कफन पर भी छीनाझपटी, अघोर-समुदाय पर हमला

बिटिया खबर
: लगातार सिमटता जा रहा है अघोरपंथ, कहीं लूट तो कहीं अवैध कब्‍जे : प्रचीनकाल से ही श्‍मशान-घाट रही है अघोरियों की साधना-भूमि, मौका मिलते ही वैष्‍णवों हड़प लिया : अघोरपंथी भगवान राम अवधूत ने समाज-कल्‍याण के लिए सर्वेश्‍वरी समूहों का निर्माण किया था :

कुमार सौवीर
बनारस : अघोरी, यानी ऐसा शख्‍स जिसके पास केवल न लोटा होता है और न ही लंगोट। अघोरी पूरे समाज के कल्‍याण के लिए ही साधना करते हैं, उन्‍हें आशीर्वाद देते रहते हैं। लेकिन यह लोग समाज से कुछ मांगते नहीं। जिसे जो चाहिए, खुद दे जाए। मगर इसके बावजूद समाज इस समुदाय को अपनी घृणा का निशाना बनाये रखता है। अघोरी नाम सुनते ही लोग ऐसा मुंह बनाते हैं, मानो कोई बहुत पाप सुन लिया हो। अघोरी को छू लेना किसी अपराध से कम नहीं माना जाता है। उधर हकीकत यही है कि अघोर पंथी भगवान राम अवधूत तथा उनके शिष्‍यों गौतम और सिद्धार्थ ने अघोरंपथ को समाज-कल्‍याण के लिए उन्‍हें आपस में जोड़ने के लिए सर्वेश्‍वरी समूहों का निर्माण किया था।
अघोरपंथियों की साधना-भूमि माना जाता है श्‍मशानघाट। लेकिन अब सफेदपोश लुटेरों ने उनकी इस साधना-स्‍थली तक को कब्‍जाने की साजिशें बुननी शुरू कर दी है। छीनाछपटी तो अघोरियों के कफन तक पर चल रही है। ताजा घटना है जौनपुर के रामघाट श्‍मशानघाट में अघोरियों की गहरी सुरंग और उनके शोभनाथ आश्रम की। यह सुरंग करीब बीस फीट गहरी थी, जिस पर अब देवी-देवताओं की प्रतिमा स्‍थापित कर वहां भजन-कीर्तन शुरू कर दिया गया है। और शोभनाथ मंदिर पर वैष्‍णवों ने कब्‍जा कर लिया है। यह लोग यहां फिजाओं में अब आक्रामक गालियां बरसाते हैं, तथा जै-श्रीराम के झंडे गाड़ रहे हैं।
जी हां, शर्की सल्‍तनत की राजधानी रह चुका है जौनपुर। कान्‍यकुब्‍ज यानी कन्‍नौज से लेकर पूरे बंगाल तक शर्की डायनेस्‍टी की तूती बजती रही है। भाषा, स्‍थान, संगीत के मामले में यह इलाका पूरा बेमिसाल रहा है। जिनमें सबसे ऊपर दर्जा है विभिन्‍न विचारधाराओं का। चहारसू, सराय, और पड़ाव जैसे शब्‍द ही नहीं, बल्कि यहां की पुरानी इमारतें उस दौर की बड़े पहचान रही हैं। भाषा और बोली के मामले में भी लखनऊ के बाद जौनपुर को ही अहमियत दी जाती है। इसके बावजूद कि यह पूरा इलाका आजमगढ़ और बनारस, इलाहाबाद और अवधी बोली का संगम भी बना हुआ है। यहां के जलालपुर स्थित बजरटीला की पहचान बौद्ध विचारधारा के बज्रयानी मत का प्रमुख हिस्‍सा माना जाता है। विभिन्‍न लाजवाब पुल, मंदिर, किला, अटाला और विभिन्‍न प्रमुख स्‍थान आज भी शिराज-ए-हिन्‍द की सरजमीं पर अपनी श्रेष्‍ठतम और अनूठी पहचान रखे हुए हैं।
अघोरियों की इन साधना-स्‍थलियों पर कब्‍जे पर हमने एक वीडियो तैयार किया है।

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कफन पर भी छीनाछपटी, अघोर-समुदाय पर हमला

लेकिन खुद को मूली, मक्‍का और मक्‍कारी के सजीव वंशज मानने वालों ने यहां के एक ऐसी पुरानी विचारधारा का गला दबोच कर उसे मार डाला है, जो अपने आप में एक लाजवाब और जुझारू संस्‍कृति मानी जाती थी। और यह बेरहम कत्‍ल हुआ है यहां के श्‍मशानघाट पर। हम बात कर रहे हैं अघोर पंथ की। सदियों पुरानी परम्‍पराओं के तहत अघोर साधना हुआ करती थी। इसके लिए विभिन्‍न प्रांतों में अघोर अनुष्‍ठान करने वालों की एकांत साधना स्‍थली के तौर रामघाट स्थित श्‍मशान घाट का खास महत्‍व था। इसके लिए अघोरियों ने बीच श्‍मशान स्‍थल पर जमीन के नीचे एक बड़ी सुरंग बनायी थी। जिसमें करीब बीस फीट गहरा तप-स्‍थल था। शोर-शराबा से कोसों दूर। मगर अभी कुछ बरस पहले ही काल बाबा नामक अघोरी की मृत्‍यु के बाद से यह स्‍थल वीरान हो गया। मौका देख कर शहर के धर्मांध अनुयाइयों ने इस सुरंग को अपने कब्‍जे में कर लिया और उसे एक आलीशान मंदिर में तब्‍दील कर डाला।

अब यहां जमीन के भीतर एक भव्‍य मंदिर है, जहां दुर्गा और काली की ही नहीं, बल्कि विभिन्‍न देव-देवियों की प्रतिमाएं स्‍थापित कर इस कब्‍जे को जायज बनाने की कोशिश हो चुकी है। दुर्गापूजा के दौरान इस पूरे इलाके को आम आदमी के लिए खोल दिया जाएगा। तैयारियों के तहत काम जोरों से चल रहा है। लेकिन इस समय किसी को भी भीतर जाने की इजाजत नहीं। पहले तो कोई भी उस सुरंग में जा सकता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। सुरंग पर एक लोहे का जंगला बना कर उस पर एक मोटा ताला डाल दिया गया है। बाहर शिवलिंग स्‍थापित कराया जा रहा है। शहर के बड़े बनियों-व्‍यवसायियों ने इसके लिए वहां दिल खोल कर पैसा खर्च किया है। पहले जहां यह नीरवता और शांति रहती थी, वहां अब लाउडस्‍पीकर से भजन का शोर चल रहा है।
उधर राजा तालाब के पास पुराने अघोर पंथ के शोभनाथ आश्रम पर भी इन्‍हीं वैष्‍णवों ने कब्‍जा कर लिया है। श्‍मशान में शवदाह से बची लकडि़यों को यहां के डोम लोग इस आश्रम तक पहुंचाने का जिम्‍मा थामे थे, लेकिन इन वैष्‍णवों ने यह परम्‍परा भी बंद कर दी। शिव-त्रिशूल और उसकी अग्नि-कुण्‍ड को हटा दिया गया है। काबिज लोग अब अपनी करतूतों का जायज ठहराने के लिए वहां कई घिनौने आरोप लगाते हैं। हमने यहां बसे नये महंथों से बातचीत की। उनका कहना है कि प्रशासन की सहमति से ही सब हुआ है।

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