शेष जी महान इंसान हैं। उनको लेकर चिंतित हूँ

दोलत्ती

: अपने पुरुषार्थ के बल पर सम्‍पूर्ण प्रकाण्‍ड-ब्राह्मण हैं शेषनारायण सिंह : ग्रेटर नोएडा के जिम्‍स अस्‍पताल में भर्ती हैं शेष जी : समर्पित पत्रकारिता का इकलौता स्‍तम्‍भ हैं शेषनारायण सिंह :

कुमार सौवीर

लखनऊ : मुझे प्रकांड-ब्राह्मण ही पसंद हैं। लेकिन अक्खड़, ऐंठ-दर्प भरे लोगों से मुझे चिढ़ होती है, भले ही वे प्रकांड-ब्राह्मण ही क्यों न हों। साफ है कि मेरी अवधारणा में प्रकांड-ब्राह्मण केवल वही हो सकता है जो कर्मणा ब्राह्मण हो, जन्मना होना अनिवार्य नहीं। ऐसा प्रकांड-ब्राह्मण जो बुद्धि में सरल, निष्पाप और प्रवाहमान होने के साथ ही व्यवहार में भी तरल और मिलावटी न हों। दिखावा से कोसों, योजनों और युगों दूर हो। लेकिन हैरत की बात है कि ऐसे जन्मना प्रकांड-ब्राह्मण तो मिले जरूर, लेकिन अहंकार, दर्प, ऐंठन और लोक-प्रपंच में लिप्त भी रहते हैं। उप्र विधानसभा के अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित वाकई प्रकांड ब्राह्मण हैं, लेकिन उच्च पद तक पहुंचते ही उनके व्यवहार ने पलटा मार लिया। संबंधों को वे अब नए तरीकों से तौलने लगे। लेकिन कवि सुरेश सलिल,पूर्व आईएएस देवेन्द्रनाथ दुबे और राकेश कुमार मिश्रा तो गजब प्रकांड-ब्राह्मण हैं। लखनऊ में भाषाविद दिव्यरंजन पाठक और बनारस के त्रिलोचन शास्त्री भी इसी श्रेणी में हैं। हालांकि सर्वोच्‍च पायदान पर तो थे गोरखपुर वाले प्रो एसपी नागेंद्र। ठीक उसी तरह, जैसे डॉ योगेश प्रवीण।

मुझे कहने से कोई गुरेज नहीं है कि ऐसे कई प्रकांड-ब्राह्मण को भी मैं जानता हूँ जो वे कर्मणा तो हैं, लेकिन जन्मना नहीं। नामवर सिंह, प्रोफेसर पंजाब सिंह, डॉ लालजी सिंह और काशीनाथ सिंह जैसे लोगों से भी मैं मिल चुका हूं, लेकिन मेधा के स्तर पर तो अद्भुत रहे, लेकिन अहंकार और दर्प उनमें बेहिसाब रहा। ऊपर से तो ऐसे लोग निर्मल धारा की तरह रहे, लेकिन अंदर काफी पथरीले या दो-मुंह। बीएचयू वाले डॉ सरजीत सिंह डंग और चंचल सिंह में भी अप्रतिम ब्राह्मणत्व है, लेकिन ……

लेकिन टीडी पीजी कालेज के पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर अरुण कुमार सिंह, भूगोल विभाग के पूर्व अध्यक्ष श्री रामलखन सिंह, पत्रकार आनंदस्‍वरूप वर्मा, शायर अहमद निसार, शिक्षक मिर्जा दावर बेग, सुल्तानपुर से निकल कर दिल्ली में आसान लगाए श्री शेष नारायण सिंह, लखनऊ में किंग जार्ज मेडिकल कालेज वाले प्रोफेसर जीके सिंह़, भाषाविद निहालुद्दीन उस्‍मानी और गौरीगंज वाले समाज कार्यकर्ता दलजीत सिंह से मैं बहुत प्रभावित हूँ।

लेकिन इनमें सर्वोच्च स्थान पर है श्री शेष नारायण सिंह। पूरा जीवन पत्रकारिता को सौंप दिया। लिप्सा और घमंड तो रंच-मात्र नहीं। सरलता का तो साक्षात महा-वेद हैं शेष जी। उनसे कई बार कई मुद्दों पर मेरी असहमति रही, झगड़े भी हुए, मुंह-फुलव्वर भी हुआ। लेकिन संबंधों पर फेवीक्विक लगाने का दायित्व हर बार उन्होंने ही किया।

आज शेष नारायण सिंह कोरोना से पीड़ित होकर ग्रेटर नोएडा के जिम्स अस्पताल की आईसीयू में बिस्तर पर हैं। उन्हें प्लाज़्मा की जरूरत है, और मेरा ग्रुप बी-पॉज़िटिव।
मैं नास्तिक हूं। वैसे भी ईश्वर या किसी से गिड़गिड़ाने का नशेड़ी नहीं हूँ। चमत्कार पर भी विश्वास नहीं करता। हां, चाहे कुछ भी हो जाये, मैं पत्रकारिता-धर्म निभाने के लिए किसी से भी पारिश्रमिक, दान या विज्ञापन हरगिज़ नहीं लेता। जीवन-निर्वाह के लिए भिक्षा जरूर मांगता हूं, जो अधिकांश लोग देते ही नहीं। लोगों के खून और आदत में शामिल होता है कि वे रंगदारी, उगाही, दलाली और ब्लैकमेल के नाम पर तो बेहिसाब रकम देने पर तो फौरन तैयार हो सकते हैं, लेकिन किसी जन-योद्धा को एक फूटी दमड़ी तक नहीं दे सकते।

कुछ भी हो, मैं शेष जी के स्वास्थ्य को लेकर बेहद चिंतित हूँ। शेष जी के घरवालों को मैंने बता दिया है कि मेरे लायक कोई भी जरूरत समझें, तो फौरन बता दें।
मैं अविलम्ब दिल्ली की ओर कूच कर दूंगा।

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