अच्छा ! तो सरकारी वकील भी मां-बहन की गाली सुनते हैं ?

बिटिया खबर
: रमेश पांडे आत्महत्या कांड को लेकर अब तक सुलग रहा है ताप : आखिर किस हादसे के बाद रमेश पांडे ने किया था यह हादसा : आत्महत्या के पहले रमेश पांडे भी सरेआम अपमानित हुए : यह तो नैराश्‍य और अवसाद की पराकाष्ठा थी :

कुमार सौवीर
लखनऊ : असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे लोगों के साथ तो उनके मालिक या उनके वरिष्ठ अधिकारी पर अक्सर आरोप लगता ही रहता है कि वे अपने अधीनस्थ या मजदूरों के साथ भद्दी गालियां दिया करते हैं। अक्सर तो मां,बहन और बेटी तक तौल दी जाती है। पुलिस में भी यह परंपरा काफी विकसित है, जहां छोटे सिपाहियों और नवेले दारोगा को अक्‍सर ही बहुत से अधिकारी अपने दफ्तर में सार्वजनिक रूप से भी गालियां दे बैठते हैं। सेना और अर्धसैनिक संगठनों में भी गाली-गलौज सामान्‍य बतायी जाती है। लेकिन पढ़े-लिखे और समझदार ही नहीं, बल्कि तार्किक और संगठन स्वरूप अपना चुके किसी क्षेत्र में अगर इस तरीके की धमकाने जैसी गालियां दी हैं, तो यह बात हजम में नहीं होती है।
लेकिन लगता है कि वकीलों की दुनिया भी अब ऐसे लोगों में शुमार हो गई है, जहां बिना गाली दिये, कुछ लोगों का खाना ही नहीं पचता है। अपने अधिकार और प्रभाव का दबाव डालते हुए बड़े वकील अपने अधीनस्थ अथवा कनिष्ठ लोगों के साथ बद-तरीन के लिए कुख्यात होते जा रहे हैं। बताते हैं कि हाईकोर्ट में एक बड़े वकील की छवि कमा चुके रमेश चंद्र पांडे भी ऐसे दुर्व्यवहार का शिकार हो गये। और हालत इतनी बिगड़ी कि उन्‍होंने आत्महत्या जैसा भयावह रास्ता अपना लिया और अपने अपने चौथे मंजिले चैम्‍बर की इमारत से कूद पड़े।
बदहाल हालत तो इतनी बिगड़ी कि रमेश पांडे ने अपनी इहलीला को समाप्त करने के लिए ठीक उसी स्थान का चयन किया, जो उसका मूल कार्यस्थल और उसकी आजीविका का एकमात्र केंद्र था। डरावने अवसाद से ग्रसित रमेश पांडे को कोई नहीं बचा पाया। वह भी नहीं, जो प्रदेश के न्‍याय-जगत का न्यायापति था। ये हादसा उसी दिन हुआ, जब प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश डीबी भोंसले अपना अंतिम दिन का कामकाज निपटाते हुए लखनऊ हाईकोर्ट परिसर में फुल कोर्ट रेफरेंस पर मौजूद थे। और उस दौरान लखनऊ हाईकोर्ट के सारे जज और पूरा अधिवक्ता समाज मौजूद था।
उधर, रमेश पांडे की आत्महत्या की घटना अधिवक्ता-समाज के गले से नीचे नहीं उतर रही है। चर्चाएं बेहिसाब हैं कि रमेश पांडे के साथ बेहद मानवीय और अपमानजनक व्यवहार किया गया था।
दोलत्‍ती संवाददाता ने हाईकोर्ट के कई बड़े वकीलों से इस बारे में लम्‍बी बातचीत की। लेकिन अधिकांश वकील इस मसले पर बातचीत करने को तैयार हुए कि उनका नाम न प्रकाशित किया जाए। इसी शर्त पर वे अपना मुंह खोलने पर तैयार हुए। ऐसे कुछ वकीलों ने बताया कि हाईकोर्ट में कुछ बड़े वकील ऐसे भी हैं जो अपने अधीनस्थ के साथ बेहद आक्रामक और बेहद अपमानजनक व्यवहार करते हैं। इन वकीलों का कहना था कि हाईकोर्ट के एक बेहद रसूखदार अधिवक्ता तो इसके लिए खासे कुख्यात हैं। विनायक सोचे-विचारे सीधे हमलावर हो जाते हैं। बात-बात पर फाइल को सामने वाले के चेहरे पर फेंक देना और मां-बहन-बेटी तक की गालियां उड़ेल देना तो उनके लिए रोजमर्रा की बात बन चुकी है। ऐसा भी नहीं, कि उनका यह व्यवहार अकेले में ही होता हो। बल्कि अक्सर तो वे अपने चैम्‍बर में कई लोगों की मौजूदगी में भी ऐसी गालियां बक देते हैं।
तो क्या रमेश पांडे के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ ? क्‍या वे कुछ इस तरह अपमानित किये गए कि उनके पास अपनी इज्‍जत निपटाने के लिए आत्‍महत्‍या के अलावा कोई रास्‍ता नहीं बचा ? इस सवाल का जवाब कुछ धुंधलाते माहौल में ही फंसा हुआ है। कुछ लोग तो यह बताते हैं कि हादसा ऐसा ही हुआ था, लेकिन हैरत की बात है कि कोई भी व्यक्ति खुलकर इस बारे में बोलने को तैयार नहीं। और जो बोल रहा है वह यह शर्त लगा देता है कि उसके नाम का खुलासा नहीं होना चाहिए। मगर ऐसे लोग भी यही बताते हैं कि ऐसा ही हुआ था, और जबरदस्त हुआ था।
अब सवाल ये है कि हाईकोर्ट में वह व्‍यक्ति कौन है, जिसकी अश्‍लील गालियां, कर्कश आवाज और अभद्रता से रमेश पांडे कुछ इस तरह व्‍यथित हुए कि उन्होंने आत्महत्या तक का रास्ता बेहिचक अपना लिया।
यह नैराश्‍य और अवसाद पराकाष्ठा थी।

( दोलत्‍ती डॉट कॉम रमेश चंद्र पाण्‍डेय की आत्‍महत्‍या के पूरे कांड की छानबीन कर रहा है। आपको अगर इस बारे में कोई भी जानकारी हो, तो आप हमसे सीधे और बेहिचक सम्‍पर्क कर सकते हैं। हमारा सेल-फोन 8840991189 और 9415302520 है। विश्‍वास रखिये, कि आप से हुई कोई भी बातचीत पूरी तरह गोपनीय रखी जाएगी।
सम्‍पादक, www.dolatti.com )

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