: लाश गायब कर दो, योगी खफा हो जाएंगे, क्राइम छुपाने के लिए लाशें हजम : पुलिस की फंस गयी पूंछ, अब चिल्लाने लगे सीपों-सीपों : कासगंज और जौनपुर की पुलिस में समानता। दोनों ही कामचोर और झूठे : कानून के रखवालों ने ही कानून का शीलभंग कर डाला : एक ही घटना में एक का पोर्स्टमार्टम, दूसरे का नहीं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : जब आपकी कामचोरी, हरामखोरी और सरासर झूठ का खुलासा आम आदमी के सामने होने लगे, आपकी किरकिरी हो जाए, पता चल जाए कि आपकी खाल उधेड़ दिये जाने की शामत बस आने ही वाली है, ऐसी हालत में सबसे तरीका तो यह है कि आप एक फर्जी कहानी सुनाना शुरू कर दीजिए। ऐसी कहानी कि सुनने वाले चक्कर-घिन्नी हो जाएं। आपको लगे कि आपके पैरों की जमीन ही खिसक गयी। बशर्ते कहानी ऐसी हो कि सुनने वाले की छुर्र से छुच्छी निकल जाए, रोंगटे खड़े हो जाएं, तेजी से दिल धड़कने लगे, और अंग-प्रत्यंग से आवाज आना शुरू हो जाए पुक्क से। असहाय और हताश हो कर आप कहानी वाले को अपना खुदा समझने लगें, और उसके चरणों में लम्बलेट हो जाएं। सांप भी मर जाए, और लाठी पर शिकन भी न आये।
हालांकि यूपी में जमीन पर उतर कर अपना काम करने की औकात ही नहीं रह गयी है, ऐसा संदेश पूरे प्रदेश की फिजां में किसी सड़ते तालाब में पड़े तेल की बूंद की तरह पूरे तालाब को घेरने लगा है। अपनी ही करतूतों के चलते पैदा हुई ऐसी हालतों से निपटने के लिए फर्जी कहानी सोचने, गढ़ने सुनाने की एक नयी परम्परा अधिकांश जिलों के पुलिस कप्तानों ने आत्मसात कर ली है। तरकीब धांसू है और सुनाने-सुनने वालों को रोमांचित कर देती है। हर जिले में दलालनुमा पत्रकारों की टीम तो पुलिसवालों ने खूब खडी कर ली है, किसी माहिर नौटंकीबाज की तरह वे कप्तान के सामने मुंह बाये बैठे रहते हैं, मानो उनके तोते ही उड़ चुके। ट्रिक इतनी जबर्दस्त और असरकारक है, कि अगर कोई तनिक भी ना-नुकुर, इफ-ऐंड-बट जैसे सवाल करना चाहे तो मौके पर ही ऐसे लोगों को जमकर डांट देते हैं ऐसे दल्ले पत्रकार। मुस्कुराते हुए कृष्ण की तरह विजयी भाव में कप्तान साहब अपनी मूंछ वाले खाली स्थान पर उंगलियां फेरा करते हैं।
यह ताजा फर्जी कहानी के किस्सो-गो हैं एक पुलिस कप्तान साहब। इलाका है जौनपुर। अपने इलाके में उन्होंने खूब कामचोरी की, हरामखोरी की, काम को ठेंगा पर रखा। लेकिन एक दिन उनकी करतूतों का खुलासा होना शुरू हो गया। छह नवम्बर-21 की सुबह चंद घंटों पहले इस दुनिया को मार डालना, उसे छुपाना और पूरी पुलिस, सरकारी और प्राइवेट डॉक्टरों-कर्मचारियों की घिनौनी साजिश और जिले के आला अफसरों की खामोशी के सहारे उस नवजात बच्ची को नदी में हमेशा-हमेशा के लिए मौत दे देना की घटना ने जिले की पुलिस और प्रशासन के अफसरों के चेहरे पर कालिख पोत दिया। मगर अपनी करतूत को छिपाने के लिए पुलिस ने उस हादसे को अपने रजिस्टर पर दर्ज ही नहीं किया।
लेकिन पाप के घड़े फूटने ही लगे थे। जाहिर है कि अचानक ताबड़तोड़ पुलिस के कपड़े फटने लगे। अपने नंगे होते बदन को ढांपने के लिए इन कप्तान साहब ने पहले तो आफत से मुंह ही मोड़ना शुरू कर दिया। लेकिन जब सच की तौर पर जब लाशें उनकी वर्दी पर चिपकने लगीं, तो उन्होंने एक ऐसी फनफनाती फर्जी कहानी गढ़ दी कि पूरा जिला ही नहीं, बल्कि आसपास के कई अंचल तक दहल गये।
कप्तान तो रेशम के कोकून की तरह ही रहता है, उसे अपने सरकारी मकान से बाहर निकलना ही पसंद नहीं। वह अपने दफ्तर ही नहीं आता। उसका दर्द यह है कि जब उसे योगी, अवनीश अवस्थी और मुकुल गोयल ने पुलिस अधीक्षक क्यों बनाया। इसलिए वह सोशल मीडिया तक में खुद को सरेआम वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक लिखता है, ठोंकता है। लेकिन अपने घर से बाहर नहीं निकलता। डीएम में इतना दम ही नहीं, कि वह कप्तान की करतूत को शासन तक पहुंचाये।
बहरहाल, एसपी अजय साहनी की एवज में पुलिस की ओर से वाह्य-गमन करते हैं पुलिस अधीक्षक डॉ संजय कुमार। उन्होंने अपने उड़ते जा रहे तोतों की ओर से नागरिकों का ध्यान हटाने के लिए एक दिन प्रेस-कांफ्रेंस किया। दावा किया कि नकली नोटों का बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार बन चुका है जौनपुर। यहां नेपाल से सीधे नोट लाकर खपाये जाते हैं। संजय कुमार ने दस लोगों को पकड़ा और सौ-सौ नोटों वाली 74 हजार की नकदी बरामद की। लेकिन इस पूरे दौरान दो अति-महत्वपूर्ण बातें भूल गये। यह कि अगर यह नेपाल की मदद से अन्तर्राष्ट्रीय धोखाधड़ी का धंधा है तो उसकी जानकारी एटीएस और आईबी को क्यों नहीं दी गयी।
वजह यह कि अगर ऐसा धंधा नेपाल से दूर जौनपुर में हो रहा है, तो नेपाल से सीमांत जिलों में तो यह खूब फल-फूल रहा होगा। जौनपुर के केवल तीन पुलिस थानों में यह बरामदगी बतायी का किस्सा चिल्ला रहे हैं पुलिसवाले। अरे बाकी सीमांत जिलों और जौनपुर के बाकी 24 थानों में में क्या ऐसे धंधेबाज खामोश बैठे हुए हैं, यह तक जस्टीफाई करने की जरूरत नहीं समझी इन एनकाउंटर-स्पेशलिस्ट पुलिसवालों ने।
लेकिन सूत्र बताते हैं कि ऐसा हुआ ही नहीं, एक फर्जी खबर प्लांट कर दी संजय कुमार ने, ताकि नागरिकों का ध्यान-भंग हो जाए। क्योंकि अगर आईबी-एटीएस को खबर मिल जाती तो यह फर्जी मामला होकर पुलिस की किरकिरी हो जाती। कौन साबित कर पाता कि विदेश से आने वाले नोट 100 के हैं। कानून के पालनवारों को इतनी भी तमीज नहीं कि भीड़ लगाते वक्त मास्क पहनना जरूरी होता है। ऐसा न करने पर बड़ा जुर्माना की प्राविधान है। उधर जिन लोगों को अपराधी बनाया गया है, वह किसी इज्जतदार और कानून का सम्मान करने वाले नागरिक हैं, जो सब के सब बाकायदा मास्क पहने हैं।
उधर अभी चार दिन पहले ही मडि़याहूं में एक विस्फोट की घटना को पुलिस ने दबाने की पूरी साजिश की। संशय के बावजूद पुलिस ने घटनास्थल की तलाशी करने की जरूरत नहीं समझी। लेकिन करीब 14 घंटों बाद उसी मलबा के नीचे से दस बरस का एक बच्चे की लाश मिल गयी, तो पुलिस के तोते उड़ गये।
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सूत्र बताते हैं कि आनन-फानन बच्चे पर दबाव बनाया गया और लाश को बिना लिखा-पढ़त के ही दफना दिया गया। इस सफलता पर पुलिस अपनी पीठ ठोंक ही रही थी कि उसके दो दिन बाद ही घटना के दिन घायल एक महिला ने दम तोड़ दिया। चूंकि यह महिला घायल अवस्था में जिला अस्पताल जा चुकी थी और उसका तस्करा अस्पताल में हो चुका था, ऐसी हालत में पुलिस ने मजबूरन उस लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजा। लेकिन अब पुलिस को समझ ही नहीं हो रही है कि वह इस हादसे में कितने लोगों की लाश बतायें। दो लाशें बताते हैं तो इसका जवाब कौन देगा कि पहली वाली लाश को पोस्टमार्टम के लिए क्यों नहीं भेजा गया। और अगर यह बताते हैं कि एक लाश ही मिली है, तो पहली वाली लाश को वे किस खाते में दर्ज करेंगे। यह भी भारी दिक्कत है कि इस हादसे में पहली लाश कौन है, जिसका पोस्टमार्टम नहीं हुआ, और कौन सी लाश है जिसके पहली की लाश के बिना ही उसका पोस्टमार्टम कर डाला पुलिसवालों ने।