: स्वर्ण, हीरा या मोतीचूर भस्म के बजाय धतूरा की राख भर दो : ह्यूमन और क्लीनिकल ट्रायल का लफड़ा भी नहीं रहेगा : इसको ही तो कहते हैं आपदा में अवसर खोजना :
कुमार सौवीर
लखनऊ : 56 इंची जीभ ! हे भगवान !
अरे तुम कहां हो योगी कोरोनिल बाबा ? छोड़ो यार यह सब कोरोना-फोरोना। इन मूर्खताओं के चलते में तो तुम्हारा चेहरा ही बदरंग हो गया। दाढ़ी में इतने चावल-दाल फंस चुके हैं कि पूरा मामला ही गंधाय गया है। नाई भी अब नहीं मिलता कोरोना के डर के मारे। राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे कई राज्यों में तो बवंडर खड़ा हो गया है। जिस मोदी को तुम अपना यार समझते थे, उस सरकार का आयुष विभाग तुम्हारी लंगोट खींचे ले जा रहा है। यही चलता रहा तो कुछ ही दिनों में किसी को अपना मुंह दिखाने तक को नहीं बचोगे। पतंजलि फार्मेसी का नाम उच्चारण पैंटजली फाड़ दी करना शुरू कर देंगे।
यह जीभ वाला आइडिया थामो। पैसों के लिए लपलपाती तुम्हारी जीभ से प्रेरणा लो, और लपालप जीभ तैयार करने की दवा बेचने का धंधा शुरू कर दो। इसमें किसी बीमारी का न तो कोई नाम है, न ही उससे हो सकने वाले झंझट का टंटा। बस कुछ राख जुटा लो। बताओ कि उसमें स्वर्ण-भस्म और मोती-चूर की भस्म है। मिसिरी अलग से पीस कर मिला देना कि कोई भांप पाये। भले स्वर्ण-भस्म या मोतीचूर भस्म के बजाय धतूरा की राख भर दो। हर तुम हीरा-भस्म भी कह दोगे, तो भी नो प्रॉब्लम। जो भस्म हो चुका, उसको दोबारा मूल आकार देना तो ब्रह्मा के वश की भी बात नहीं। और फिर कौन चेक करने जाएगा। यह कोई जीवन-रक्षक दवा तो है नहीं। साफ-साफ कहना यह तो सिम्पल बूस्टर ही है, ताकत को ताकतवर बनाने का नुस्खा। जैसे बादाम, या काजू। सुबह, दोपहर और शाम को नियम से एक-एक चम्मच लेने की सलाह देना। हां, भूल कर भी रात का डोज न बताना। वजह यह कि शाम को तो दारू के साथ काजू और बादाम चिखना की तरह लिया जाता है न, इसलिए।
पैकिंग के लिए कोई अच्छा सेक्सी रैपर बनवा लो, और नाम रख दो सेक्सोफुल। न पसंद आये तो जीभोलील अथवा जीभोलीन। बस स्पेलिंग पर खास ध्यान रखना। कहीं ऐसा न हो कि गलती से नाम सेक्सोनिल छप जाए। वरना फिर लेडीज कुर्ता-शलवार के साथ दुपट्टा ओढ़ कर भागते ही दिखोगे। नाम ऐसा होना चाहिए कि बस दिखने में चमाचम रहे, और रात में भी झमाझम लाइट मारता रहे। जैसे नेशनल हाईवे पर लगे बोर्ड या सड़क के किनारे दमचम करती ऑटोलाइट वाला सिस्टम। अरे हां, नेशनल हाईवे से खूब याद आया। इस भस्म का नाम रख दो कि नान-स्टॉप या फिर ब्रेकर-लेस।
और हां, आपको बताऊं कि इसके नाम पर खास ध्यान रखना। बड़ा आकर्षक होना चाहिए। फर्स्ट इम्प्रेशन विल बी द लास्ट इम्प्रेशन। इसलिए नाम बढिया रखना। सेक्सोसिन या सेक्सोफिट नाम भी मस्त चलेगा, मार्केटिंग में आसानी रहेगी और हाथोंहाथ बाजार लुट जाएगा। अश्वमेध या फिर विजयी भारत भी ठीकठाक नाम चलेगा। इसमें राष्ट्र-प्रेम और देश-भक्ति की भी बढिया टोन है। कहने को तो नाम “कील-उखाड़” भी बढिया चलेगा। अरे हिन्दी में कुछ न समझ में आये तो अंग्रेजी में “रेसकोर्स” भी खूब बिकेगा।
कोई धांसू नारा गढ़ लो। मसलन “डर से आगे है जीत” या फिर “जीभ कील हटा कर”। जैसा ही कुछ खासमखास टाइप। मतलब ऐसा ही कोई टनाटन्न नारा, और क्या। जो समझ जाए, वह खुश। और जो नहीं समझे, वह समझाते ही समझ जाए। और हां, शहद से चाट कर इस्तेमाल का फार्मूला बताना। इससे दवा के गूणार्थ छिपे हैं। जैसे घूंघट के पीछे छिपा चांद।
ह्यूमन और क्लीनिकल ट्रायल का लफड़ा भी नहीं रहेगा इस दवा में। यौन-समस्याओं वाले मरीजों का नाम वैसे भी गोपनीय रखा जाता है। दवा की सफलता ही सफलता होती है। सेक्स-रोगी का इलाज करने वाले डॉक्टर, हकीम, लुकमान, शफाखाना, जर्राह या झोलाछाप के बारे में कोई नेगेटिव चर्चा कभी सुनी है तुमने। नहीं न। आज तक तो नहीं ही सुनी। और अब अगर बाबा कोरोनिल की किस्मत ही विशेष शैली में लिखी गयी होगी, तो फिर तो उसका कोई भी इलाज तो लुकमान हकीम के पास भी नहीं है। बहुत ज्यादा दिक्कत होने लगे, तो खुद ही उस भस्म की फंकी मार कर पूरी शीशी शहद गटक जाना, और फिर शुरू कर देना इस डाल से उस तक उछलकूद वाला अपना मौलिक धंधा।
तो लाला बाबा ! यह मुफीद धंधा बनेगा, गारंटी मैं देता हूं। यह आइडिया जिस दिन भी तुमने लोगों को फंकवाना शुरू कर दिया, तो समझे कि शहरों के चौराहों पर लगे या रेलवे लाइन के दोनों ओर की दीवारों पर सफेद चूना से लिखे डॉ जैन, डॉ जुफर, हाकिम कलीम, वैद्यराज रग्घू, खानदानी शफाखाना जैसे “मसीहाओं” के विज्ञापनों वाले लोगों का धंधा ही चौपट हो जाएगा। सब के सब भूखे मरने लगेंगे और फिर उनको एकजुट कर अपना मेडिकल रिप्रेजेंट्रर बना लेना।
मान लो कि तुम वाकई भागीरथ हो। और भागीरथी को ब्रह्मा के कमंडल से निकल कर शिव की जटाओं से एक पतली ही सही, मगर भयावह प्रवाह-धार को संभाल पाना किसी सामान्य डॉक्टर, हकीम या झोलाछाप के वश की बात नहीं होगी। वह केवल बाबा लालाराम ही कर सकता है। इस नुस्खे से तुम्हारी दूकान डायरेक्ट 56 इंची हो जायेगी। कोरोना-संक्रमण और लॉक-डाउन का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव अवसाद के तौर पर उपजा है, और उसने लोगों की जीवनी, जिजीविषा और क्षमता की शक्ति को क्षीण कर लिया है। तुम्हारी भस्म इसी अवसाद और कमजोरी को दूर करेगी। आमीन।
इसी को ही तो हमारे मोदी जी ने आपदा में अवसर खोजना जैसा नारा गढ़ा है।
( और आखिर में जीभ की यह खास जानकारी यह कि फोटो लिक्खाड़ पत्रकार पवन सिंह ने भेजी है: संपादक )
बेहद मनमोहक प्रस्तुति