: सामूहिक शव-दाह में कोई भी व्यक्ति अपनों की राख लेकर नहीं लौटता : अनेक इंसानी-प्राणों को राख में तब्दील कर बनाया “एकल-लोटा” : अदूरदर्शिता, मूर्खतापूर्ण ज़िद और काहिलियत पर अंध-भक्त अपनी भक्ति में ही लीन रहे :
कुमार सौवीर
लखनऊ : एक प्राण जब एकसाथ कई लोटों में भरा जाने लगे, तो समझ लीजिए कि तब प्रत्येक लोटे में अनेकानेक प्राणों को घुसेड़ने की परंपरा ही नहीं, बल्कि युद्ध-स्तर पर अभियान भी छेड़ा जा चुका है।
इतना ही नहीं, इसका अगला चरण एक चिता पर अनेक प्राण और अनेक प्राणों का समूह किसी एक लोटे में नहीं, बल्कि सामूहिक राख-विसर्जन के रूप में होने लगा है।
जाहिर है कि ऐसी विध्वंसकारी, अराजक, मूर्ख और समाज-तोड़क राजनीति का मकसद शुरू से ही लोक-कल्याण के बजाय, बिकाऊ और आत्म प्रदर्शनी लगाने तक ही सीमित था, लेकिन अंध-भक्त अपनी भक्ति में ही लीन रहे।
दरअसल, यह लोटा-समर्थक लोगों का गिरोह ही है, जिसका मकसद अनेक इंसानी-प्राणों को राख में तब्दील कर उसे एकसाथ “एकल-लोटे” यानी एक विशाल श्मशान में तब्दील करना ही था। कहने की जरूरत नहीं है कि सामूहिक शव-दाह में कोई भी व्यक्ति अपनों की राख लेकर नहीं लौटता। नतीजा आपके सामने है।
लेकिन याद रखिये कि जिन भी लोगों ने इस गिरोह का पर्दाफाश करने की कोशिश की, अंध-भक्तों ने आवाज़ उठाने वालों को देशद्रोही, खालिस्तानी, माओवादी, आतंकवादी, अर्बन नक्सल, वामी, कांगी और कटुआ-समर्थक करार कर दिया।