पुलिसवालों ! हमारे दर्द-तड़प पर तुम्‍हारा पिशाच-नृत्‍य

बिटिया खबर

: अमित तिवारी हत्‍याकांड पर एसआईटी रिपोर्ट से साबित हुआ कि तुम हत्‍यारे हो : जब भी तुम पर हमला हुआ, जनता तुम्‍हारे साथ रही। मगर जब हम पर हमला हुआ, तुम हमारे खिलाफ छुरा ही भोंकते रहे : आम आदमी पर तो किसी वहशी जानवर की तरह टूट पड़ते हैं पुलिसवाले : बड़ा दारोगा-एक :

कुमार सौवीर
लखनऊ : आज हमारी बातचीत का विषय एपल का मतलब सेब नहीं बल्कि एपल मोबाइल और कम्‍प्‍यूटर्स कंपनी को लेकर है, जहां के रीजनल मैनेजर विवेक तिवारी की विगत महीनों लखनऊ के गोमती नगर में दो पुलिसवालों ने उस वक्‍त गोली मार कर हत्‍या कर डाली थी, जब वे अपने कार्यालय में देर रात आयोजित एक समारोह से लौट रहे थे। राजधानी की पुलिस के इन “जांबाज” हत्‍यारों ने इन दोनों की कार को गोमती नगर विस्‍तार क्षेत्र में देर रात रोका और उगाही को लेकर उन पुलिसवालों ने विवेक को सीधे चेहरे पर सरकारी पिस्‍तौल से निशाना साथ कर गोली मारी थी। कल पुलिस की विशेष जांच दल यानी स्‍पेशल इन्‍वेस्टिगेशन टीम ने इस मामले में इन पुलिसवालों को दोषी ठहरा दिया है। पुलिस की इस उच्‍चस्‍तरीय टीम ने पाया है कि यह हत्‍याकांड था और इसके लिए सरकारी पिस्‍तौल हासिल सिपाही प्रशांत चौधरी जैसा एक हत्‍यारा ही जिम्‍मेदार था।
यानी एसआईटी की इस जांच से निकले नतीजे तो खैर अपनी जगह पर मौजूद हैं, लेकिन इस हादसे के बाद पुलिसवालों ने जो आपराधिक हरकतें कीं, उससे पुलिस के क्रूर चेहरे पर एक अमिट घिनौनी कालिख का पर्दाफाश तो ही गया। पूरा का पूरा पुलिस महकमा ही विवेक हत्‍याकांड के जिम्‍मेदार हत्‍यारे सिपाही प्रशांत चौधरी को बचाने की कवायद में जुट गया।
अब जरा उन हादसों पर एक नजर डालिये, जिसमें पुलिसवालों पर जब भी बदमाशों-हत्‍यारों ने हमला किया, तो पूरे देश की जनता पुलिस के पक्ष में साफ खड़ी रही। प्रतापगढ़ में जियाउल हक के कत्‍ल का मामला रहा हो, बुलंदशहर में इंस्‍पेक्‍टर राठौर की हत्‍या रही हो, या फिर ऐसा कोई भी हादसा रहा हो जिसमें पुलिसवालों पर गुंडों ने जानलेवा हमला किया हो, ऐसे हर मामले में पुलिस की पीड़ा पर आम आदमी ने मलहम लगाया, अपनी सारी पीड़ाएं भूल कर ऐसे हादसों और हमलावरों पर अपना विरोध दर्ज कराया है। हर ओर यही आर्तनाद हुआ है कि ऐसे हमलावरों पर कड़ी सजा होनी चाहिए। इसके लिए आम आदमी ने मीडिया से लेकर सड़क-चौराहों पर प्रदर्शन किया है, विधानसभा से लोकसभा तक पुलिस पर हुए हमलों का कड़ा विरोध किया गया है।
लेकिन शर्मनाक बात तो यह है कि पुलिस ने जब भी आम आदमी पर हमला किया है, उस वक्‍त कभी भी पुलिस संगठन ने अपनी प्रतिबद्धता आम आदमी के प्रति नहीं दिखायी है। बल्कि किसी नृशंस और हत्‍यारे अपराधियों के संगठित अपराधियों के चरित्र वालों के हुजूम की तरह सारे पुलिसवाले हमेशा आदमी के खिलाफ एकजुट हो गये। ऐसे मामलों में पुलिसवालों ने कभी सामूहिक हत्‍याकांड कर डाला तो कभी खाकी अपराधियों के पक्ष में परेड करते हुए उन्‍होंने अपने आपराधिक मनोवृत्ति और घिनौने चरित्र का खुलेआम प्रदर्शन कर डाला। बाहों पर काली पट्टियां बांधीं, दोषी साथी पुलिसवाले के साथ नारेबाजी की, प्रदर्शन किया और उस अपराधी के पक्ष में जितना भी हो सकता था, पेशबंदी की। गवाहों तो तोड़ा, सुबूतों के साथ आपराधिक छेड़छाड़ की और अपराधियों का महिमामंडन भी किया।
मेरे पास ऐसे हादसों का पूरा सिजरा मौजूद है, जब पुलिसवालों ने आम आदमी के खिलाफ साजिशें बुनीं और उसे अमली जामा पहनाने के लिए आम आदमी को मौत के जिकंजे में जकड़ दिया। कहने की जरूरत नहीं कि उनकी ऐसी साजिशें किसी मंजे हुए पेशेवर हत्‍यारे को भी मात देती रहीं। ऐसे मामलों में पुलिसवालों ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि वे भी आम आदमी से ही हैं। बल्कि इससे भी आगे बढ़ कर इन पुलिसवालों ने आम आदमी को अपने और अपने आकाओं को खुश करते हुए अपने दायित्‍वों और अपनी नैतिकता तक को अपने बूटों से रौंद डाला। (क्रमश: बड़ा दारोगा-दो)

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बड़ा दारोगा

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