: चिल्लूपार विधायक के तौर पर अनूठे तो रहे ही हैं विनय तिवारी, मित्रता में भी बेमिसाल : कलेक्ट्रेट पर अपनी दावेदारी का परचा दाखिल करते वक्त उमड़ा जन-समुद्र जबर्दस्त लोकप्रियता और लोक-प्रतिबद्धता का प्रतीक : ब्रजेश पाठक हों, सरोज तिवारी हों या मनोज, इनकी राजनीतिक डगर थी विनय के आशीर्वाद से :
कुमार सौवीर
लखनऊ : “तुम्हारा स्वागत है। आओ, खुशी-खुशी आओ। आ जाओगे, तो बहुत अच्छा लगेगा। कई दिन बाद तुमसे मुलाकात भी हो जाएगी। वैसे यहां पूरी तैयारी है ही। अरे विधायक का पर्चा तो दाखिल हो ही जाएगा। पूरे तामझाम के साथ और पूरे नियम-कानून के दायरे में होगा। लेकिन सवाल तो यह है कि इसके लिए तुम उतनी दूर क्यों आना चाहते हो। तुम्हारा स्वास्थ्य भी आजकल गड़बड़ है। और फिर 11 तारीख को तुम्हारा जन्मदिन भी है। बच्चों के साथ रहो। परेशान मत हो। वैसे तुम्हारी इच्छा।”
किसी व्यक्ति को आंकना, तौलना और समझना चाहते हों, तो क्या-क्या तरीका हो सकता है इसके लिए। जाहिर है कि उसका व्यवहार, आपके प्रति उसकी संवेदना, सतर्कता, आपकी समस्याओं पर उसकी गहरी नजर और उसके स्वास्थ्य समेत उसके निजी संबंधों के प्रति उसकी समझ। यहां तक भी कि आपका जन्मदिन जैसी जानकारी भी उसको पता हो, याद हो। वह भी चुनाव प्रचार जैसे कठिन, मेहनती और विषम परिस्थितियों में भी उसे अपने मित्र की सतर्क नजर हो।
यह हैं विनय शंकर तिवारी। सन-84 से हम मित्र हैं, जब विनय लखनऊ विश्वविद्यालय में स्नातक की पढ़ाई कर रहा था, जबकि मैं रिपोर्टर था लखनऊ यूनिवर्सिटी और उसके संबद्ध महाविद्यालयों में शैक्षिक, प्रशासनिक व छात्र राजनीति के क्षेत्र में। विनय को राजनीति में कोई खास रुचि नहीं थी, लेकिन लखनऊ विश्वविद्यालय से लेकर लखनऊ और दिल्ली तक की राजनीति में खासी जानकारी और पकड़ भी थी। चाहें वह सरोज तिवारी रहे हों, ब्रजेश पाठक रहे हों, या फिर मनोज तिवारी जैसे छात्रराजनीति में अपना ढीहा खोजने वाले और एक मुकाम तक पहुंचने वाले लोग हों, उन सब की उस दौर में विनय शंकर तिवारी के आशीर्वाद के बिना राजनीतिक डगर मजबूत हो नहीं सकती थी। और फिर राजनीति ही क्यों, बाद में भी उनके कई मित्रों के निजी और व्यावसायिक मुकाम विनय तिवारी के बिना असम्भव ही रहे।
बाद में विनय ने राजनीति में प्रवेश किया और अब आज उन्होंने गोरखपुर के चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र से दोबारा अपना पर्चा दाखिल कर दिया है। जैसा कि खबरें पहुंची हैं, विनय तिवारी का यह चुनाव पर्चा दाखिल करने के दौरान कलेक्ट्रेट में जबर्दस्त और अभूतपूर्व उत्साह और भीड़ थी। चिल्लूपार-बड़हलगंज से लेकर गोरखपुर तक तो खैर बेहिसाब उत्साहित नागरिक उमड़े थे, जबकि गोरखपुर जिलाधिकारी कार्यालय के आसपास की सड़कों पर लोगों का जन-समुद्र हिलोरें ले रहा था।
नौ फरवरी की शाम करीब पांच बजे मैंने विनय शंकर तिवारी को फोन किया। बातचीत का लहजा पुराने अंदाज में। उत्साह से लबरेज, मित्रता की गाढ़ी चाशनी से सराबोर। फोन पर ही सुनायी पड़ रहा था कि विनय तिवारी के आसपास लोगों का भारी हुजूम है। शोर, नारेबाजी, बातचीत और गाडि़यों की अवाजें साफ सुनायी पड़ रही थीं। चूंकि प्रचार का दौर है, इसलिए मैंने आनन-फानन और दो-टूक बात की। मैंने कहा कि सोच रहा हूं कि तुम्हारे चुनाव में परचा भरने के दौरान मैं भी गोरखपुर में मौजूद रहूं। पूरे तपाक स्वर में विनय शंकर तिवारी की आवाज आयी:- “तुम्हारा स्वागत है। आओ, खुशी-खुशी आओ। आ जाओगे, तो बहुत अच्छा लगेगा। कई दिन बाद तुमसे मुलाकात भी हो जाएगी। वैसे यहां पूरी तैयारी है ही। अरे विधायक का पर्चा तो दाखिल हो ही जाएगा। पूरे तामझाम के साथ और पूरे नियम-कानून के दायरे में होगा। लेकिन सवाल तो यह है कि इसके लिए तुम उतनी दूर क्यों आना चाहते हो। तुम्हारा स्वास्थ्य भी आजकल गड़बड़ है। और फिर 11 तारीख को तुम्हारा जन्मदिन भी है। बच्चों के साथ रहो। परेशान मत हो। वैसे तुम्हारी इच्छा।”
आपको बता दूं कि पिछले करीब सात महीना पहले मुझे लीवर की गम्भीर संक्रमण हो गया था। बीमारी की हालत यह थी कि आठ दिनों के भीतर ही मेरा वजन 12 किलो कम हो गया था। जाहिर है कि मेरा शरीर यह हमला बर्दाश्त नहीं कर पाया और मैं अचेत हो गया। जब होश आया तो पता चला कि स्मृति और आवाज की क्षमता पर भी गहरा आघात हुआ है। घरवाले मुझे सीतापुर रोड के सेवा अस्पताल में ले गये, जहां एक दिन में 17 हजार रुपया तो वसूल लिया गया, लेकिन इलाज के तौर पर कुछ भी नहीं हुआ। इतना ही नहीं, अल्ट्रासाउंड के लिए मुझे एम्बुलेंस पर अलीगंज ले जाया गया था। वह तो बाद में पता चला कि यह अस्पताल नहीं, बल्कि विशुद्ध आयुर्वेदिक फार्मेसी और नर्सिंग का अड्डा है, जिसे अस्पताल का नाम देकर मरीजों से उगाही हो रही है। शर्मनाक बात तो यह है कि यह अस्पताल के मालिक हैं डॉ नीरज बोरा, जो भाजपा के विधायक हैं।
बहरहाल, खबर पाते ही विनय तिवारी सेवा अस्पताल पहुंचे। जब देखा कि इस अस्पताल में कुछ नहीं हुआ, तो उन्होंने केके अस्पताल के मालिक से बातचीत की और मुझे आनन-फानन उनके अस्पताल में ले जाया गया। जहां कई दिनों तक मैं भर्ती रहा। हालांकि विनय तिवारी को दिल्ली जाना था, लेकिन केवल मेरी बीमारी के चलते विनय ने अपना कार्यक्रम दो दिन आगे बढ़ा लिया। वैसे भी, मेरी बीमारी का मामला हो, या फिर मेरी बेटियों का विवाह, विनय शंकर तिवारी हमेशा मेरे साथ रहे हैं। और मैं समझता हूं कि वैसे मेरे साथ जैसा व्यवहार विनय शंकर तिवारी करते हैं, मैं समझता हूं कि पूरा चिल्लूपार और गोरखपुर के साथ ही विनय करते हैं। अगर ऐसा नहीं हुआ होता, तो चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र से विनय शंकर तिवारी को विधायक बनाने का फैसला यहां के मतदाता नहीं करते।
अब इससे अलग बात चिल्लूपार चुनाव पर विनय शंकर तिवारी की दावेदारी का। आज जिस तरह विनय तिवारी ने जिलाधिकारी कार्यालय पहुंच कर विधानसभा पर अपनी दावेदारी का परचा दाखिल किया है, वह उनकी जबर्दस्त लोकप्रियता और जन-प्रतिबद्धता का प्रतीक ही है। लेकिन इसके पहले आपको बता दें कि सन-22 के चुनाव में गोरखपुर की सभी सीटें योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई हैं। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही जिस तरह से पुलिस ने हाता में धावा बोला था, यह दर्शाता है कि चिल्लूपार को लेकर योगी की मंशा क्या है। गौरतलब है कि चिल्लूपार गोरखपुर की यह अकेली विधानसभा सीट है, जहां भाजपा अब तक जीत नहीं पाई है। आपको बता दें कि 4 लाख 31 हजार वोटरों वाले चिल्लूपार विधानसभा सीट पर ब्राह्मण वोटरों की तादात एक-चौथाई यानी लगभग एक लाख पांच हजार है। दलित और निषाद वोटर भी निर्णायक स्थिति में हैं।