: देश में राहुल बजाज, लखनऊ में थे राकेश गुप्ता ईमानदारी की मिसाल : व्यवसायी और उद्योगपति में बड़ा फर्क समझ गये यह दोनों महारथी : राहुल ने राष्ट्रीय समारोह में साफ कहा कि उद्योगपति लोग अब मोदी-सरकार से डरते हैं : लखनऊ में ह्वाइट-मनी के मामले में बेमिसाल थे राकेश गुप्ता :
कुमार सौवीर
लखनऊ : ऐसे वक्त में जब अडाणी और अम्बानी पर चारों ओर से उंगलियां दिखायी जा रही हों, भाजपा की केंद्रीय सरकार भ्रष्टाचार और व्यवसायियों पर दिल खोल कर रास्ता खोल बैठी हो, ऐसे में राहुल बजाज की मृत्यु देश के उद्योग-समूह में ईमानदारी के चमकते सूरज के डूब जाने जैसी है। अभी चंद घंटों पहले ही राहुल बजाज की धड़कनें हमेशा-हमेशा के लिए थम गयी हैं, जिसने अपने स्कूटर उद्योग के हमारा बजाज की सुरलहरियां किसी नेशनल-एंथम की तरह लोकप्रिय कर दिया था। राहुल बजाज ने अपने कारोबारी दक्षता से अपने ग्रुप बजाज को देश की ऑटो इंडस्ट्री का सिरमौर बना दिया था। ऐसे वक्त में जब देशी और विदेशी व्यवसाय-जगत में होड़ मची हो, कि वह भाजपा सरकार के देश के अर्थ-जगत पर बेमुरव्वती से लाल गलीचा बिछाने को तत्पर हों, राहुल बजाज ऐसे इकलौते उद्योगपति थे, जो ख़ुद को सत्ता विरोधी कहते थे। लंबे समय तक देश के सबसे पुराने औद्योगिक घरानों में से एक बजाज ग्रुप का नेतृत्व राहुल बजाज ने किया। वह उद्योग जगत की बेबाक आवाज़ के तौर पर जाने जाते थे। खरी-खरी बोलने में विश्वास करते थे। 30 जून, 1938 को कोलकाता में जन्मे पद्मश्री राहुल बजाज और राज्यसभा सांसद भी रहे।
राहुल बजाज अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते थे। कॉरपोरेट इंडिया की चिंता हो या देशहित से जुड़ा मुद्दा उन्होंने कभी भी खुल कर बोलने से गुरेज नहीं किया. ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ की एक ख़बर के मुताबिक राहुल बजाज ने इकोनॉमिक्स टाइम्स की ओर से आयोजित एक समारोह में कहा था कि वह जन्मजात सत्ता-प्रतिष्ठान विरोधी हैं. बीजेपी, एनसीपी और शिवसेना के समर्थन से वर्ष 2006 में राहुल बजाज निर्दलीय सदस्य के तौर पर राज्यसभा पहुंचे. लेकिन उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह के सामने कहा, “लोग (उद्योगपति) आपसे (मोदी सरकार) डरते हैं। जब यूपीए-2 की सरकार थी, तो हम किसी की भी आलोचना कर सकते थे। पर अब हमें यह विश्वास नहीं है कि अगर हम खुले तौर पर आलोचना करें तो आप इसे पसंद करेंगे।”
राहुल बजाज का पूरा जीवन ही चुनौतियों को जीतने में बीता। बचपन में क्लास रूम से निकाले जाने पर उन्होंने अपने टीचर से साफ कह दिया था कि ‘यू जस्ट कान्ट बीट अ बजाज’। राहुल बजाज की फितरत किसी के अधीन काम करने वाली नहीं रही। राहुल बजाज व फिरोदिया परिवार में कारोबार के विभाजन को लेकर विवाद हुआ। सितम्बर 1968 में लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद फिरोदियाज को बजाज टेम्पो मिला और राहुल बजाज बजाज ऑटो के चेयरमेन व मैनेजिंग डायरेक्टर बने। उनके तब प्रतिस्पर्धी थे- एस्कार्ट, एनफील्ड, एपीआई, एलएमएल व काइनेटिक। बिजनेस-स्टैंडर्ड के मुताबिक 1970 के दशक में जब इटली की कंपनी पियाजियो ने बजाज का लाइसेंस रीन्यू ने नहीं किया तो उन्होंने अपने ब्रांड चेतक और सुपर के तहत स्कूटर बनाना शुरू किया। यहां भी उन्हें खासी चुनौती मिली। लाइसेंस की वजह से सत्तर-अस्सी के दशक में स्कूटर बुक कराने के बाद डिलीवरी के लिए वर्षों इंतजार करना पड़ता था। राहुल बजाज इसके ख़िलाफ़ बोले। उन्होंने लाइसेंस-परमिट सिस्टम भी विरोध किया। बोले कि, “अगर देशवासियों की ज़रूरत का सामान बनाने के लिए मुझे जेल भी जाना पड़ा तो जाऊंगा.”
चुनौती तो निजी जीवन में भी हुई, जब सन 1961 में राहुल ने रूपा से लव मैरिज कर दी, जो भारत के पूरे मारवाड़ी-राजस्थानी उद्योगपति घरानों में पहली लव-मैरिज थी। राहुल व्यापारी थे, जबकि रूपा महाराष्ट्रीय ब्राह्मण थी। दोनों परिवारों में तालमेल बैठाना थोड़ा मुश्किल था, पर रूपा से राहुल को काफ़ी कुछ सीखने को मिला।
लेकिन राहुल बजाज की तरह की ही तरह का एक व्यक्ति था राकेश गुप्ता। राहुल बजाज की बजाज-स्कूटर्स की डीलरशिप राकेश की कम्पनी के पास थी। हलवासिया में डाक-मुख्यालय से सटी इमारत में ही हुआ करता था कॉमर्शियल मोटर्स। दरअसल, लखनऊ के प्रसिद्ध भार्गव परिवार ने 1946 में नवीनता के नाम से एक सिनेमाघर खोला था। इस थिएटर को खोलने के लिए हिंदुस्तान कमर्शियल बैंक से कर्ज लिया गया और थिएटर चलाने का जिम्मा दिया गया दिल्ली के गुर नारायण और कमल नारायण एंड कंपनी को। अब कारणों का तो पता नहीं, लेकिन इस कर्जा का भुगतान न होने पर बैंक ने नवीनता की नीलामी कर दी। लखनऊ के दिग्गज व्यवसायी थे हुकुम चंद गुप्ता, उन्होंने थिएटर को खरीद लिया। मगर दिल्ली की कंपनी से झंझट हुआ तो सन 1970 में हुकुम चंद गुप्ता के बेटे राकेश गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमा लड़ा और जीत हासिल की। सितंबर 1981 में इसे फिर से खोल दिया गया।
करीब पचास साल पहले की बात है। कम मूल्य और कम रखरखाव के साथ छोटे परिवारों के लिए बेहद उपयुक्त बजाज ब्रांड वेस्पा स्कूटर बहुत जल्दी लोकप्रिय हो गए। सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कि 70 और 80 के दशक में बजाज स्कूटर खरीदने के लिए लोगों को 15 से 20 साल इंतजार करना पड़ता था। इतना ही नहीं, बजाज का चेतक स्कूटर हासिल कर पाना तो केवल विदेशी मुद्रा से ही मुमकिन था। नतीजा यह हुआ कि कई लोगों ने तो उन दिनों बजाज स्कूटर के बुकिंग नंबर बेचकर लाखों कमाए और घर बना लिए। राकेश गुप्ता यूपी के सबसे बड़े डीलर थे। वे चाहते तो बजाज के स्कूटरों की ऐसी मारामारी में वे बेशुमार रकम उगाह सकते थे, लेकिन राकेश ने ऐसा किया नहीं। अभी सन-2000 तक भी राकेश गुप्ता के बारे में उद्योग, व्यवसाय और नौकरशाही में खुलेआम चर्चाएं हुआ करती थीं कि लखनऊ में सबसे ज्यादा कानूनी धन यानी ह्वाइट-मनी अगर किसी के पास है, तो उस शख्स का नाम है राकेश गुप्ता।
राकेश को पहचान थी व्यक्तियों की। कई बड़े पत्रकारों के साथ राकेश गुप्ता के घनिष्ठ संपर्क थे। लखनऊ के एक पत्रकार को जय प्रकाश शाही ने एक स्कूटर किश्तों में दिला दिया था। लेकिन इन संपादक ने उसके बाद हजरतगंज की ओर जाना ही बंद कर दिया, जहां कामर्शियल मोटर्स का दफ्तर था। आज वह पत्रकार एक अखबार में संपादक की कुर्सी पर बैठे हैं। ऐसी बेहिसाब घटनाएं राकेश गुप्ता के साथ रही हैं, लेकिन कभी भी राकेश गुप्ता ने उसका जिक्र नहीं किया। वह तो एक बार जय प्रकाश शाही ने यह खुलासा मुझसे लखनऊ क्लब में कर दिया।
जवाहर भवन और दूरदर्शन के ठीक दूसरी सड़क पर जिस विशालकाय इमारत है, वह राकेश गुप्ता का ही है। राकेश गुप्ता ने एसआरजी ग्रुप के नाम से कई व्यवसायिक गतिविधियां शुरू की थीं, जिसमें ऑटोमोबाइल्स, होटल, शिक्षा, मनोरंजन और रियल एस्टेट वगैरह खास है।
सन-2015 में राकेश गुप्ता का देहावसान हो गया।