: दो साल पहले, दिल्ली में इमरजेंसी पर आयोजित एक सेमिनार में जब हम पत्रकार मित्रों ने उन्हें मुख्य वक्ता के तौर पर बुलाया तो वे व्हील चेयर पर आये और घंटे भर से ज्यादा उसी शेर वाले अंदाज़ में दहाड़े :
दीपक शर्मा
नई दिल्ली : जब भी उनसे मुलाकात होती, उन्हें सुनकर रोयें खड़े हो जाते थे। वे बताते , गाँधी ने उनके सामने क्या कहा था ? जिन्ना, दिल्ली में क्या स्पीच दे रहे थे ? सुभाष को उन्होंने पहली बार कहाँ देखा था ? नेहरू से उनके डिस्कशन किस टॉपिक पर होते थे ? ध्यानचंद को उन्होंने खेलते देखा तो वो वाकई खिलाडी नहीं जादूगर लगे ? और केएल सहगल को उन्होंने सुना तो खुद सहगल जैसा गाने की कोशिश करने लगे ?
वे सच में बनते हुए भारत के जीते जागते इतिहास थे।
और हाँ, हर मुलाकात में वे ये ज़रूर कहते , अगर ईमानदारी से काम (पत्रकारिता ) कर रहे हो तो डरना नहीं। जो सच है और छुपाया जा रहा है, उसे खंगालो, कन्फर्म करो और ज़रूर लिखो , चाहे सरकार जितना भी नाराज़ हो जाए। “मैंने तो इमरजेंसी (जब सरकार के मुखालिफ लिखने पर पाबन्दी थी ) में खूब लिखा,” वे बोलना नहीं भूलते ।
दो साल पहले, दिल्ली में इमरजेंसी पर आयोजित एक सेमिनार में जब हम पत्रकार मित्रों ने उन्हें मुख्य वक्ता के तौर पर बुलाया तो वे व्हील चेयर पर आये और घंटे भर से ज्यादा उसी शेर वाले अंदाज़ में दहाड़े। गज़ब की शख्सियत थे कुलदीप नैय्यर। वे 95 साल तक जीये और ख़ूब जीये !! आज हमारे बीच से उनके अलविदा होने पर उन्हें सलाम ।