ऐसे कमीने-कुत्तों से आपका पाला कभी पड़ा है ?

किसी ने कहा कि 14 फरवरी पर कोई आलेख लिख डालूँ। वही वैलेन्टाइन डे यानि प्रणयोत्सव पर। जी हाँ वह दिन आ भी गया था मेरे अन्दर के वैलेन्टाइन ने उबाल नहीं मारा क्योंकि मैं क्रोध की आग में झुलसने पर मजबूर थी। जब मुझे क्रोध आता है तब सम्बन्धित लोगों को कुत्ते-कमीना शब्दों से […]

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बेटी के नाम पर मशहूर हो गये मौलाना अबू हनीफा

महिला सशक्तिकरण की अनोखी मिसाल गढ़ दी मौलाना ने

बच्‍चे ने कहा: आप फिसले तो पूरी इंसानियत गंदी हो जाएगी

खलीफा के आदेश के बावजूद नहीं किया हुक्‍मनामे पर दस्‍तखत

: शाहन के शाह : यह तो सामान्‍य सी बात थी, हर किसी के मुंह से निकलती ही रहती है। मकसद भी भला ही होता है, लेकिन ऐसी ही भलाई में मिला सबक किसी को महान भी बना सकता है। इतिहास की तवारीख में सोने के अक्षरों में ताजा नजीर के तौर पर दर्ज हैं अबू हनीफा। तो पहले एक नजर उस घटना पर। अबू हनीफा ने एक दिन एक मासूम से बच्‍चे को कीचड़ पर से निकलते देखा। उस बच्‍चे पर अचानक ही उनका स्‍वाभाविक प्रेम उमड़ पड़ा और बोल उठे:- जरा सम्‍भल कर बेटा। देखना कि कहीं पैर फिसलने से तुम कीचड़ में न गिर जाओ। बच्‍चा अपने उसी अंदाज में फौरन ही बोल पड़ा:- मैं गिरूंगा तो अकेले ही कीचड़ में जाऊंगा। सम्‍भलकर चलने की जरूरत तो आप जैसे विद्वानों को है, जो अगर फिसले तो पूरी इंसानियत ही कीचड़ में जा गिरेगी।

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बुल्‍लाशाह: गुरू में ही रसूल अल्‍लाह

जातिपांत को तोड़ बुल्‍ला शाह ने दलित को बनाया मुरशद

गुरू ही होता है मौला, आशिक, रांझा, साजण और मालिक

जन-जन के कवि बन गये पंजाब के सूफी संत बुल्‍लाशाह

नबी के खानदान का लड़का जब अछूत अराई जाति के फकीर के चक्‍कर में पड़ा, तो विरोध तो होना ही था। लेकिन लड़के ने साफ ऐलान किया कि अगर किसी ने मुझे सैयद कहा तो वह जहन्‍नुम में जाएगा और अराई कहा तो सीधे स्‍वर्ग में झूला झूलेगा।

जेहड़ा सानूं सैयद आखें, दोजख मिले सजाइयां।

जो कोई सानूं, राई आखें, भिश्ती पींगा पाइयां।

नतीजा, खानदान से बेदखल कर दिया गया वह।

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ख्‍वाजा बोले: इश्‍क कर। और वे गरीबनवाज हो गये

: शाहन के शाह :

: उपनिषदों के बेहद करीब है चिश्‍ती की विचारधारा :

: इंसान बनो, खुद ही आ जाएगा खुदा: मोइनुद्दीन :

: इंसानियत की राह के लिए सुल्‍तान को ठुकराया :

: पवित्र हिन्‍दू तीर्थ पुष्‍कर से शुरू की अध्‍यात्‍म की यात्रा :

सतवत-ए-तौहीद कायम जिन नमाजों से हुई,

हिन्‍द में आकर वही नजरें बिरहमन हो गयी।

मशहूर दार्शनिक और शायर डॉक्‍टर अल्‍लामा इकबाल का यह शेर भारत में सूफी-संतों के मामले में तो कम से कम पूरी तरह खरा ही उतरता है। और जब सूफी संतों का जिक्र आता है तो वे इंसानियत और रूहानियत के सर्वाधिक करीब, लेकिन ज्‍यादातर मु‍सलमान धर्म-गुरूओं के रूप में अवतरित होते दिखायी पड़ते हैं। वे ऐसी शख्सियतों के मालिक के तौर पर भारतीय परिदृश्‍य पर उभरे जिसने वक्‍त की नब्‍ज को हर बार बिगड़ने से रोका और हिन्‍दू-मुस्लिम समुदायों को गंगा-जमुनी संस्‍कृति अता फरमायी।

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दीन के संत शेख फरीद

रूखा-सूखा खाय कै ठंडा पानी पीउ, फरीदा, देखि पराई चोपडी ना तरसाए जीउ।

हम तो उस उसके बंदे हैं जो देता है, मगर एहसान नहीं जताता
फकीर ने ठुकरा दिये सुल्‍तान बलबन के सोने-चांदी का टोकरे
बनजारे की तरह तसला भर कर चल देने के बजाय भक्ति कर
यह कहानी है उस फकीर की जिसने सुल्‍तान बलबन को टका सा जवाब दे दिया और बलबन ने आजीवन उसके आगे शीश झुका दिया। धर्म को बिलकुल नये अंदाज में दिखाने वाले ने अद्वैत की वकालत की और भगवान और अल्‍लाह को एक ही बताया।

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मुक्ति-मार्ग के ज्ञानी अष्‍टावक्र

अष्‍टावक्र बोले: मोक्ष की लालसा में हुआ ध्‍यान-योग भी व्‍यर्थ
विकलांग और कुरूप अष्‍टावक्र ने बदल दी ज्ञान की परिभाषा
सुख-दुख, आशा-निराशा, जीवन-मृत्‍यु को समान भाव से देखो
मोक्ष नहीं, बल्कि मुक्ति का मार्ग ही एकमात्र संमार्ग
गेरूए वस्‍त्र और संन्‍यास के बजाय आत्‍मा की शुद्धि जरूरी

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हार कर भी जीत गयी विनम्र और विदुषी वाचकन्वी गार्गी

विदुषी वाचकन्‍वी के इतिहास को लेकर भारतीय साहित्‍य दरिद्र
जीत कर भी हारे याज्ञवल्‍क्‍य और हार कर भी अमर हो गयी गार्गी
अपमान को सहा, लेकिन गार्गी ने याज्ञवल्‍क्‍य को आत्‍मज्ञान करा दिया
पूरी सभा स्‍तब्‍ध। मामला ही ऐसा था। शास्‍त्रार्थ के इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी प्रश्‍नकर्ता के साथ ऐसा अपमानजनक व्‍यवहार किया गया हो। तुर्रा यह कि यह घटना उस राजा की सभा में हुई जिसे स्‍वयं भी महान विद्वान माना जाता था। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। परम आत्‍मज्ञानी के तौर प्रतिष्ठित याज्ञवल्‍क्‍य ने झल्‍लाकर आखिर कह ही दिया- ’गार्गी, माति प्राक्षीर्मा ते मूर्धा व्यापप्त्त्’। यानी गार्गी, इतने सवाल मत करो, कहीं ऐसा न हो कि इससे तुम्हारा भेजा ही फट जाए।

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साक्षात शिव तो मैं ही हूं, तुम्‍हारा सेवक

जीवन के हर सुख-दुख में समाए हुए हैं विद्यापति :
शिवभक्ति की एक नयी श्रृंखला नचारी का निरूपण किया
मैथिल से असम, बंगाल, उडीसा व नेपाल-अवध तक में जैकारा
जै-जै भैरवी असुर भयावनी, पशुपति-भावनी माया अनुष्ठान गीत
मिथिला की मधुबनी पेंटिंग तक में विद्यापति के गीत हैं 
अवाम तक कविता पहुंचाने के लिए अवहट्ट बोली अपनायी

बादशाह ने कहा- इतने बडे़ ज्ञानी हो तो आज इम्तिहान हो ही जाए। कवि ने चुनौती स्‍वीकार कर ली। बस फिर क्‍या था। एक संदूक में बंद करके उस कवि को कुंए में लटका दिया गया। बाहर एक नृत्‍यांगना अपने करतब दिखा रही थी। सवाल था कि बंद बक्‍से से देखो कि ऊपर क्‍या हो रहा है। और हैरत यह कि उस कवि के होंठों से कविता की धाराप्रवाह सरिता बह निकली। कुंए के बाहर का पूरा ब्‍योरा बखान कर दिया। बोल थे- माधव की कहुं संदर रूपै, कनक कदली पे सिंह चढ़ाइल, देखल नयन सरूपै। सजनि निहुरि फुकु आगि, तोहर कमल भ्रमर मोर देखल, मढन ऊठल जागि। जो तोहें भामिनि भवन जएबह, एबह कोनह बेला, जो ए संकट सौं जौ बांचत, होयत लोचन मेला।

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नारी स्वतंत्रता एक प्रश्न चिन्ह?

कौमार्य-भंग रोकने के लिए समाज ने बना दिये कडे धार्मिक नियम कुलटा, दोयम, वेश्या व रंडी नाम अपनी ही आधी आबादी को दिया पुराणों को अलमारी में, औरत को हेयतर प्राणी बनाया अपनी सुविधा के लिए कहीं सामूहिक दुराचार, तो कहीं अपनी ही बेटियों के कातिल बने हैं मर्द आधुनिक परिवेश में अगर देखा जाये […]

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देवरहा बाबा

वह बबूल का पेड नहीं मेरा शिष्‍य है, न कटेगा, न छांटा जाएगाप्रधानमंत्री का कार्यक्रम टल गया, मगर पेड को आंच न आने दीन उम्र का पता, न इतिहास का, लेकिन हरदिल अजीज रहा दिगम्‍बरपूरा जीवन नदी के किनारे मचान पर ही काट दिया देवरहा बाबा नेअमरकंटक में तो आंवले के पेड ने उन्‍हें अमलहवा […]

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ये न राधा थीं, ना मीरा, पर कृष्‍ण इनके परमात्‍मा थे

बंगाल की अभागन विधवा ने खोजा कृष्‍ण के घर आसराब्रज की कुंज गलियों व गांवों में गूंजता है सिद्धा का जयकाराकर्म और भक्ति का समवेत भाव खोजा सिद्धा ने यह ना तो द्रोपदी थी और ना ही राधा। हां, तुलना मीरा से जरूर की जा सकती है। इसका ताल्‍लुक ना तो ब्रज से रहा और […]

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आखिर क्यों संविधान में डकैती डालने सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये फाली एस नारीमन

लूट ली जन-गण-मन की अस्मिताकिस अधिकार से समाजवादी गणतंत्र को बाजारू गणतंत्र बनायानियंताओं ने संविधान के संकल्‍प–पत्र में डाली खुलेआम डकैतीफासी एन नरीमन तो सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये थेसुप्रीम कोर्ट यह भी तो कह सकता था कि जाओ, जनादेश लाओसंविधान सभा का संकल्‍प—हम भारत के लोग भारत को समाजवादी गणतांत्रिक राज्‍य बनाने का संकल्‍प […]

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सृजन की शक्ति

सृजन की शक्ति- बेटी हां मैं सृजन की शक्ति हूं मेरी मां भी सृजन की शक्ति है! सृष्टि के निर्माण में मां का बहुत बडा योगदान हैमैनें दुनिया को पूर्ण किया है,…मैं क्षमाशील हूं, सबको क्षमा करती हूं,चाहे वो भाई हो, पिता हो, पति हो, पुत्र हो पर…. अपनी किसी बहन का दुख मैं ना हर […]

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जननी के आंसूं ना आयें!

क्यों दुनिया का दस्तूर यही है कि बेटी विदा होती हैक्यों बेटे ही बनते हैं बुढापे की लाठीक्यों ना बेटों को मिले नया घर,जहां पूरा करें वो हर सपना~~~ …नये घर में बेटे बनायें रिश्ते नयेअपनी पत्नी के घर को अपनायें!अगर आपका पुरुष अहम ना टूटेआओ ऍसा इक जहां बनायें! कुछ ना खोयेगा पुरुष भी […]

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बंगाल की विधवा ने शिव की काशी को सधवा बना दिया

और रानी भवानी ने शिव को आत्‍मसात कर लिया
हुक्‍म रानी भवानी का: कहीं कोई भूखा ना रहे
शैव और शाक्‍तों का झगडा तो सिरे से ही मिटा दिया
बंगाल से काशी तक अन्‍नपूर्णा बन गयीं रानी भवानी

सन 1776 का दौर भारत के लिए बेहद त्रासद रहा। बंगाल से लेकर उत्‍तर भारत तक के एक बडे इलाके में दुर्भिक्षु अचानक एक महामारी की तरह आ गया। पहले तो राजनीतिक अराजकता और अन्‍याय से जूझ रही जनता को यह अकाल बेहद भारी पडा। बडे पैमाने पर लोग भूख से मरने लगे। कि अचानक ही दिल्‍ली और बंगाल की बडी सत्‍ता की चुप्‍पी के खिलाफ एक महिला ने बिगुल बजाया और अपने खजाने का दरवाजा खोल दिया। हुक्‍म दिया कि राज्‍य में कोई भी मौत अब भूख से नहीं होनी चाहिए। और इसके बाद से ही भारतीय इतिहास की इस महिला को जन-सामान्‍य ने साक्षात अन्‍नपूर्णा का ओहदा दे दिया।

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