसला करते हुए यह भी ऐलान किया था कि वह डेरेक से तलाक से होने वाले आर्थिक लाभ का दावा नहीं करेगी। उसे मानवता के साथ जीवन व्‍यतीत करना है, किसी पिशाच के साथ नहीं जो किसी की सरेआम हत्‍या करने में हिचक तक महसूस न करे। हैरत की बात यह भी रही कि केली के बेटे ने भी साफ-साफ ऐलान कर दिया कि वह किसी हत्‍यारे के साथ अपना जीवन व्‍यतीत नहीं कर सकता।
लेकिन जो व्‍यवहार अमेरिका की केली ने किया, वह भारत में शायद नामुमकिन होगा। भारतीय समाज के उस समुदाय में भी नहीं, जो पूरी तरह सम्‍पन्‍न और अधिकार-सम्पन्‍न माना जाता है। सुविधा, ऐश्‍वर्य और विलासिता का जीवन व्‍यतीत करता है। यानी वह महिला जो समाज के सर्वोच्‍च पायदान पर जीवन व्‍यतीत कर रही हैं, निर्विघ्‍न जीवन और निश्‍चिंत में सिर्फ आनंद और मौज में रहती है। जिसे अपनी सुविधा के लिए श्रम या परिश्रम करने की कोई जरूरत नहीं होती, सिर्फ इशारा ही सारे लक्ष्‍यों को पूरा करने के लिए पर्याप्‍त होता है।
यह किस्‍सा आज से करीब छह बरस पहले का है। समाजवादी पार्टी की सरकार थी, जिसके मुखिया थे अखिलेश यादव। एक आईपीएस अफसर की धमक पूरे महकमे में ही नहीं, नौकरशाही और राजनीतिक सत्‍ता पर भी खासी थी। पंचम-तल में भी इस अफसर की तूती बजती थी। यह घटना उसी अफसर के घर आयोजित एक निजी पार्टी की है। इस पार्टी में इस अफसर के खास और चंद मित्रों को सपत्‍नीक बुलाया गया था। उस पार्टी में शामिल रहीं मेरी एक महिला मित्र ने मुझे यह किस्‍सा सुनाया। यह महिला मित्र उस पार्टी में शामिल थी।
इस महिला मित्र के सुनाये इस किस्‍से के मुताबिक पार्टी में शामिल सभी अधिकारी लोग या तो अपनी-अपनी डींगें हांक रहे थे, या फिर दूसरों की डींगें सुन रहे थे। अपने ऐश्‍वर्य, सुविधा, ऐयाशी और अपनी कमाई को लेकर ही सारी चर्चा केंद्रित थी। इसी बीच उसी आयोजक अफसर ने सवाल उछाला कि कौन-कौन लोग अपनी पत्‍नी को कितनी-कितनी रकम उनकी जेब-खर्च के लिए देते हैं। किसी ने कहा कि वह तो अपनी सारी तनख्‍वाह अपनी पत्‍नी को सौंप देता है। दूसरे ने कहा कि घर की सारी जरूरत पूरी करने भर की रकम तो वह अपनी पत्‍नी को देता ही है।
एक ने कहा कि जितनी भी जरूरत होती है, वह अपनी पत्‍नी के हाथ में थमा देते हैं। एक का कहना था कि सारे खर्च के अलावा वे कुछ नकद भी देते हैं। अधिकांश अफसरों ने कहा कि वे किटी-पार्टी या शॉपिंग के लिए पूरी रकम देते हैं। एक का कहना था कि उन्‍होंने अपना एटीएम कार्ड अपनी पत्‍नी को थमा रखा है। कुछ ने कहा कि वे कुछ रकम नकद भी देते हैं। हर कोई कुछ न कुछ नकद देने की बात करने लगा था। मसलन किसी ने पांच हजार, किसी ने दस हजार, किसी ने पचीस हजार। लेकिन एक ने तो बताया कि वे पचास हजार रुपया नकद अपनी पत्‍नी को हर महीने देते हैं, तो दूसरे ने दावा किया कि वे यह नकद जेब-खर्च एक लाख रूपया महीना देते हैं।
पार्टी में मौजूद सभी अफसर तो दूर तो इस चर्चा में शामिल हो ही रहे थे, मगर उनकी पत्नियां मुंह बाये हुए दूसरे अफसर द्वारा अपनी पत्‍नी को दी गयी मोटी रकम सुन-सुन कर भौंचक्‍का हुआ जा रही थीं। कम जेब-खर्च हासिल करने वाली महिलाएं अपने पति की कंजूसी पर कोस रही थीं। वे अपने भाग्‍य पर मन ही मन माथा फोड़ रही थीं, जबकि अपने कंजूस-मक्‍खीचूस पति की करतूत और अपने प्रति उनके व्‍यवहार पर खीझती जा रही थीं। जबकि बाकी महिलाएं अपनी बीवी को दिल-खुश करते हुए मोटी रकम देने वाले दूसरे अफसरों की दरियादिली पर खुश और उनकी पत्नियों के सुखमय जीवन पर रश्‍क कर रही थीं।
लेकिन अचानक जैसे मानो बज्रपात ही हो गया।
आयोजन अफसर ने ऐलान किया कि वे अपनी बीवी को बेइंतिहा मुहब्‍बत करते हैं। बीवी को कोई दिक्‍कत न हो, इसके लिए उन्‍होंने सारी सुख-सुविधाएं घर में ही जुटा रखी हैं। घर में होने वाली हर-प्रत्‍येक जरूरत को वे पूरा करते हैं। चाहे वह कार हो या फिर कार का ईंधन। एक नहीं, कई-कई आलीशान और महंगी कारों का काफिला है घर में। कोई भी ऐसी चीज नहीं है, जो घर में न हो। लेकिन इसके बावजूद बस एक इशारा ही काफी होता है मेमसाहब का, कि पलक झपकते ही हुक्‍म की तामील हो जाती है।
पार्टी में शामिल सारे लोग इस बड़े रसूखदार आईपीएस अफसर के मुखारबिन्‍द से निकलते शब्‍द-कमलों को अपने जेहन में जमाते जा रहे थे। सभी इसी प्रतीक्षा में थे कि अब अगली बार कोई न कोई खास खुलासा अब होने ही वाला होगा। अफसरों की पत्नियां तो खास तौर पर टकटकी बांधें देख रही थीं। अंदाज अभिभूत होने की तरह ही था। कि अचानक उस अफसर ने धमाका सा कर दिया। बोला:- मैं इन सारी जरूरतों को तो पूरा करता ही हूं, तो इसमें कोई अहसान तो है नहीं। आखिर मेरी पत्‍नी मेरी जान है, जान। आखिर पैसा हाथ की मैल ही होती है न, इसलिए। बीवी की संतुष्टि ही मेरे जीवन का ध्‍येय है, मेरी खुशी है और मेरा जीवन सार्थक करने का माध्‍यम भी। लेकिन इन के अलावा मैं उन्‍हें जेब-खर्च के लिए उनको हर महीना दस लाख रुपया देता हूं।
कहने की जरूरत नहीं कि इस अफसर की इस शेखी भरे ऐलान ने उस अफसर की पत्‍नी का सीना तन गया था, दूसरे अफसरों की भृकुटि तनने लगी थी, और दूसरे अफसरों की पत्नियों का चेहरा मानो जल-भुन गया था। उनका चेहरा लगातार स्‍याह होने लगा। लगा कि अब पार्टी से वापस घर जाने पर वे अपने पति की खूब खबर लेंगी।
ऐसी हालत में इनमें से कोई भी महिला उस अफसर की करतूतों पर शर्मिंदा कैसे हो सकती है, जब उसे मिल रही सुविधाएं उसके सपनों को साकार कर रही हों। न कि इंसानियत और समाज के प्रति सदाशयता से पूर्ण। वहां मौजूद हर महिला को खूब पता था कि उसे मिल रही सुविधाएं और मोटा जेब-खर्चा उनके पतियों के वेतन का कई-कई गुना ज्‍यादा है। और फिर ऐसी कई गुना ज्‍यादा आमदनी जायज माध्‍यमों से हरगिज नहीं हो सकती। जाहिर है कि हर महिला खूब समझती-जानती थी कि उसका पति सिर्फ हराम की कमाई ही करता है, जिसमें आम आदमी की कराह, चीत्‍कार और चीखें चिपकी होती हैं।

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